Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary: मां काली के परम भक्त थे रामकृष्ण परमहंस, जानिए रोचक बातें

रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। परमहंस की मां काली के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था थी। ईश्वर के दर्शन के लिए इन्होंने कम उम्र से ही कठोर साधना करना शुरूकर दिया था।
आज ही के दिन यानी की फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। परमहंस की मां काली के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था थी। लेकिन इसी के साथ रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया था। ईश्वर के दर्शन के लिए इन्होंने कम उम्र से ही कठोर साधना करना शुरूकर दिया था। बताया जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे।
रामकृष्ण परमहंस की जयंती कब
रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन शुक्ल द्वितीया तिथि को बंगाल प्रांत के कामारपुकुर गांव में हुआ था। इसलिए साल 2025 में 190वीं जयंती मनाई जा रही है। रामकृष्ण परमहंस के बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। लेकिन आगे चलकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर अस्तित्व संबंधी परम तत्व यानी परमात्मा का ज्ञान प्राप्त किया। जिसकी वजह से इनको परमहंस कहा गया।
पहला आध्यात्मिक अनुभव
बताया जाता है कि रामकृष्ण परमहंस जब महज 6-7 साल के थे, तो उनको आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। एक दिन सुबह के समय वह खेत में धान की संकरी पगडंडियों पर चावल के मुरमुरे खा रहे थे। उस दौरान मौसम ऐसा था कि मानो अब घनघोर बारिश होगी। तभी उन्होंने देखा कि सारस पक्षी का एक झुंड बादलों की चेतावनी के खिलाफ भी उड़ान भर रहा था। फिर चारों ओर आसमान में काली घटा छा गई।
रामकृष्ण परमहंस की सारी चेतना उस प्राकृतिक मनमोहक दृश्य में समा गईं। रामकृष्ण को भी कोई सुधबुध नहीं रही और अचेत होकर गिर पड़े। बताया जाता है कि यहीं से रामकृष्ण परमहंस का पहला आध्यात्मिक अनुभव था। जिससे उनके आगे की आध्यात्मिक दिशा तय हुई और इस तरह से कम उम्र में ही परमहंस का झुकाव आध्यात्म और धार्मिकता की ओर हुआ।
मां काली के भक्त थे परमहंस
बता दें कि रामकृष्ण परमहंस जब 9 साल के थे, तब उनका जनेऊ संस्कार हुआ था। फिर वैदिक परंपरा के मुताबिक वह धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ करने व कराने योग्य हो गए। रानी रासमणि द्वारा कोलकाता के बैरकपुर में हुगली नदी के किनारे दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया था। जिसकी देखभाल की जिम्मेदारी रामकृष्ण के परिवार को थी। इस तरह से रामकृष्ण भी मां काली की सेवा करने लगे और पुजारी बने। साल 1856 में रामकृष्ण को मां काली के इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त हो गए। फिर वह मां काली की साधना में रम गए। बताया जाता है रामकृष्ण परमहंस को मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे।
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