थाली में छेद ज्यादा बड़ा मुद्दा है या थाली की गंदगी ज्यादा गंभीर विषय है ?

ravi kishan jaya bachchan

हिंदी फिल्म उद्योग फिर से चर्चा में रहा क्योंकि सांसद रवि किशन ने कलाकारों के ड्रग जाल में फँसने का मुद्दा उठाया तो उन पर आरोप लगा दिया गया कि वह जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद कर रहे हैं। इसके बाद विवादित बयानों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह थमने का नाम नहीं ले रहा है।

फिल्म अभिनेत्री और सांसद जया बच्चन ने राज्यसभा में कहा कि फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा है और कुछ लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद कर रहे हैं। उनका निशाना भाजपा सांसद रवि किशन की ओर था जिन्होंने लोकसभा में कहा था कि फिल्म इंडस्ट्री को ड्रग माफिया बर्बाद करने पर तुला हुआ है। उन्होंने सरकार से इस संबंध में कार्रवाई की माँग की थी। जया बच्चन ने रवि किशन को आड़े हाथ लिया तो बॉलीवुड में फिर से विभाजन साफ-साफ दिखाई पड़ने लगा क्योंकि एक धड़ा जहाँ जया बच्चन के साथ खड़ा नजर आ रहा था वहीं दूसरे शहरों से आकर मुंबई में अपनी पहचान बनाने वाले अधिकांश अभिनेता-अभिनेत्रियों ने रवि किशन का साथ दिया।

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फिल्म इंडस्ट्री के लोग जिस तरह सरेआम लड़ रहे हैं, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, उस सब को टीवी चैनलों पर 24 घंटे मिर्च मसाला लगाकर दिखाया जा रहा है जोकि जनता को भी भा रहा है और वह खुश होकर ताली पीट रही है। वहीँ इंडस्ट्री के कलाकार जिस तरह एक दूसरे के खिलाफ अमर्यादित शब्दों का सहारा ले रहे हैं उससे यह भी प्रश्न खड़ा हो रहा है कि सभ्य समाज से वास्ता रखने वाले यह लोग गाली-गलौच पर क्यों उतर आये हैं?

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यह जो सर्वाधिक बुराई दिखने का दौर आया है उसके लिए कहीं ना कहीं हमारे निर्माता-निर्देशक भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने पाश्चात्य पृष्ठभूमि और विषयों पर फिल्में बनानी शुरू कर दी हैं। जरा राजश्री प्रोडक्शन की फिल्मों को देख लीजिये, सुभाष घई की फिल्मों को देख लीजिये या फिर हमारे दक्षिण के निर्माता-निर्देशकों की फिल्मों को देख लीजिये। यह लोग भारतीय लोक संस्कृति, जन भावना और परम्पराओं का आदर करने वाली कहानियाँ दिखाते हैं और आशातीत सफलता हासिल करते हैं।

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को जरा दक्षिण के फिल्म उद्योग पर भी नजर दौड़ा लेना चाहिए। क्यों हमारे हिंदी कलाकारों के नाम पर लोग मंदिर नहीं बनाते जबकि दक्षिण में अपने चहेते कलाकारों के नाम पर मंदिर बनाने या उनकी पूजा करने या फिर उनकी फिल्म का पहला शो देखने के लिए आधी रात से लाइनें लग जाती हैं? दरअसल इसके पीछे कारण यह है कि हमारे हिंदी फिल्मों के कलाकार अपनी छवि के प्रति सतर्क नहीं रहते जबकि दक्षिण में ऐसा देखने को नहीं मिलता।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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