International Translation Day: अनुवाद की ताकत से न करें इनकार: नई सम्भावनाओं से भरा है यह संसार

International Translation Day
Prabhasakshi
दीपा लाभ । Sep 30 2023 12:14PM

देखा जाए तो अनुवाद का कार्य भाषा के प्रयोग के साथ ही आरम्भ हो चुका था किन्तु इसकी महत्ता को समझने में सालों का समय लग गया। व्यावहारिक रूप से अनुवाद भाषा का ऐसा सरलीकरण है जो मूल भाषा से अनजान व्यक्ति को उसकी अपनी भाषा में आसानी से समझने में मदद करे।

भाषा संवाद का एक ज़रिया है। भाषा संस्कृति का पोषक है। दुनिया की सभी संस्कृतियों को जोड़ने का प्रमुख माध्यम भाषा ही है। जैसे भारतीय बच्चों में सिंड्रेला के जूते या रुपेंज़ल के सुनहरे बालों को लेकर कौतुहल होता है वैसे ही पाश्चात्य देशों के लिए पञ्चतंत्र की कहानियाँ, राम, कृष्ण या अर्जुन कौतुहल पैदा करते हैं। हमारी कहानियाँ दुनिया तक और दुनिया की कहानियाँ हम तक आसानी से पहुँच पाती हैं क्योंकि हमारे पास अनुवाद की ताकत है। एक भाषा को दूसरी भाषा में प्रेषित कर पाने की यह अद्भुत कला जिसे हम अनुवाद कहते हैं वास्तव में दूरियाँ मिटाने का कार्य करती हैं, दिलों को मिलाने का कार्य करती हैं। तभी तो रुसी लेखक चेखोव भारत में पसंद किये जाते हैं और भारत के रवीन्द्रनाथ टैगोर विदेशों में, विदेश का हैरी पॉर्टर हमारे बच्चों में मशहूर है और हमारा बाल हनुमान विदेशों में।

देखा जाए तो अनुवाद का कार्य भाषा के प्रयोग के साथ ही आरम्भ हो चुका था किन्तु इसकी महत्ता को समझने में सालों का समय लग गया। व्यावहारिक रूप से अनुवाद भाषा का ऐसा सरलीकरण है जो मूल भाषा से अनजान व्यक्ति को उसकी अपनी भाषा में आसानी से समझने में मदद करे। यानी, दुनिया की किसी भी भाषा में लिखी/कही गयी बात को हमारी भाषा में प्रेषित करना अनुवाद की क्रिया है। यह पढ़ने में जितना आसान लगता है, करने में उतना ही कठिन, क्योंकि अनुवाद केवल भाषा का हीं नहीं होता, बल्कि उसके संस्कार का भी होता है, उसके विचार का भी होता है। यानी अनुवादक जब तक दोनों भाषाओँ, जिसका अनुवाद करना हो व जिसमें अनुवाद होना हो, से भली-भांति अवगत न हो, अनुवाद के साथ न्याय नहीं कर सकता। कई वर्षों तक अनुवाद केवल सरकारी काम-काज और औपचारिकताओं तक ही सीमित रहा। किन्तु समय के साथ-साथ लोगों ने यह अनुभव करना शुरू कर दिया कि अनुवाद वास्तव में संस्कृतियों को जोड़ने में अहम् भूमिका निभा रहा है, सम्बन्ध प्रगाढ़ करने का काम कर रहा है। विश्व को इसकी ताकत का एहसास हुआ और इसे वैश्विक स्तर पर पहचान मिली और आरम्भ हुआ विश्व अनुवाद दिवस का सिलसिला। वैसे तो अनुवाद और इस कार्य से जुड़े लोगों को उचित सम्मान दिलाने की कवायद कई वर्षों से चल रही थी किन्तु औपचारिक तौर पर 24 मई 2017 को संयुक्त राष्ट्र ने 71/288 प्रस्ताव पारित कर यह संकल्प लिया कि प्रति वर्ष 30 सितम्बर – जो बाइबिल के सबसे पहले अनुवादक संत जिरोम की पुण्यतिथि है – को अन्तर्राष्ट्रीय अनुवाद दिवस के रूप में मनाएँगे। संत जिरोम को अनुवादकों का संरक्षक संत माना जाता है और उनकी पुण्यतिथि, जिसे ‘जिरोम फीस्ट’ या ‘जिरोम पर्व’ की संज्ञा दी गयी है। वर्ष 1953 से ही इसी वर्ष स्थापित ‘इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रांसलेटर्स’ ने जिरोम पर्व मनाना शुरू कर दिया था और 1991 में इसे वैश्विक स्वरूप देने पर विचार शुरू हो गया था। दुनिया भर के अनुवाद समुदाय को एकता के सूत्र में बाँधने और विभिन्न देशों को अनुवाद की महत्ता को समझाने के उद्देश्य से पिछले आठ वर्षों से लगातार यह पर्व मनाया जाता है और प्रति वर्ष एक विशेष विषयवस्तु (थीम) तय कर उस दिशा में कार्य किया जाता है। पिछले वर्ष का थीम ‘सीमाओं के बिना एक दुनिया’ यानी ‘अ वर्ल्ड विदाउट बैरियर’ था तो इस वर्ष का थीम है – “अनुवाद मानवता के विभिन्न आयामों को उजागर करता है” (Translation unveils the many faces of humanity).

