Dattatreya Jayanti 2025: आत्मज्ञान, योग और प्रकृति से जुड़ाव का संदेश, दत्तात्रेय जयंती पर विशेष पूजन

Dattatreya Jayanti 2025
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शुभा दुबे । Dec 4 2025 11:39AM

भगवान दत्तात्रेय को योगियों का गुरु, त्रिगुणात्मक पुरुष और गुरु परंपरा के आदि गुरु माना जाता है। उनकी उत्पत्ति देवी अनसुया और ऋषि अत्रि के घर हुई थी। कथा के अनुसार, त्रिदेव उनकी महान तपस्या और पतिव्रता शक्ति की परीक्षा के लिए आए थे और अनसुया की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने संयुक्त रूप में दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया।

दत्तात्रेय जयंती को भगवान दत्तात्रेय के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय त्रिदेव— ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। माना जाता है कि उन्होंने मानव जीवन को ज्ञान, योग, भक्ति, संयम और प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा दी। यह जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, जो साधकों, योगियों, सन्यासियों और भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र दिन होता है।

भगवान दत्तात्रेय का परिचय

भगवान दत्तात्रेय को योगियों का गुरु, त्रिगुणात्मक पुरुष और गुरु परंपरा के आदि गुरु माना जाता है। उनकी उत्पत्ति देवी अनसुया और ऋषि अत्रि के घर हुई थी। कथा के अनुसार, त्रिदेव उनकी महान तपस्या और पतिव्रता शक्ति की परीक्षा के लिए आए थे और अनसुया की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने संयुक्त रूप में दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया।

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दत्तात्रेय जयंती का महत्व

यह दिन आत्मज्ञान, योग साधना और गुरु कृपा प्राप्त करने का विशेष पर्व माना जाता है। दत्तात्रेय जयंती पर भक्त भगवान के ज्ञान, त्याग, वैराग्य और प्रकृति से सीखने वाली जीवन शैली को आत्मसात करने का प्रयास करते हैं।

इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं, दत्तात्रेय चालीसा और स्तोत्र का पाठ करते हैं, आध्यात्मिक साधना और ध्यान में समय बिताते हैं।

भगवान दत्तात्रेय ने प्रकृति को अपना गुरु मानकर 24 गुरुओं से जीवन के सत्य सीखने की प्रेरणा दी। उनके प्रमुख संदेश हैं- प्रकृति हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है। योग, ध्यान और आत्मचिंतन जीवन को सार्थक बनाते हैं। भौतिक सुखों की लालसा त्यागकर ज्ञान और संतोष की ओर बढ़ना चाहिए। गुरु का महत्व जीवन के पथ को प्रकाशित करने में अहम होता है।

दत्तात्रेय जयंती पूजन विधि इस प्रकार है-

-मंदिरों में भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र की पूजा की जाती है। मंत्र—“ॐ द्रम दत्तात्रेयाय नमः” का जाप किया जाता है।

-भक्त पूर्णिमा का व्रत रखते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।

-गिरनार (गुजरात), औंढा नागनाथ (महाराष्ट्र), पिथापुरम (आंध्र प्रदेश) और नारायणपुर (कर्नाटक) जैसे स्थानों पर विशेष मेले और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं।

-इस दिन साधक गहरी योग साधना और ध्यान करके आंतरिक शांति और ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

यह पर्व केवल धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि यह मानव जीवन को सरलता, सद्गुण, आत्मज्ञान और गुरु भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि अपने भीतर खोजा जाना चाहिए।

दत्तात्रेय जयंती आध्यात्म, योग, गुरु भक्ति और आत्मज्ञान का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति, गुरु और आत्मचिंतन जीवन के वास्तविक मार्गदर्शक हैं। यदि हम भगवान दत्तात्रेय के संदेशों को अपनाएँ, तो हम एक संतुलित, शांत और ज्ञानपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

- शुभा दुबे

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