वैसाखी वाले दिन ही हुआ था जलियांवाला बाग हत्याकांड, कभी नहीं भुल सकता देश

Jallianwala Bagh
सुखी भारती । Apr 13 2021 3:03PM

बढ़ रहे अंदोलन को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने बहुत ही सख्त कदम उठाया। पंजाब के बड़े लीडर डॉ. सत्या पाल व सैपूफदीन किचलू को अमृतसर के डिपटी कमिश्नर ने बिना किसी मंजूरी के नज़रबंद कर लिया। इसके विरोध में देश की जनता ने एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला।

13 अप्रैल 1919 का काला दिन, इतिहास के माथे का वह बदनुमा दाग है, जो किसी भी तरह साफ नहीं हो सकता। जब-जब भारत वंश इस दिन के बारे में पढ़ेगा तो उसके सामने वह मंज़र कौंध जाएगा जिसमें लाखों ही मासूम बिना किसी कसूर के, पलों में ही गोलियों से भून दिए गए। जब सारा देश वैसाखी की खुशियां मनाने में, भंगड़ा डालने, मेले देखने में मशरूफ था। किसी को याद भी नहीं था कि आज उन्हें गुलामी एक और कभी न मिटने वाला दर्द देने वाली है। क्योंकि उस समय सैंकड़ों की संख्या में निहत्थे, हिंदु-सिख, मुसलमानों पर करूर शासक जनरल डायर ने बिना किसी कसूर के गोलियों की बरसात कर दी। जिसमें बच्चे, बूढ़े, जवान, महिलाएं, माताएँ, बहनें मौत के गाल में समा गये। जहाँ तक कि 6 महीनों का मासूम भी इस वीभत्सता का शिकार होने से न बच पाया। 

यह घटना हमें बताती है कि गुलाम होना कितना पीड़ादायक है। चाहे इस घटना को हुए 102 साल बीत चुके हैं परंतु इसका दर्द आज भी उतना ही तकलीफदेह है। क्योंकि गुलामी ने हमें कई ऐसे जख्म दिए हैं जो सदा ही रिसते रहेंगे। और देश की आज़ादी के अंदोलन पर जिस घटना का सबसे ज्यादा असर हुआ वह ‘ज़लियांवाला बाग का नरसंहार’ ही था। इस हत्याकाण्ड ने हमारे देश के इतिहास की सारी धराओं को ही बदलकर रख दिया। इस घिनौने हत्याकाण्ड के पीछे ब्रिटिश सरकार का काला कानून ‘रोल्ट एक्ट’ था। जिसका पूरे देश में विरोध हो रहा था। यह कानून देश की आज़ादी के लिए चल रहे अंदोलनों को बंद करवाने के लिए बनाया गया था। ब्रिटेन सरकार किसी भी तरह से आज़ादी अंदोलन को रोकना चाहती थी। इसलिए प्रशासन को अंदोलन एवं अंदोलनकारियों को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा अधिकार प्रदान किए हुए थे। इसके तहत अंग्रेज़ सरकार पिक की आज़ादी पर भी रोक लगा सकती थी, अंदोलन के मुख्य नेताओं को बिना मुकद्मा दर्ज किए जेल में डाल सकते थे, लोगों को बिना वारंट के गिरपफ्तार कर सकते थे। 

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यह साफ था कि रोल्ट एकट नामक काले कानून का विरोध होना ही होना था। क्योंकि इसके विरोध में पूरा देश एक साथ खड़ा था। पूरे देश में लोगों ने जगह-जगह इसके खिलापफ गिरपफ्तारियां दी। बढ़ रहे अंदोलन को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने बहुत ही सख्त कदम उठाया। पंजाब के बड़े लीडर डॉ. सत्या पाल व सैपूफदीन किचलू को अमृतसर के डिपटी कमिश्नर ने बिना किसी मंजूरी के नज़रबंद कर लिया। इसके विरोध् में देश की जनता ने एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला। पुलिस ने मार्च में इकट्ठा हुई भीड़ को रोकने का प्रयास किया एवं रोकने में कामयाब न होने पर पुलिस ने आगे बढ़ रही भीड़ पर गोलियां चला दी, जिसमें कई लोग मारे गए। 

इस गिरपफ्तारी के रोष में एवं पहले हुए हत्याकाण्ड बारे चर्चा करने हेतु 13 अप्रैल 1919 को वैसाखी वाले दिन अमृतसर के ज़लियांवाला बाग में एक कान्फरेंस बुलाई गई। इस कान्पफरेंस में डॉ. सत्यापाल व सैपूफदीन किचलू की रिहाई एवं काले कानून के विरोध् में चर्चा की जानी थी। जैसे ही अंग्रेज़ प्रशासन को यह समाचार मिला कि ज़लियांवाला बाग में अंदोलनकारी एकत्रित हो रहे हैं, तो प्रशासन ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली। हालांकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। फिर भी सैंकड़े लोग वहाँ एकत्रा हो गए। कान्फरेंस शुरू होने से पहले वहाँ पर करीब 10-15 हज़ार लोग पहुँच चुके थे। इसी दौरान जनरल डायर ने अपनी पफौज समेत पोजीशन ली और बाहर जाने के रास्ते बंद करके वहाँ बैठे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। ज़लियांवाला बाग अंदर जमा हज़ारों लोगों की भीड़ पर डायर की फौज की ओर से 1650 राउंड चलाए गए। जिसमें सैंकडे़ ही लोग शहीद हो गए एवं सैंकड़ों ही लोग भगदड़ मच जाने से या तो मारे गए या पिफर भयंकर रूप में घायल हो गए। कई लोग घबराहट के कारण जान बचाने के लिए ज़लियांवाला बाग के अंदर बने कुएँ में कूद गए। पर ज़ालिमों ने उन लोगों को भी नहीं छोड़ा। कुँआ लाशों से ऊपर तक भर गया था। कुछ ही समय बाद ज़लियांवाला बाग के अंदर नौजवानों, बुजुर्गों एवं औरतों व बच्चों समेत सैंकड़ों ही लाशों के ढेर लग गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उस दिन ज़लियांवाला बाग में 1000 से भी ज्यादा लोग शहीद हुए। और 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इस घटना का बदला लेने के लिए सरदार ऊध्म सिंह ने 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हाल में उस समय के ब्रिटिश लेफिटनेण्ट गर्वनर मायकल ओडवायर को गोलियों से भूनकर ज़लियांवाला बाग के मासूमों की हत्याओं का बदला लिया।

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इस घोर हत्याकाण्ड के बाद देश वासियों की आज़ादी प्राप्त करने के ज़ज्बे पर कोई असर नहीं पड़ा। अपितु सच तो यह है कि इसके बाद देशवासियों के अंदर आज़ादी प्राप्त करने की चाहत तेजी से हिलोरे मारने लगी। असंख्य ही भारत वासियों ने ज़लियांवाला बाग की मिट्टी को माथे पर लगाकर कसम खाई कि वे भारत को अंग्रज़ों की गुलामी से मुक्त कराकर ही दम लेंगे। पूरे देश के बच्चे-बच्चे के अंदर आज़ादी प्राप्त करने का ज़ज्बा ध्ध्क उठा था। और इस दिल दहलाने वाले हत्याकाण्ड ने देश को अनेकों ही क्रांतिकारी दिए जो अपने देश को आज़ाद करवाने के लिए फांसी के तख्त पर झूल गए एवं हमें आज़ाद फिज़ा में सांस लेने का हक प्रदान कर गए। 

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