12वीं कक्षा में हैं तो इस साल से लागू होने जा रहे कॉलेज दाखिले संबंधी नये नियमों को जान लें

हम आपको बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों को स्नातक पाठ्यक्रमों में छात्रों के दाखिले के लिए विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) में प्राप्त अंकों का उपयोग करना होगा।
12वीं कक्षा की परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों पर मानसिक दबाव रहता है कि 100 प्रतिशत या कम से कम 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक लायें क्योंकि तभी उन्हें अच्छे कॉलेजों या पाठ्यक्रमों में प्रवेश मिल पाता है। दरअसल कॉलेजों की कट-ऑफ इतनी ज्यादा जाती है कि दिल्ली में तो खासतौर पर 85 प्रतिशत तक अंक लाने वाले बच्चे भी कॉलेजों में दाखिला लेने से चूक जाते हैं। ऐसे में सोचिये 60-70 प्रतिशत अंक लाने वाले बच्चों की मनोदशा क्या होती होगी। अब इस दिशा में एक नयी और बड़ी पहल हुई है जिससे छात्रों पर से मानसिक दबाव कम होने के आसार हैं।
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हम आपको बता दें कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने कहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों को स्नातक पाठ्यक्रमों में छात्रों के दाखिले के लिए विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) में प्राप्त अंकों का उपयोग करना होगा। उन्होंने कहा कि जुलाई के पहले सप्ताह में सीयूईटी का आयोजन किया जाएगा। इसका मतलब है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों के पात्रता मानदंडों को छोड़कर छात्रों के दाखिले में 12वीं कक्षा में प्राप्त अंकों का कोई असर नहीं पड़ेगा। यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार ने कहा, 'वर्ष 2022-23 शैक्षणिक वर्ष से राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी स्नातक एवं परास्नातक कोर्स के लिए सीयूईटी का आयोजन करेगी। सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों में दाखिला देने के लिए सीयूईटी में प्राप्त अंकों पर विचार करना होगा।'
हम आपको बता दें कि 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को यूजीसी से आर्थिक सहायता मिलती है। इस नाते यूजीसी के इस फैसले के दायरे में जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी भी आ गये हैं। यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार ने कहा है कि सीयूईटी का पाठ्यक्रम एनसीईआरटी के 12वीं कक्षा के सिलेबस से मिलता-जुलता ही होगा। सीयूईटी में सेक्शन-1ए, सेक्शन-1बी, समान्य परीक्षा और पाठ्यक्रम-विशिष्ट विषय होंगे। सेक्शन-1ए अनिवार्य होगा, जोकि 13 भाषाओं में होगा और उम्मीदवार इनमें से अपनी पसंद की भाषा का चयन कर सकते हैं। यूजीसी अध्यक्ष ने जानकारी दी है कि छात्रों के पास अंग्रेजी, हिंदी, असमी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओडिया, पंजाबी, तमिल, तेलुगु और उर्दू का विकल्प रहेगा। यूजीसी अध्यक्ष ने स्पष्ट किया है कि सीयूईटी का विश्वविद्यालयों की आरक्षण नीति पर कोई प्रभाव नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा है कि सीयूईटी के बाद किसी भी केंद्रीय काउंसलिंग का आयोजन नहीं होगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भारतीय विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने के लिए सीयूईटी से छूट होगी।
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वहीं इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय बटी हुई है। कुछ का मानना है कि इससे उन स्कूल बोर्ड के विद्यार्थियों को नुकसान होगा जहां दूसरी किताबों से पढ़ाई कराई जाती है। ‘नेशनल प्रोग्रेसिव स्कूल कॉन्फ्रेंस’ की प्रमुख सुधा आचार्य ने कहा, “कई राज्य बोर्ड एनसीईआरटी की किताबों का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि कुछ के पास अपनी किताबें हैं। सीबीएसई, एनसीईआरटी की पुस्तकों का उपयोग करता है जो प्रतिस्पर्धा के प्रति अधिक प्रगतिशील हैं।” उन्होंने कहा, “एनसीईआरटी की किताबें बहुत मानकीकृत हैं और वे प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा लिखी गई हैं। ICSE बोर्ड के पास अलग-अलग किताबें हैं और वहां के छात्रों को नुकसान हो सकता है।” हालांकि उत्तर प्रदेश व राजस्थान बोर्ड में भी एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जाती हैं।
ICSE स्कूल की एक प्रधानाचार्य ने नाम न उजागर करने के आग्रह पर एक समाचार एजेंसी से कहा कि ऐसा लगता है कि सीयूईटी, खासकर ICSE बोर्ड के छात्रों के लिए नुकसानदेह होगा, लेकिन उन्होंने कहा कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अभी इंतजार करना बेहतर होगा। इसी तरह दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेश झा ने कहा कि सीयूईटी ग्रामीण क्षेत्रों और अन्य राज्य बोर्डों से आने वाले छात्रों के लिए नुकसानदेह होगा। उन्होंने कहा, “कोचिंग संस्थानों ने सीयूईटी के लिए कोचिंग देना शुरू कर दिया है। इसका मतलब है कि शहरी क्षेत्रों के विद्यार्थियों और जिनके पास संसाधन हैं, वे लाभान्वित होंगे।’ दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने भी प्रोफेसर राजेश झा से सहमति जताते हुए कहा कि वे सभी पर एक जैसा पाठ्यक्रम थोप रहे हैं। उन्होंने कहा, ''शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है और देश में अलग अलग राज्य बोर्ड हैं।”
बहरहाल, देखना होगा कि इस सत्र से शुरू होने जा रहे सीयूईटी से छात्रों को कितना लाभ हो पाता है। वैसे जब भी कोई नयी पहल होती है तो उसके समर्थन और विरोध में आवाजें उठती ही हैं। फिलहाल यह तो लग ही रहा है कि कम से कम छात्रों पर 12वीं कक्षा में जो 100 प्रतिशत अंक लाने का दबाव होता है उससे वह राहत महसूस कर रहे होंगे।
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