बड़ी इकाइयों द्वारा भुगतान नहीं होने से देश में MSME के हज़ारो करोड़ डिले पेमेन्ट मे फंसे: मगनभाई एच.पटेल

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बड़ी कंपनियां और सार्वजनिक उपक्रम कंपनियां अक्सर डिले पेमेन्ट के लिए जिम्मेदार होती हैं क्योंकि ये कंपनियां बड़े ऑर्डर देती हैं, थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन होने के बाद भी ये कंपनियां दो-तीन महीने तक माल नहीं उठाती हैं।

(प्रेस विज्ञप्ति)  ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन के अध्यक्ष मगनभाई पटेल ने डिले पेमेन्ट के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और MSME के केंद्रीय मंत्री नारायण राणे एव इस विभाग के संबंधित केंद्रीय मंत्रियों को अलग से पत्र लिख कर बताया है की SSI से MSME बनने के बाद आज देश में 6 लाख हजार करोड़ से ज्यादा MSME का पैसा डिले पेमेन्ट मे फंसा हुआ है। जिसमे बड़ी इकाइयों,सरकारी कंपनियों द्वारा दो-दो साल के बाद भी माल ख़राब आना, देरी से आना जैसे गलत बहाने निकालने पर आज डिले पेमेन्ट के मामलों का निपटारा नहीं किया जा सका। बड़ी कंपनियां और सार्वजनिक उपक्रम कंपनियां अक्सर डिले पेमेन्ट के लिए जिम्मेदार होती हैं क्योंकि ये कंपनियां बड़े ऑर्डर देती हैं, थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन होने के बाद भी ये कंपनियां दो-तीन महीने तक माल नहीं उठाती हैं।

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खरीद ऑर्डर होने के बावजुद भी ऑर्डर केन्सल कर दिया जाता है परिणाम स्वरूप इस माल को स्क्रेप कर दिया जाता है और इससे डिले पेमेन्ट का घाटा होता है। सरकारी नीतिया अच्छी होने के बावजुद बड़ी इकाइयां वकीलों को रख कर पेमेन्ट का भुगतान करती नहीं है। ऐसी अनेक शिकायते ऑल इण्डिया एमएसएमई फेडरेशन के पास आती है लेकिन फेडरेशन ऐसे प्रश्नो के लिए मजबूर है। हमारी सरकार से विनंती है की ऐसे मामलो को गंभीरता से लेकर इनके क्रियान्वयन को प्राथमिकता दे ताकि MSME अपने व्यवहार को बचाकर उद्योग चला सकें और इकाईया बीमार न बनें जो कि सरकार की विशेष प्राथमिकता है जिसे लागू करने की जरूरत है। देश की जीडीपीमें MSME का २८ फीसदी योगदान है, देश की उत्पादन क्षमता में 45 फीसदी और निर्यात में 40 फीसदी का योगदान है।एक अनुमान के मुताबिक एमएसएमई देश में 20 करोड़ लोगों को डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रोजगार मुहैया कराते हैं। इस दृष्टि से आज एमएसएमई देश में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता क्षेत्र है जो सरकार को राजस्व उत्पन्न कराता है। देश की ८० प्रतिशत आबादी जीवन जरुरी आवश्यक चीजे MSME की उपयोग करती है जो सस्ती होने के साथ-साथ उच्च गुणवत्तावाली होती है और जिसमे उच्च जनशक्ति होती है। 

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इसके अलावा ऑटो सेक्टर, पब्लिक अंडरटेकिंग, टेक्सटाइल, पेट्रोलियम उत्पाद, प्लास्टिक, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग, फाउंड्री, एयरोनॉटिक्स, मरीन, ट्रांसपोर्टिंग, रेलवे जैसी बड़ी इकाइयां जैसी कई कंपनियां हैं जो एमएसएमई से सामान खरीदती हैं और वर्ष २००६ में लागू हुए एमएसएमई विकास अधिनियम के तहत, खरीदार आपूर्तिकर्ता को खरीद के ४५ दिनों के भीतर भुगतान करने के लिए बाध्य है।डिले पेमेन्ट अधिनियम के नियमन अनुसार भुगतान अवधि ४५ दिन के भीतर हैं।यदि इस अवधि के भीतर भुगतान नहीं किया जाता है, तो उसे रिजर्व बैंक की चक्रवृद्धि ब्याज दर के अनुसार पार्टी को ब्याज सहित राशि का भुगतान करना होता है, लेकिन आज कई बड़ी इकाइयों और कंपनियों की ओर से MSME को लगभग १०० से ज्यादा दिनों में भुगतान मिल रहा है।एमएसएमई इकाइयों को कच्चा माल नकद से खरीदना पड रहा है।

