कट्स ने कहा कि डीपीडीपी के मसौदे की प्रस्तावना में निजता के अधिकार को छोड़ दिया गया है

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कट्स ने कहा कि मसौदे में पहले से प्रस्तावित आंकड़ा सुरक्षा नियामक को एक बोर्ड के साथ बदलकर नियामक, पर्यवेक्षी और प्रवर्तन तंत्र को कमजोर कर दिया गया है, जो सीधे सरकार के नियंत्रण में होगा।

मसौदा डिजिटल व्यक्तिगत आंकड़ा संरक्षण विधेयक (डीपीडीपी) की प्रस्तावना में निजता के अधिकार को छोड़ दिया है और यह सरकार को अनावश्यक शक्तियां देता है। पैरोकारी समूह कट्स इंटरनेशनल ने यह दावा किया। कट्स ने कहा कि मसौदे में पहले से प्रस्तावित आंकड़ा सुरक्षा नियामक को एक बोर्ड के साथ बदलकर नियामक, पर्यवेक्षी और प्रवर्तन तंत्र को कमजोर कर दिया गया है, जो सीधे सरकार के नियंत्रण में होगा। कट्स ने एक बयान में कहा, अपने पिछले संस्करण से इतर यह मसौदा विधेयक अपनी प्रस्तावना में निजता के मौलिक अधिकार का उल्लेख नहीं करता है।

यह आंकड़ा संरक्षण की जगह डिजिटल व्यक्तिगत आंकड़ों संरक्षण की बात कर (गैर-व्यक्तिगत आंकड़ों को छोड़कर) कानून के दायरे को सीमित करता है। पैरोकारी समूह ने कहा कि ऐसा करके विधेयक में व्यक्तिगत आंकड़ा, विशेष रूप से संवेदनशील व्यक्तिगत आंकड़ा के अलग वर्गीकरण को हटा दिया गया है। इंटरनेट फ़्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने कहा कि अब प्रस्तावित आंकड़ा सुरक्षा बोर्ड के साथ नियामक निकाय काफी कमजोर पड़ गया है।

आईएफएफ ने कहा, इसमें स्वायत्तता और स्वतंत्रता का अभाव है, और इसे शर्तों के आधार पर बनाया और नियुक्त किया जाएगा। क्या ऐसा बोर्ड सार्वजनिक प्राधिकरणों से उचित रूप से अनुपालन करवा सकता है। सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर और प्रमुख अरुण प्रभु ने कहा कि डीपीडीपी के ताजा संस्करण को एक छोटे और सरल दस्तावेज के रूप में तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अपने फायदे हैं, लेकिन विधेयक को अपनाने से पहले कुछ हिस्सों को और बेहतर बनाने की जरूरत है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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