सरसों की खेती लोकप्रिय होने से कश्मीर में ‘Yellow Revolution’

Yellow Revolution
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कश्मीर के कृषि निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने पीटीआई-को बताया, ‘‘जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की जलवायु परिस्थितियां विविध हैं। किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य के तहत हमने रबी सत्र में सरसों की खेती के रकबे को बढ़ाने की कवायद की।’’

किसानों की आय दोगुनी करने के लिए हजारों हेक्टेयर भूमि को सरसों की खेती के तहत लाये जाने से कश्मीर खामोशी के साथ पीली क्रांति के दौर से गुजर रहा है। पहले कश्मीर में अधिकांश भूमि का उपयोग केवल एक ही फसल धान उगाने के लिए किया जाता था। लेकिन अब किसान देश के अन्य हिस्सों की तरह ही खरीफ और रबी मौसम में फसलें बदल-बदल कर लगा रहे हैं। कश्मीर के कृषि निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने पीटीआई-को बताया, ‘‘जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की जलवायु परिस्थितियां विविध हैं। किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य के तहत हमने रबी सत्र में सरसों की खेती के रकबे को बढ़ाने की कवायद की।’’

वर्ष 2020-21 के महज 30,000 हेक्टेयर से कृषि विभाग घाटी में सरसों की खेती के रकबे को लगभग पांच गुना बढ़ाने में सफल रहा है। वर्ष 2020-2021 में सरसों की खेती का रकबा सिर्फ 30,000 हेक्टेयर था। वर्ष 2021-2022 में हमने सरसों की खेती के तहत 1.01 लाख हेक्टेयर रकबे को लाने का लक्ष्य निर्धारित किया और हासिल किया ... चालू वर्ष 2022-2023 के दौरान हमारे पास 1.40 लाख हेक्टेयर सरसों खेती का रकबा है। चौधरी ने कहा कि सरसों की खेती की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तिलहनी फसल की खेती वाली जमीन धान की खेती के रकबे से ज्यादा है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास धान की खेती के तहत 1.25 लाख हेक्टेयर भूमि है और सरसों खेती का रकबा पहले ही इससे अधिक हो चुका है। जलभराव वाली भूमि को छोड़कर हम यथासंभव अधिक से अधिक भूमि को सरसों की खेती के दायरे में लाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि कश्मीर के आहार में यह खाद्य तेल मुख्य है और घाटी पहले अपनी मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर थी। चौधरी ने कहा, ‘‘अब कश्मीर में हर जगह एक पीली क्रांति है। अगले साल, हम उन सभी क्षेत्रों को तिलहन खेती के दायरे में लाने का लक्ष्य बना रहे हैं, जिन्हें इस वर्ष नहीं लाया जा सका है।’’ पीली क्रांति में शामिल होने वाले किसानों में से एक मोहम्मद सुल्तान को सरसों की खेती से इस तरह के नतीजों की उम्मीद नहीं थी।

सुल्तान ने कहा, ‘‘सरसों की खेती से पहले मेरी जमीन जानवरों के चरने के काम आती थी, जिससे हमें कोई फायदा नहीं होता था। पिछले दो-तीन साल से कृषि विभाग की मदद से हमने सरसों की खेती शुरू की। हमने कभी नहीं सोचा था कि इसके इतने अद्भुत नतीजे आएंगे।’’ सरसों की फसल से लदे खेतों के साथ, घाटी के कई इलाकों में अभी पीली चादर बिछी जान पड़ती है।

उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल खेतों में सरसों के फूल लगे हुए हैं। हम खुश हैं। किसानों को पहला फायदा यह है कि उन्हें बाजार से खरीदने के बजाय अपने खेत से तेल मिल रहा है। पहले एक कनाल जमीन से 30 से 40 किलो तेल की प्राप्ति होती थी। लेकिन मौजूदा समय में विभाग के मार्गदर्शन से हमें एक कनाल में 50 से 60 किलो तेल मिल रहा है।’’ 70 साल के किसान सुल्तान पिछले 50 साल से खेती कर रहे हैं लेकिन इतनी बंपर फसल उन्होंने पहली बार देखी है। वहीं के एक अन्य किसान वली मुहम्मद पशु चराई के लिए घास उगाने के बजाय सरसों की खेती करने से खुश हैं। उन्होंने कहा, ‘‘12 साल बाद मैंने फिर से सरसों की बुवाई की, जो घास के मुकाबले 100 गुना ज्यादा लाभ दे रही है।

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