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यहाँ उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है कि लघु उद्योगों के मुद्दों पर ,लघु उद्योग (एसएसआई) बोर्ड की बैठक का उद्घाटन १६.१२.१९९४ को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी.वी.नरसिम्हा रावने किया था जिसमें उस समय के तत्कालीन वित्त मंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी मौजूद थे। बोर्ड की इस बैठक में गुजरात राज्य लघु उद्योग निगम (जीएसएसआईएफ) के अध्यक्ष श्री मगनभाई पटेलने डिले पेमेन्ट के संबंध में जो प्रस्ताव दिया था उसे प्राथमिकता दी गई।  जिसमें उन्होंने इस बोर्ड बैठक में भाग लिया और डिले पेमेन्ट अधिनियम को पेश किया और इन मामलों पर काफी विचार-विमर्श के बाद कानून बनाने का निर्णय लिया गया। इस बैठक में हमारे कई निवेदनों को स्वीकार करते हुए इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए उद्योग आयुक्त की अध्यक्षता में प्रत्येक राज्य में एक फेसिलेट काउन्सिल की रचना की गई जिसमे डिले पेमेन्ट के प्रश्नो के बारेमे निवेदन किये जा सके। परिषद द्वारा इन अभ्यावेदनों के संबंध में विलंब भुगतान में ब्याज सहित राशि पर फेसिलेट काउन्सिल जो निर्णय दे, उस के बाद बड़ी इकाइयां/सार्वजनिक उपक्रम कंपनियां को यदि अपील में जाना चाहती हो तो उच्च न्यायालय में एक निश्चित राशि जमा कर के आगे अपील कर सकती हैं। हालाँकि बहुत अध्ययन के बाद सरकारने कानून को लागू करने के बावजूद भी बड़े व्यवसायी और बिचौलिये लोग एमएसएमई को न्याय नहीं दिला सके।यद्यपि इस समितिने हमारी कई प्रारंभिक बैठकों में प्रतिनिधित्व के बाद एसएसआई के पक्ष में निर्णय देने के बावजुद, बड़ी इकाइयों/सार्वजनिक उपक्रम कंपनियों ने किसी के डर बिना कानून का दुरुपयोग किया है।

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ऑल इंडिया एमएसएमई फेडरेशन के अध्यक्ष श्री मगनभाई एच.पटेलने बताया है की आज देश में तकरीबन MSME के ६ लाख हज़ार करोड़ से ज्यादा रूपये डिले पेमेन्ट मे फसे हुए है, जिस के लिए चार-चार वर्ष तक कोर्ट मे मामले चल रहे है,जिसमें गलत बहाने बताये जाने के कारण भुगतान न होने की वजह से इन मामलों का निपटारा नहीं किया जा सका, जो एक हकीकत है।  कोई भी बड़ा उद्यम हो, एक सार्वजनिक उपक्रम कंपनी हो या एमएसएमई से खरीदारी करने वाली इकाई हो, ये सभी अधिसूचनाएं हैं जो उन कंपनियों की ऑडिट रिपोर्ट में दिखाई जाती हैं यदि भुगतान वित्त मंत्रालय अधिनियम के अनुसार ४५ दिनों से अधिक के लिए देय है।यह कंपनी के चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी या ऑडिटर की जिम्मेदारी होती है, जिसका ऑडिट किसी सरकारी अधिकृत कंपनी द्वारा किया जाना चाहिए और MSME मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को दिया जाना चाहिए।एमएसएमई के मालिक, डिरेक्टर, पार्टनर दिन में दस घंटे काम करते हैं और उनसे जुड़े कार्यालय के कर्मचारियों, तकनीशियनों, इंजीनियरों आदि को समय पर बीमार  एमएसएमई इकाइयों के कारण भुगतान नहीं हो पाता।

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सरकार ने MSME के हितों की रक्षा के लिए MSMED अधिनियम बनाया है।जिस मे भुगतान बाधित होने पर कंपनी क्या कर सकती है, इस पर अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है।दुर्भाग्य से, छोटी कंपनियों को बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, व्यापार को खोने के भय से यह छोटी कंपनिया बड़ी कंपनी के खिलाफ अपने लिए बनाए गए कानून का उपयोग करने के लिए हिचकिचाती है और उनसे सामना करना पसंद नहीं करती। इसके कारण MSME के कई अटके हुए रूपये NPA में परिवर्तित हो जाते हैं, यदि यह भुगतान समय पर किया जाये तो MSME अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं और वित्तीय संकट से बाहर आ सकते हैं।

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सरकार की नीतियां अच्छी हैं लेकिन बड़ी कंपनियां अपने संसाधनों का उपयोग करके छोटे व्यवसायों को भुगतान नहीं करती हैं ऐसी कई शिकायतें हमारे पास  आती हैं।हमारे पास एक ऐसी ही शिकायत है जो इसके साथ संलग्न है ताकि अध्ययन रिपोर्ट के लिए सिस्टम यूनिट को बदला जा सके और एमएसएमई को न्याय मिले।इसलिए ऐसी शिकायतों के निवारण के लिए इसे सरल बनाया जाना चाहिए और एक त्वरित न्याय प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।देश के बड़े उद्योग जिनमें हमेशा के लिए बढ़ने की प्रवृत्ति होती है, उन्हें बैंकों से भारी कर्ज मिलता है और फिर बाद मे डिफॉल्ट हो जाते है और बैंकों के रुपये फंस जाते है जिससे बड़ा NPA होता है।उद्योगों का केवल लंबवत विकास होता है, इसलिए सरकार को इसके बारे मे बहुत गंभीरता से विचार करने की जरुरत है। अगर सरकार ने इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया तो कई एमएसएमई बीमार इकाइयों में तब्दील हो जाएंगे।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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