जनता द्वारा सीधे चुने गये सदन महत्व को बनाये रखा जाना चाहिए: वित्त मंत्री

नयी दिल्ली। लोक सभा की मंजूरी के बाद जीएसटी विधेयक के राज्य सभा में अटक जाने के मद्देनजर वित्त मंत्री अरण जेटली ने सवाल उठाया कि सरकार की आर्थिक पहलों को रोकने के लिए लिए राज्य सभा को किस हद तक इस्तेमाल किया जा सकता है। जेटली ने साथ ही यह भी कहा कि सीधे जनता द्वारा निर्वाचित सदन (लोक सभा) के ‘महत्व’ को हमेशा बनाए रखना चाहिए। जेटली ने पिछले साल मई में भी कहा था कि भारतीय लोकतंत्र के सामने एक गंभीर चुनौती पैदा हो गयी है जहां अप्रत्यक्ष रप से निर्वाचित उपरी सदन (राज्य सभा) सीधे जनता द्वारा चुने गए सदन (लोक सभा) के ‘विवेक’ पर सवाल खड़ा कर रहा है। वित्त मंत्री ने आज कहा कि वह जीएसटी विधेयक पर कांग्रेस से बातचीत करेंगे। उन्होंने यहां एक संगोष्ठी में कहा, ''आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में डालने के लिए हमारे ऊपरी सदन का कहां तक इस्तेमाल किया जा सकता है .. आस्ट्रेलिया में यह बहस चल रही है, ब्रिटेन में कुछ समय पहले यह बहस हुई थी और इटली में भी इसी तरह बहस चल रही है। क्योंकि अंत में सीधे चुने गए सदन का महत्व तो हमेशा बरकार रखना होगा।''
गौरतलब है कि वस्तु एवं सेवा कर विधेयक लोक सभा ने पिछले मई में पारित कर दिया गया। यह विधेयक राज्य सभा में लंबित है। वहां सत्तारूढ राजग का बहुमत नहीं है। कांग्रेस मौजूदा स्वरूप में विधेयक का विरोध कर रही है और उसकी मांग है कि वस्तु एवं सेवा कर की दर की उच्चतम सीमा संविधान संशोधन विधेयक में दर्ज की जाए। उन्होंने कहा कि अब केवल एक मुद्दे पर आपत्ति रह गयी है। इस विधेयक का एक मात्र विरोध कांग्रेस की ओर से हो रहा है।वित्त मंत्री ने कहा कि वह इस उम्मीद के साथ कांग्रेस के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि बजट सत्र के दूसरे हिस्से में विधेयक पारित जो जाए। अधिवेशन का दूसरा हिस्सा 25 अप्रैल से शुरू रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक जीएसटी का सवाल है मैं तर्कसंगत दर के पक्ष में हूं जिसका फैसला जीएसटी परिषद तय करेगी। लेकिन मुझे उम्मीद है कि दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच एक तर्कसंगत दर पर कुछ सहमति बन जाएगी, हम ज्यादा तार्किक रख पर पहुंचने में समर्थ हैं।’’ उन्होंने कहा कि कारपोरेट कर को 25 प्रतिशत पर लाने का विचार प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में शामिल किया गया था जिसे तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा, ‘‘जीएसटी का प्रस्ताव सबसे बड़े चिंदबरम ने आगे बढ़ाया और फिर मौजूदा राष्ट्रपति ने इसे पेश किया जब वह वित्त मंत्री थे। अब इससे जुड़े मुद्दों पर पीछे हटने का कोई मतलब नहीं है।''
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