श्री धुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से मिलेगा सुख ही सुख

शुभा दुबे । Feb 9 2017 12:37PM

मान्यता है कि धुष्मेश्वर महादेव के दर्शन से सभी पाप दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख ही सुख आ जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा बड़ी रोचक है।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में इलोरा गुफाओं के पास स्थित है श्री धुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। मान्यता है कि धुष्मेश्वर महादेव के दर्शन से सभी पाप दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख ही सुख आ जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी कथा इस प्रकार है− दक्षिण देश में देवागिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों में बहुत प्यार था और दोनों ही सुखपूर्वक रह रहे थे। उन्हें एक ही दुख था कि उनकी कोई संतान नहीं थी। सुधर्मा ज्योतिषी भी था, उसने अपने ज्योतिष गणित से यह पता लगा लिया था कि सुदेहा से उसे संतान सुख नहीं मिलेगा और यह बात उसने सुदेहा को भी बता दी थी। ऐसे में सुदेहा ने अपनी बहन धुश्मा से दूसरा विवाह करने का प्रस्ताव अपने पति के समक्ष रखा तो पहले तो सुधर्मा ने मना कर दिया लेकिन बाद में वह सुदेहा की जिद के आगे मान ही गया।

धुश्मा भी अच्छे संस्कारों वाली थी वह नित्य 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका विधिवत पूजन कर उन्हें जल में प्रवाहित करती थी। भगवान शिवजी की कृपा से कुछ ही दिनों में धुश्मा गर्भवती हो गई और उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पूरा परिवार खुश हो गया लेकिन कुछ दिनों बाद सुहेहा को अपना बांझपन खलने लगा और उसे सौतिया डाह सताने लगी। जैसे−जैसे धुश्मा का पुत्र बड़ा होता गया वैसे−वैसे सुदेहा की जलन भी बढ़ती गई। धुश्मा का पुत्र जवान हो गया और उसका विवाह भी हो गया। सुदेहा अब स्वयं को असुरक्षित मानने लगी। वह सोचती रहती कि धुश्मा का पुत्र और उसकी पत्नी उसकी सारी संपत्ति हड़प लेंगे।

एक दिन जब रात में धुश्मा का पुत्र अपनी पत्नी के साथ सो रहा था तभी सुदेहा ने उसे मार डाला और उसका शव उसी तालाब में ले जाकर डाल दिया जिसमें धुश्मा रोज पार्थिव शिवलिंगों को प्रवाहित करती थी। सुबह धुश्मा की बहु ने अपने पति को गायब पाया और बिस्तर पर खून देखा तो वह रोने लगी। लेकिन धुश्मा अपने नित्य कार्यों में लगी रही और उसने 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की और उन्हें तालाब में छोड़ने ले गई। तालाब में शिवलिंगों को प्रवाहित करने के बाद जब वह घर लौटने लगी तो उसने देखा कि तालाब में से उसका पुत्र जीवित होकर बाहर निकल आया। इस सारी घटना को धुश्मा ने भगवान शिव की ही लीला माना। इस पर प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने धुश्मा से वर मांगने को कहा तो धुश्मा ने कहा कि भगवन् आप यहीं इसी स्थान पर  

सदा के लिए वास करें मैं आपसे ऐसा वरदान मांगती हूं। तभी ऐसा ही होगा कहकर भगवान शिवजी ज्योतिर्लिंग के रूप में बदल गए और धुश्मा ने उनकी विधिवत प्रतिष्ठा कर दी।

शुभा दुबे

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