क्या है न्यायमूर्ति जोसफ संबंधी विवाद? क्यों सरकार कर रही है उनका विरोध?

Govt asks SC to reconsider Justice Joseph''s name, says his elevation not ''appropriate''

सरकार ने उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसेफ को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने को कहकर न्यायपालिका के साथ नये टकराव को जन्म दे दिया है।

सरकार ने उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के.एम. जोसेफ को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने को कहकर न्यायपालिका के साथ नये टकराव को जन्म दे दिया है। सरकार ने कहा है कि न्यायमूर्ति जोसफ को उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत करना ‘उचित’ नहीं होगा। सरकार को कॉलेजियम के मुखिया प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा से तुरंत समर्थन मिला। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कार्यपालिका को न्यायमूर्ति जोसफ का नाम पुनर्विचार के लिये वापस भेजने और दूसरे नाम को स्वीकार करने का पूरा हक है, भले ही दोनों नामों की सिफारिश एक साथ कॉलेजियम ने की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति जोसफ की उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिये सिफारिश कॉलेजियम ने इस साल जनवरी में की थी।

विवाद क्यों हुआ

दरअसल देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को लिखे पत्र में केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि न्यायमूर्ति जोसफ के नाम पर पुनर्विचार किया जाये और इस मुद्दे पर हमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मंजूरी हासिल है। साथ ही पत्र में यह भी कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है। प्रसाद ने पत्र में कहा है, ‘‘इस मौके पर जोसफ की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति का प्रस्ताव उचित नहीं लगता है।’’ पत्र में कहा गया है, ‘‘यह विभिन्न उच्च न्यायालयों के अन्य वरिष्ठ, उपयुक्त और योग्य मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ भी उचित और न्यायसंगत नहीं होगा।’’ 

प्रसाद ने अपने पत्र में न्यायमूर्ति मिश्रा से कहा कि सरकार उच्चतम न्यायालय की सिफारिश को अलग करने पर मजबूर है, पहले भी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में कई प्रस्तावों को अलग किया गया है।

जोसफ से वरिष्ठ न्यायाधीश कर रहे हैं पदोन्नति का इंतजार

प्रधान न्यायाधीश को भेजे गए अपने छह पन्नों के पत्र में केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में न्यायमूर्ति जोसफ 42वें नंबर पर आते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में फिलहाल विभिन्न उच्च न्यायालयों के 11 मुख्य न्यायाधीश हैं, जो उनसे वरिष्ठ हैं।’’ देशभर के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 1079 स्वीकृत पद हैं, लेकिन अभी सिर्फ 669 न्यायाधीशों से काम चल रहा है।

केरल से ज्यादा प्रतिनिधित्व पर उठा सवाल

पत्र में कहा गया है कि न्यायमूर्ति जोसफ के मूल उच्च न्यायालय केरल उच्च न्यायालय का शीर्ष अदालत और अन्य उच्च न्यायालयों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है। प्रसाद ने कहा कि कलकत्ता, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, मणिपुर और मेघालय उच्च न्यायालय का उच्चतम न्यायालय में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। पत्र में कहा गया है, ‘‘इस बात का यहां उल्लेख करना प्रासंगिक हो सकता है कि उच्चतम न्यायालय में लंबे समय से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।’’ 

उच्चतम न्यायालय के दो फैसलों का उल्लेख करते हुए पत्र में यह भी कहा गया है कि उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत किये जाने की उम्मीद रखनी चाहिये और सीजेआई और कॉलेजियम को इसे ध्यान में रखना चाहिये। 

कॉलेजियम ने क्या कहा था

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत करने के लिये न्यायमूर्ति जोसफ के नाम की सिफारिश करते हुए कॉलेजियम ने कहा था, ‘‘वह अन्य मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ न्यायाधीशों की तुलना में उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने के लिये सभी मामले में अधिक हकदार और उपयुक्त हैं।’’ उच्चतम न्यायालय के पांच शीर्ष न्यायाधीशों के निकाय ने कहा था कि कॉलेजियम ने मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ न्यायाधीशों की अखिल भारतीय स्तर पर वरिष्ठता के साथ-साथ उनकी योग्यता और ईमानदारी पर गौर किया था।

पहले भी हुआ है विवाद

जून 2014 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा ने सरकार को पत्र लिखकर साफ किया था कि कार्यपालिका कॉलेजियम की पूर्व मंजूरी के बिना सिफारिशों को अलग-अलग नहीं कर सकती है। ऐसा तब हुआ था जब सरकार ने वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलीसीटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम की उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के खिलाफ फैसला किया था जबकि कॉलेजियम की अन्य सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश और शीर्ष अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। बाद में सुब्रह्मण्यम ने न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिये अपने नाम की सिफारिश के लिये दी गई अपनी सहमति वापस ले ली थी।


अब क्या होगा 

सैद्धांतिक तौर पर कॉलेजियम सरकार के प्रस्ताव को अब भी खारिज कर सकती है और विधि मंत्रालय को न्यायमूर्ति जोसफ का नाम दोबारा भेज सकती है। विधि मंत्रालय उसके बाद भावी कार्रवाई पर फैसला कर सकता है। 

कौन हैं न्यायमूर्ति जोसफ

न्यायमूर्ति जोसफ ने 2016 में अपने फैसले के जरिये उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को निरस्त कर दिया था और राज्य में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया था। इस फैसले को उस वक्त केंद्र में भाजपा नीत सरकार के लिये बड़े झटके के तौर पर देखा गया था। 

हो रहा है विवाद

न्यायमूर्ति जोसफ को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किये जाने के प्रस्ताव पर सरकार की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे ‘निराशाजनक’ बताया जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है’ और वह अब एक स्वर में बोलेगी कि ‘बस बहुत हो चुका।’ 

सरकार ने आरोपों को किया खारिज

सरकार के सूत्रों ने कहा है कि न्यायमूर्ति जोसफ को उत्तराखंड मामले में दिये गए आदेश का शिकार होने का अभियान ‘परेशान’ करने वाला है। उन्होंने कहा, ‘‘यह निराधार है, न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को निरस्त किया था इसके बावजूद उन्हें प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।’’ 

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