सिनेमा में बदलाव आया है, अब फिल्में नाम से नहीं अच्छे काम से चलती हैं: प्रोसेनजीत

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[email protected] । Nov 27 2019 3:57PM

प्रोसेनजीत चटर्जी ने इस सत्र में न्यूआंसेस आफ एक्टिंग में कहा कि यही कारण है कि आज नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी भारतीय सिनेमा का चेहरा बन जाता है। यह सब बदलाव देखकर अच्छा लगता है।

पणजी। बंगाली और हिंदी सिनेमा में अपनी अहम भूमिका के लिए पहचाने जाने वाले बंगाली अभिनेता प्रोसेनजीत चटर्जी का कहना है कि पिछले 15 सालों में भारतीय और विशेषकर हिंदी सिनेमा में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं और अब फिल्में हीरो हिरोइन के नाम से नहीं बल्कि अच्छे काम और अच्छी कहानी के दम पर चलती हैं।

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बंगाली और हिंदी फिल्मों के प्रमुख हस्ताक्षर विश्वजीत चटर्जी के पुत्र और ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म छोटो जिज्ञासा  से बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले प्रोसेनजीत चटर्जी ने यहां 50वें अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्मोत्सव में मास्टर क्लास  सत्र में कहा कि हिंदी, बंगाली, मराठी या किसी भी अन्य सिनेमा की बात कर लीजिए, आज हीरो हिरोइन के नाम से नहीं बल्कि अच्छे अभिनेता और अच्छी कहानी के दम पर फिल्म चलती है। उन्होंने उपस्थित फिल्म प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा,  पिछले 15 साल में भारतीय सिनेमा में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। अच्छे हीरो नहीं अच्छे अभिनेता की मांग बढ़ी है। 

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प्रोसेनजीत चटर्जी ने इस सत्र में न्यूआंसेस आफ एक्टिंग में कहा कि यही कारण है कि आज नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी भारतीय सिनेमा का चेहरा बन जाता है। यह सब बदलाव देखकर अच्छा लगता है। आज फिल्म नवाजुद्दीन के नाम से बिकती है, उसके लुक से नहीं। वह कहते हैं कि नए कलाकारों के लिए सिनेमा में किस्मत आजमाने के लिए यह सही समय है। बिमल रॉय की दुती पता , डेविड धवन की आंधियां  और ऐश्वर्या राय के साथ चोखेर बाली  में अभिनय कर चुके प्रोसेनजीत का फिल्मी सफर 30 से 35 सालों के बीच और 300 से अधिक फिल्मों तक फैला हुआ है।

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प्रोसेनजीत को रितुपर्णो घोष की दोसार फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में विशेष ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने प्रसिद्ध बांग्ला निर्देशक गौतम घोष की फिल्म  मोनेर मानुष  में 19वीं सदी के प्रख्यात आध्यात्मिक नेता, गायक और लोक गायक लालोन की भूमिका अदा की थी। इसके साथ ही जातिश्वर में  एंटनी फिरंगी  की उनकी भूमिका को काफी सराहा गया था जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किया गया था। वह कहते हैं, सिनेमा मेरे लिए जिंदगी है। पिछले 30 सालों में बदलाव केवल इतना आया है कि पहले मैं प्रोडक्शन, डायरेक्टर को देखकर फिल्में साइन करता था लेकिन अब मुख्य फोकस उन भूमिकाओं को अदा करने पर है जो आज तक दर्शकों के सामने नहीं आ पायी हैं। मॉडरेटर सचिन चेत्ते के साथ बातचीत में उन्होंने कहा,  बेहतर से बेहतर करने की भूख से ही उन्हें अभिनय के लिए उर्जा मिलती है। 30 साल के फिल्मी कैरियर के बाद भी किसी भूमिका को अदा करने की बची इच्छा का खुलासा करते हुए प्रोसेनजीत कहते हैं,  जलसाघर  जैसी भूमिका का सपना अभी भी मेरे भीतर दबा हुआ है।

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