Gyan Ganga: हनुमान जी ने ऐसी कौन सी कथा माता जानकी को सुनाई थी जिससे समाप्त हुए थे सभी दुःख?

Hanuman ji
सुखी भारती । Feb 17 2022 12:39PM

श्रीहनुमान जी ने सोचा, कि माँ जानकी उहापोह की स्थिति में हैं। वे तो बिचारी पहले ही, अपने मन पर विभिन्न प्रकार के कटु भावों के अत्याचार से त्रस्त हैं। और उनके पीड़ा से सना व छलनी हृदय, शीघ्र से शीघ्र, कैसे शाँत हो, मुझे यही उपाय करना चाहिए।

श्रीहनुमान जी ने, जो अँगूठी माता जानकी जी के श्रीचरणों में डाली, उस पर राम नाम अंकित देख कर माता सीता जी को परम आश्चर्य हुआ। वे सोचने लगी, कि श्रीराम जी की यह अँगूठी, यहाँ भला कैसे आई? लेकिन आश्चर्य से भी बढ़ कर उनके मन में आनंद व हर्ष छा गया। माँ जानकी की मनःस्थिति है ही ऐसी, कि वे पल प्रतिपल अपने मन की अवस्था को भिन्न-भन्न मुद्रायों में पा रही हैं। कारण कि अभी-अभी तो, उनके मन में हर्ष था, और अभी-अभी, हृदय फिर से विषाद से भर गया-

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: माता सीता का दुख देखकर त्रिजटा ने क्या कदम उठाया ?

‘तब देखी मुद्रिका मनोहर।

राम नाम अंकित अति सुंदर।।

चकित चितव मुदरी पहिचानी।

हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।।’

माता सीता जी जब से श्रीराम जी से विलग हुई हैं, तब से उनके जीवन में सिवा कष्ट के, और भला प्राप्त ही क्या हुआ था। सोने के मृग से लेकर, सोने की लंका की यात्रा में, उनका समय इतना पीड़ा से भरा निकला, कि प्रभु के बिरह के, यह चँद मास, पता नहीं कितने युगों के समान बीते। हर कदम पर तो, उन्हें धोखे का शिकार होना पड़ा था। और अब उनके श्रीचरणों में गिरी अँगूठी को जब उन्होंने देखा, तो हर्ष के साथ-साथ, वे फिर से निराश हो उठी। उन्हें लगा, कि अवश्य ही यह कोई छलावा है। रावण कोई न कोई षड़यंत्र कर रहा है। लेकिन तभी माँ जानकी जी के हृदय में यह विचार कूंदा, कि नहीं, नहीं! मैं शायद ठीक नहीं सोच पा रही हूँ। कारण कि रावण यह अँगूठी माया से तो निर्मित कर ही नहीं सकता। क्योंकि यह अँगूठी तो माया के प्रभाव से परे है। तो फिर यह अँगूठी यहाँ कहाँ से आ गई। कहीं ऐसा तो नहीं, कि यह अँगूठी, रावण श्रीराम जी से छीन कर, अथवा छल से यहाँ ले आया। नहीं, नहीं! यह भी संभव नहीं। कारण कि श्रीराम जी को, न तो छला जा सकता है, और न ही, उन्हें युद्ध में जीता जा सकता है-

‘जीति को सकइ अजय कघुराई।

माया तें असि रचि नहिं जाई।।

सीता मन बिचार कर नाना।

मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।’

श्रीहनुमान जी ने सोचा, कि माँ जानकी उहापोह की स्थिति में हैं। वे तो बिचारी पहले ही, अपने मन पर विभिन्न प्रकार के कटु भावों के अत्याचार से त्रस्त हैं। और उनके पीड़ा से सना व छलनी हृदय, शीघ्र से शीघ्र, कैसे शाँत हो, मुझे यही उपाय करना चाहिए। तो क्या मुझे माता सीता के समक्ष उपस्थित होकर, अपना परिचय दे देना चाहिए? अथवा कोई और उपाय करना चाहिए। श्रीहनुमान जी मन ही मन यह चिंतन करने लगे। श्रीहनुमान जी तो पूर्णतः श्रीराम जी को समर्पित हैं। फिर भला उनसे निर्णय कैसे अनुचित होना था। श्रीहनुमान जी ने सोचा, कि माता सीता जी, अँगूठी को देखने के पश्चात भी संदेह के घेरे को पाटने में, असपफ़ल सिद्ध हो रही हैं। ऐसे में हृदय की विचलता, घुटन व पीड़ा मिटाने का एक ही कारागार उपाय है, और वह उपाय है, प्रभु श्रीराम जी के गुणों व लीलायों का श्रद्धा विश्वास से श्रवण करना। ‘श्रीराम कथा’ को श्रवण करना, मानों यूँ है, जैसे तपते पैर के छालों पर, कोई मल्लम लगादे। अथवा युगों से प्यासे, किसी मानव को अमृत के फुँहारे में नहला दिया जाये। श्रीहनुमान जी ने, माता सीता जी के संदर्भ में भी यही उपाय अपनाया। वे वृक्ष पर बैठे बैठे भगवान श्रीराम जी की कथा गाने लगे। और माता सीता जी के कोमल व पावन हृदय पर, इसका श्रेष्ठतम व अचूक प्रभाव हुआ। जिसे सुन माँ जानकी जी का सारा दुख भाग गया। वे कान और मन लगाकर, संपूर्ण श्रीराम कथा श्रवण करने लगी। श्रीहनुमान जी ने भी आदि से लेकर आज तक की संपूर्ण कथा गाकर कह डाली-

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: सीता जी केवल एक नारी मात्र नहीं हैं, अपितु साक्षात आदि शक्ति का ही रुप हैं

‘रामचंद्र गुन बरनैं लागा।

सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।

आदिहु तें सब कथा सुनाई।।’

वाह! क्या सुंदर कथा चल रही है। सोचिए, माँ जानकी जी से दुखी व पीडि़त, उस समय संसार में कौन होगा। लेकिन उनका दुख भी, श्रीराम कथा श्रवण करने से, अगर हरा गया, तो निश्चित ही ऐसी कथा के क्या कहने। विचार करने योग्य है, कि जैसे माँ जानकी पीडि़त हैं, ठीक वैसे ही प्रभु से बिछुडने, और अपने विकारों के प्रभाव के चलते, हम भी तो परेशान व दुखी हैं। तो क्यों न हम भी ऐसी ही कथा का रसपान किया करें। कोई आवश्यक नहीं कि हमें कथा सुनने के लिए, बड़े-बड़े पण्डालों वाले महात्मायों की खोज करनी है। जिनके सिंहासन स्वर्ण जडि़त व ऊँचे से भी ऊँचे हों। आप श्रीहनुमान जी का उदाहरण ही देख लीजिए न। वे तो किसी सिंहासन पर न चढ़ कर, पेड़ की किसी खुरदरे से तने पर बैठे हैं। उनके नीचे तो कोई कपड़े तक का भी आसन नहीं। सच मानिए, श्रीहनुमान जी जैसा, अगर कोई संत मिल गए, तो वे जब कथा सुनायेंगे, तो हमारे हृदय की पीड़ा निश्चित ही दूर होगी। माता सीता का हृदय भी तो धीरे-धीरे शाँत हो ही रहा है। बस आवश्यक्ता है, तो ऐसे किसी पूर्ण संत को खेजने की। जिसने प्रभु की कथा का व्यापार न बनाया हो। अपितु वह संत, प्रभु के साथ एकाकार हों।

आगे श्रीहनुमान जी द्वारा क्या कदम उठाया जाता है, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।

- सुखी भारती

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़