विपक्ष पर भारी पड़ी मोदी-शाह की रणनीति, 2024 में दिखेगा इसका असर

narendra modi amit shah
ANI
अंकित सिंह । Jul 23 2022 4:04PM

विपक्षी दलों का जो गठबंधन था, वह टूट गया। हमने देखा कि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस के साथ है, सरकार में है, बावजूद इसके उसने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया। ऐसे ही उद्धव गुट की शिवसेना ने भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया।

देश दुनिया में कई तरह के मुद्दों पर हलचल जारी है। प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह हमने देश में राष्ट्रपति चुनाव और उत्तर प्रदेश में मंत्रियों की नाराजगी पर चर्चा की। हमेशा की तरह प्रभासाक्षी के कार्यक्रम में मौजूद रहे संपादक नीरज कुमार दुबे जी। नीरज कुमार दुबे से सबसे पहला सवाल तो हमने यही पूछा कि राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर क्या संकेत गए हैं? क्या भाजपा वाकई में 2024 से पहले विपक्षी एकजुटता में फूट डालने में कामयाब हो गई है? इसके जवाब में नीरज दुबे ने सबसे पहले तो यही कहा कि यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है कि एक आदिवासी समाज से आने वाली महिला देश की प्रथम नागरिक बनने जा रही हैं। उन्होंने कहा कि संसद सत्र से पहले सत्ता पक्ष या विपक्ष और सभी रणनीति अपनाते हैं। यह संसद सत्र इसलिए भी अहम है क्योंकि इसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव हो रहे हैं। यही कारण है कि इस बात की उम्मीद जताई जा रही थी कि जिस तरह से इस चुनाव के लिए एनडीए मजबूत रणनीति के साथ मैदान में उतरा, ठीक वैसा ही कुछ विपक्ष की ओर से भी होता। पर ऐसा हुआ नहीं। विपक्षी एकजुटता एक बार फिर से बिखरी हुई दिखाई दी। 

क्रॉस वोटिंग को लेकर उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कई पार्टियों के भीतर भी क्रॉस वोटिंग हुई है। इसका मतलब साफ है कि विपक्ष के कई दल जिसमें कांग्रेस में शामिल है, अपने विधायकों को राष्ट्रपति चुनाव में एकजुट नहीं रख सकी। कहीं ना कहीं यह भाजपा की रणनीतिक जीत है। नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि राष्ट्रपति चुनाव से जो संदेश गया है, वह यही है कि विपक्ष बिखरा हुआ है। उन्होंने कहा कि एनडीए ने मजबूती से चुनाव लड़ा और विपक्ष विभाजित तरीके से चुनाव लड़ा। यह संदेश साफ तौर पर जनता में गया है। उन्होंने यह भी कहा कि जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की ओर से उम्मीदवार तय किए जा रहे थे, उस समय भी कोई चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। ऐसे में नतीजों का पूर्वानुमान तो सभी को था, बावजूद इसके यशवंत सिन्हा इसके लिए तैयार हुए। राष्ट्रपति चुनाव हो या उपराष्ट्रपति चुनाव दोनों के लिए एनडीए की ओर से एक बैठक हुई। सहयोगियों को भाजपा ने विश्वास में लिया और नामों की घोषणा कर दी। दूसरी ओर अगर हम विपक्ष को देखें तो कई बैठकों का दौर रहा। इन बैठकों से कई दलों ने दूरी भी बनाई, कई नामों पर चर्चा हुई, कई लोगों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया, तमाम उठा-पटक के बावजूद विपक्ष अपना उम्मीदवार दोनों ही चुनाव में उतारने में कामयाब हुआ है।

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नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि विपक्षी दलों का जो गठबंधन था, वह टूट गया। हमने देखा कि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस के साथ है, सरकार में है, बावजूद इसके उसने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया। ऐसे ही उद्धव गुट की शिवसेना ने भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया। मायावती ने किया। यह कहीं ना कहीं विपक्ष के लिए बड़ा झटका था। उन्होंने कहा कि जनता को क्या चाहिए, जनता को एक मजबूत नेतृत्व चाहिए। निर्णय लेने वाली सरकार चाहिए। जनता देख रही है कि एक ओर एक दल मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। जबकि विपक्ष में लगातार बिखराब है। विपक्ष में सबसे बड़ा सवाल यही है कि नेता कौन होगा, आप अगर फैसला करोगे तो मैं नहीं मानूंगा, मैं फैसला करूंगा तो तीसरा नहीं मानेगा और यही कारण है कि विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है। उदाहरण देते हुए नीरज दुबे ने कहा कि उपराष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार पर ममता बनर्जी ने साफ तौर पर कह दिया है कि हमसे तो पूछा ही नहीं किया, इसलिए हम इस चुनाव से ही दूर रहेंगे। नीरज दुबे ने जोर देते हुए कहा कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव से जो एनडीए जनता के बीच संदेश देने में कामयाब रहा वह यही था कि विपक्ष में बिखराव है, विपक्ष में एकजुटता नहीं है जबकि दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व में एनडीए एकजुट है और आगे बढ़ रहा है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति

हमने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में मंत्रियों की नाराजगी को लेकर भी नीरज दुबे से सवाल पूछ लिया। हमने यह भी पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश भाजपा में एक बड़ी खींचतान है? नीरज दुबे ने सबसे पहले तो यह कहा कि अगर तबादले को लेकर अनियमितता बरती गई है तो निश्चित ही सरकार के खिलाफ कार्यवाही करेगी। उन्होंने कहा कि जब ऐसी कार्यवाही होती है तो हो सकता है किसी मंत्री के करीबी पर भी गाज गिर सकती है। यह सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं, अन्य प्रदेशों में भी होता है और समय-समय पर देखने को भी मिलता है। यह सब चीजें सरकार में चलती रहती हैं। नीरज दुबे ने इस बात को भी स्वीकार किया कि हमारे देश में नौकरशाह और राजनेताओं के बीच अक्सर खींचतान बनी रहती है। उन्होंने यह भी कह दिया कि कुछ नौकरशाह ऐसे भी होते हैं जो दबते नहीं हैं और अपने आप को मंत्री से भी बड़ा समझ लेते हैंस यही अक्सर तनाव का कारण बन जाता है। फिलहाल यह देखने को भी मिल रहा है।

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इसके साथ ही नीरज दुबे ने कहा कि थोड़ा पहले चले तो हम सबको पता है कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान योगी आदित्यनाथ खूब सक्रिय थे। उन्होंने पहले टीम 9, फिर टीम 11 बनाई थी। इसमें अधिकारियों को खूब महत्व दिया गया था। उस समय भी इस तरह के नाराजगी की खबर आई थी। यही कारण है कि कुछ अफसरों को यह लगने लगता है कि हमारा जो दर्जा है योगी आदित्यनाथ की नजर में, वह मंत्रियों से ज्यादा है और यही कारण है कि इस तरह की नाराजगी सामने आती है। एक तरफ राजनीतिक प्रतिष्ठा होती है और एक तरफ अफसर की प्रतिष्ठा होती है और यही टकराव का कारण भी बनता है। इसके साथ ही नीरज दुबे ने उम्मीद जताई कि योगी आदित्यनाथ को प्रशासनिक अनुभव हो गया है और कहीं ना कहीं वह इस मसले का हल भी तुरंत निकाल लेंगे।

- अंकित सिंह

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