जीत से भारतीय खुश तो हैं, मगर दर्शकों की बेरुखी ने दिया संदेश– खेल से बड़ा है राष्ट्रहित

साथ ही इस मैच के दौरान भारतीय खिलाड़ियों ने परंपरा से हटकर पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया। यह निर्णय खेल भावना की सामान्य परिभाषा से अलग जरूर था, परंतु इसके पीछे का संदेश और संदर्भ अनदेखा नहीं किया जा सकता।
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए एशिया कप मुकाबले ने क्रिकेट प्रेमियों को जीत की खुशी तो दी, लेकिन इसके साथ ही कुछ गहरी भावनाएं और सवाल भी छोड़ गया। भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने इस जीत को पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों और देश के सशस्त्र बलों को समर्पित कर यह स्पष्ट कर दिया कि यह मुकाबला महज खेल भर नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय भावना और सुरक्षा बलों के साहस को सलाम करने का अवसर भी था।
साथ ही इस मैच के दौरान भारतीय खिलाड़ियों ने परंपरा से हटकर पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया। यह निर्णय खेल भावना की सामान्य परिभाषा से अलग जरूर था, परंतु इसके पीछे का संदेश और संदर्भ अनदेखा नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने इसे “खेल के खिलाफ” बताकर एशियाई क्रिकेट परिषद में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने साफ कर दिया कि यह कदम पहलगाम हमले के पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना और आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता व्यक्त करने का उनका तरीका था।
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दरअसल, सीमा पार आतंकवाद ने भारत-पाक रिश्तों को लंबे समय से प्रभावित किया है। जब भी दोनों टीमें मैदान पर उतरती हैं, खेल केवल खेल नहीं रह जाता, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और सुरक्षा के सवाल उसमें घुलमिल जाते हैं। यही कारण है कि दुबई स्टेडियम में इस हाई-वोल्टेज मुकाबले के बावजूद आधे से ज्यादा सीटें खाली रहीं और दर्शकों के बीच उत्साह उम्मीद से कम दिखाई दिया।
दूसरी ओर, भारत की जीत का लोगों ने स्वागत किया, लेकिन इस मैच को लेकर क्रिकेट प्रशंसकों में निराशा भी झलकी। दुबई में खाली पड़े स्टेडियम ने यह कड़ा संदेश दिया कि आतंकवाद और खेल साथ-साथ नहीं चल सकते। जब तक आतंक का साया मौजूद है, तब तक क्रिकेट जैसी सौहार्द की भाषा भी अधूरी ही रहेगी।
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