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ईसाई देशों से आरम्भ हुए इस पर्व को अब समूचे विश्व ने अपना लिया है और भारत में इसका विशेष महत्त्व है। भारत में अनुवाद आज एक आवश्यक और सार्थक व्यवसाय के रूप में शामिल है। और हो भी क्यों न, भारत जैसे बहु-भाषी देश के लिए अनुवाद एक अनिवार्य कार्य है। जहाँ 22 आधिकारिक भाषाएँ संविधान की सूची में हो, जनगणना के अनुसार 124 भाषाएँ रजिस्टर हों और बोल-चल में 1600 से अधिक बोलियों का प्रचलन हो वहाँ अनुवादक की भूमिका ऐसे ही महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि गीतांजलि अंग्रेज़ी में अनुवादित नहीं होती तो भारत के खाते नोबल पुरस्कार कैसे आती! गीतांजलिश्री की ‘रेत समाधि’ भी अनुवादित उपन्यास ‘टूम्ब ऑफ़ सैंड’ के ज़रिए ही बुकर अपने नाम करा सकी। अनुवाद की शक्ति केवल साहित्य तक ही सीमित है, ऐसा नहीं है। शिक्षा से लेकर खेल-कूद, वाणिज्य-व्यापार, विज्ञान,  राजनैतिक रिश्ते, वैश्विक सम्बन्ध – सभी क्षेत्रों में अनुवाद की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। 2020 में आई नहीं शिक्षा नीति ने अनुवाद के लिए नया संसार ही खोल दिया है। ‘मातृभाषा में शिक्षा’ ने अनुवादकों की एक लम्बी फ़हरिस्त बनाई है जिसके अंतर्गत प्रत्येक भारतीय भाषा के लिए अनुवादकों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, आज लगभग सभी व्यवसाय कंप्यूटर और इन्टरनेट आधारित होते जा रहे हैं। ऐसे में प्रत्येक सेक्टर को, चाहे वो फार्मास्युटिकल हो, मैनुफैक्चरिंग हो, अनुसंधान हो, फ़िल्म या टीवी प्रोडक्शन हो, एडवरटाइजिंग हो या कुछ और, मल्टीलिंगुअल होना अनिवार्य हो गया है। ऐसे में अनुवाद और अनुवादक की ताकत को समझना फ़ायदे का सौदा हो सकता है। देश की मल्टी-मिलियन इंडस्ट्री (लगभग 65 मिलियन) को इस ‘विश्व अनुवाद दिवस’ के उपलक्ष्य में ढ़ेरों शुभकामनाएँ। 

- दीपा लाभ 

बर्लिन (जर्मनी) में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। भारतीय संस्कृति और हिन्दी से बेहद लगाव है। शैक्षणिक क्रियाकलापों से जुडी हैं और लेखन कार्य में सक्रिय हैं।

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