खेती में भी है उज्ज्वल भविष्य! यकीन नहीं है तो इसे पढ़ें

अमित भंडारी । Mar 29 2017 11:35AM

कृषि में स्नातकोत्तर डिग्री के बाद सरकारी क्षेत्र में सहायक प्राध्यापक और वैज्ञानिक के रूप में रोजगार उपलब्ध हैं कृषि क्षेत्र में हो रहे नित नए−नए अनुसंधानों के बाद निजी क्षेत्र इस व्यवसाय में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है।

भारत शुरू से ही कृषि प्रधान देश रहा है। यहां की आबादी के 70 प्रतिशत लोग कृषि से सीधे जुड़े हैं। कृषि पर इतनी बड़ी आबादी की निर्भरता कृषि विज्ञान में रोजगार की असीम संभावनाओं का द्वार खोलती है। कुछ नया कर दिखाने वाले, नए विचार देने वाले, रचनात्मक कार्यों में रूचि दिखाने वाले युवक−युवतियों के लिए कृषि उद्योग में अच्छे वेतन और सरकारी, निजी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम के अच्छे अवसर उपलब्ध हो सकते हैं।

आमतौर पर लोग कृषि विज्ञान का मतलब खेती बाड़ी ही लगाते हैं। लेकिन कृषि विज्ञान पाठ्यक्रम व्यापक है जिसके अन्तर्गत फसलों की निगरानी, आनुवंशिकी और पादप प्रजनन फसलों की देख−रेख, फसलों पर लगने वाले कीड़ों का नियंत्रण, पौधों में लगने वाली बीमारियों का अध्ययन, मिट्टी की गुणवत्ता से संबंधित विषयों की जानकारी और उसके भीतर के लाभदायक जीवाणुओं के बारे में अध्ययन और उसे उर्वर बनाए जाने हेतु जानकारी हासिल की जाती है।

कृषि विज्ञान में कई पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं जिन्हें आप अपनी रूचि के अनुसार चुन सकते हैं। इनमें कुछ प्रमुख पाठ्यक्रम हैं− बीएसी एग्रीकल्चर, बैचलर डिग्री इन हॉटीकल्चर, बैचलर ऑफ फिशरीज साइंस, बैचलर ऑफ फारेस्ट्री साइंस, बैचलर ऑफ होम साइंस, बैचलर ऑफ फूड टेक्नोलॉजी, बैचलर ऑफ वेटनरी एंड एनिमल हसबेन्डरी और मास्टर इन इरीगेशन एंड वाटर मैनजेमेंट। कृषि विज्ञान के विभिन्न पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए उम्मीदवार का बारहवीं कक्षा में विज्ञान विषय में उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इन पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए अभ्यर्थी को प्रवेश परीक्षा में गुजरना पड़ता है। ज्यादातर विश्वविद्यालयों में मई−जून महीने में अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। पाठ्यक्रम की अवधि तीन से चार साल की होती है।

कृषि में स्नातकोत्तर डिग्री के बाद सरकारी क्षेत्र में सहायक प्राध्यापक और वैज्ञानिक के रूप में रोजगार उपलब्ध हैं कृषि क्षेत्र में हो रहे नित नए−नए अनुसंधानों के बाद निजी क्षेत्र इस व्यवसाय में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है। इससे कॅरियर के अवसर में भारी इजाफा हुआ है। वहीं एग्रोक्लीनिक और एग्रो−बिजनेस के नाम से स्वरोजगार भी शुरू कर सकते हैं। साथ ही मुधमक्खी पालन और मुर्गी पालन जैसे रोजगार भी शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालयों में शोध कार्य आरंभ कर फेलोशिप के तौर पर साढ़े छह हजार रुपए हर महीने पा सकते हैं। शोध कार्य पूरा करने के बाद सरकारी और निजी क्षेत्रों में वैज्ञानिक का पद पा सकते हैं।

इन पाठ्यक्रमों का अध्ययन इन विश्वविद्यालयों से किया जा सकता है−

− इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर पीओ श्री निकेतन, वीरभूम।

− कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, ग्वालियर।

− इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट, वाराणसी।

− कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, एग्रीकल्चर फैकल्टी, राजेन्द्र नगर हैदराबाद।

− बिरला एग्रीकल्चर विश्वविद्यालय, फैकल्टी ऑफ एग्रीकल्चर कांके, रांची।

− बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी।

− एग्रीकल्चर कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोयम्बटूर।

अमित भंडारी

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