सौभाग्य की देवी मां शैलपुत्री की पूजा से मिलते हैं सभी सुख

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माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ है इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। माता शैलपुत्री की विधिवत आराधना से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है और घर में खुशहाली आती है। इनकी अर्चना से मूलाधार चक्र जागृत होते हैं जो अत्यन्त शुभ होता है।

नवरात्र का पहला दिन देवी शैलपुत्री का होता है। बैल पर सवार मां शैलपुत्री का रूप अद्भुत है। भक्त उन्हें वृषारूढ़ा तथा उमा के नाम से भी जानते हैं। तो आइए हम आपको देवी शैलपुत्री के स्वरूप तथा उनकी पूजा विधि के बारे में चर्चा करते हैं।

जानें मां शैलपुत्री का स्वरूप

माता शैलपुत्री को पर्वतों के राजा हिमालय की बेटी हैं। देवी का वाहन बैल या वृषभ है इसलिए उनका एक नाम वृषोरूढ़ा भी है। साथ ही भक्त उन्हें उमा के नाम से जानते हैं। नवरात्र में मां शैलपुत्री की पूजा पहले दिन की जाती है। माता दाहिनी हाथ में सदैव त्रिशूल धारण की रहती हैं तथा इसी त्रिशूल से वह शत्रुओं का नाश करती हैं। उनके बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है जो शांति तथा ज्ञान का प्रतीक है।

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शैलपुत्री से जुड़ी पौराणिक कथा

कथा में कहा गया है कि एक बार प्रजापति दक्ष ने बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में भगवान शंकर और माता सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया था। माता सती भी उस यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन शंकर जी उन्हें समझाया प्रजापति दक्ष हमसे नाराज हैं इसलिए उन्होंने हमें नहीं बुलाया। लेकिन माता सती ने नहीं माना और भगवान शंकर की अनुमति लेकर यज्ञ में चली गयीं। यज्ञ में उनकी मां के अलावा कोई भी परिवार का सदस्य उनसे बात नहीं कर रहा था। अपने परिवार का यह व्यवहार देखकर सती बहुत दुखी हुईं। इसी समय प्रजापति दक्ष शंकर भगवान को अपशब्द कह कर उन्हें अपमानित करने लगे। शंकर जी का अपमान सती सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ में कूदकर अपना शरीर त्याग दिया। जब भगवान शंकर को यह पता चला तो वह दुखी हुए और उन्होंने अपनी सेना को भेजकर यज्ञ समाप्त करवा दिया। इस घटना के बाद माता सती ने शैलराज हिमालय के यहां दूसरा जन्म लिया। हिमालय के यहां जन्म के उपरांत वह 'शैलपुत्री' कहलायीं। उपनिषदों में इन्हें हैमवती भी कहा गया है।

मां शैलपुत्री के पूजा का महत्व

माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ है इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। माता शैलपुत्री की विधिवत आराधना से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है और घर में खुशहाली आती है। इनकी अर्चना से मूलाधार चक्र जागृत होते हैं जो अत्यन्त शुभ होता है। साथ ही नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा से चन्द्रमा से जुड़े सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 

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पूजा की विधि

1. नवरात्र के पहले दिन सौभाग्य की देवी की पूजा सच्चे मन से करें।

2. प्रातः उठकर घर की साफ-सफाई कर, स्नान करें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

3. घर के मंदिर में साफ चौकी पर माता शैलपुत्री की फोटो रखें और कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर पान के पत्ते, नारियल और स्वास्तिक भी बनाएं।

4. उसके बाद मां शैलपुत्री को माला चढ़ाकर पास में ही दीये जलाएं। यह ध्यान रखें कि मां शैलपुत्री को सफेद फूल बहुत पसंद हैं तो उसे उनकी फोटो के पास रहने दें।

5. अब पूजा आरम्भ करें। अर्चना शुरू करने से पहले सभी तीर्थों, नदियों और दिशाओं का आह्वाहन करें और मां शैलपुत्री की कथा सुनें। कथा के समाप्त होने के बाद में अंत में आरती उतारें। 

6. आरती के बाद देवी को सफेद मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद बांटें और रात में भी मां की फोटो के पास कपूर जलाएं।

प्रज्ञा पाण्डेय

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