उठो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य तक न पहुंच जाओ

विवेकानन्द

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके बारे में कहा था- यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।

युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने अपनी शक्ति का परिचय दिया था। परंतु देखने में आ रहा है कि युवाओं में नकारात्मकता जन्म ले रही है। उनमें धैर्य की कमी है। वे हर वस्तु अति शीघ्र प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वे आगे बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम की बजाय शॉर्टकट्स खोजते हैं। भोग विलास और आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें प्रभावित करती है। उच्च पद, धन-दौलत और ऐश्वर्य का जीवन उनका आदर्श बन गए हैं। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जब वे असफल हो जाते हैं, तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं। युवाओं की इस नकारत्मकता को सकारत्मकता में परिवर्तित करना होगा। उन्हें स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा लेनी होगी। उल्लेखनीय है कि 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर उसे सार्वभौमिक पहचान दिलाई। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके बारे में कहा था- "यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"

स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की घरेलू महिला थीं। वह बाल्यावस्था से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उनके घर में नियमपूर्वक प्रतिदिन पूजा-पाठ होता था। साथ ही नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक वातावरण का उन पर भी प्रभाव गहरा पड़ा। वह अपने गुरु रामकृष्ण देव से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपने गुरु से ही यह ज्ञान प्राप्त किया कि समस्त जीव स्वयं परमात्मा का ही अंश हैं, इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।

स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार वर्ष 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। पहली बार वर्ष 2000 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरंभ किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने 17 दिसंबर 1999 को प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का अर्थ है कि सरकार युवाओं के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। भारत में इसका प्रारंभ वर्ष 1985 से हुआ, जब सरकार ने स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। युवा दिवस के रूप में स्वामी विवेकानन्द का जन्मदिवस चुनने के बारे में सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानन्द का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है। इस दिन देश भर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कई प्रकार के कार्यक्रम होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, विभिन्न प्रकार की स्पर्धाएं आयोजित की जाती हैं, व्याख्यान होते हैं तथा विवेकानन्द साहित्य की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं।

स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-

'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।'

अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।'

भारत एक विकासशील और बड़ी जनसंख्या वाला देश है। यहां आधी जनसंख्या युवाओं की है। देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। यहां के लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं। यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहेगी। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। अपनी बड़ी युवा जनसंख्या के साथ भारत अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकता है। परंतु इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की बड़ी जनसंख्या बेरोजगारी से जूझ रही है। भारतीय संख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ से अधिक है। 15 से 60 वर्ष आयु के 74.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जो काम करने वाले लोगों की संख्या का 15 प्रतिशत है। जनगणना में बेरोजगारों को श्रेणीबद्ध करके गृहणियों, छात्रों और अन्य में शामिल किया गया है। यह अब तक बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वहीं 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई। बेरोजगार युवा हताश हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में युवा शक्ति का अनुचित उपयोग किया जा सकता है। हताश युवा अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं। वे नशाख़ोरी के शिकार हो जाते हैं और फिर अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं। इस तरह वे अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। देश में हो रही 70 प्रतिशत आपराधिक गतिविधियों में युवाओं की संलिप्तता रहती है।

युवाओं के उचित मार्गदर्शन के लिए अति आवश्यक है कि उनकी क्षमता का सदुपयोग किया जाए। उनकी सेवाओं को प्रौढ़ शिक्षा तथा अन्य सराकारी योजनाओं के तहत चलाए जा रहे अभियानों में प्रयुक्त किया जा सकता है। वे सरकार द्वारा सुनिश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के दायित्व को वहन कर सकते हैं। तस्करी, काला बाजारी, जमाखोरी जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने में उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाया जाए। राष्ट्र निर्माण का कार्य सरल नहीं है। यह दुष्कर कार्य है। इसे एक साथ और एक ही समय में पूर्ण नहीं किया जा सकता। यह चरणबद्ध कार्य है। इसे चरणों में विभाजित किया जा सकता है। युवा इस श्रेष्ठ कार्य में अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार भाग ले सकते हैं। ऐसी असंख्य योजनाएं, परियोजनां और कार्यक्रम हैं, जिनमें युवाओं की सहभागिता सुनिश्चत की जा सकती है।

युवा समाज में सामाजिक, आर्थिक और नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं और अंधविश्वास को समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। देश में दहेज प्रथा के कारण न जाने कितनी ही महिलाओं पर अत्याचार किए जाते हैं, यहां तक कि उनकी हत्या तक कर दी जाती है। महिलाओं के प्रति यौन हिंसा से तो देश त्रस्त है। नब्बे साल की वॄद्धाओं से लेकर कुछ दिन की मासूम बच्चियों तक से दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर दी जाती है। डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं की हत्याएं होती रहती हैं। अंधविश्वास में जकड़े लोग नरबलि तक दे डालते हैं। समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच और जात-पांत की खाई भी बहुत गहरी है। दलितों विशेषकर महिलाओं के साथ अमानवीयता व्यवहार की घटनाएं भी आए दिन देखने और सुनने को मिलती रहती हैं, जो सभ्य समाज के माथे पर कलंक समान हैं। आतंकवाद के प्रति भी युवाओं में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। भविष्य में देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। कृषि में उत्पादन के स्तर को उन्नत करने से संबंधित योजनाओं में युवाओं को लगाया जा सकता है। इससे जहां युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं देश और समाज हित में उनका योगदान रहेगा।                       

यदि युवाओं को कोई उपयुक्त कार्य नहीं दिया गया, तब मानव संसाधनों का भारी राष्ट्रीय क्षय होगा। उन्हें किसी सकारात्मक कार्य में भागीदार बनाया जाना चाहिए। यदि इस मानव शक्ति की क्रियाशीलता को देश की विकास परियोजनाओं में प्रयुक्त किया जाए, तो यह अद्भुत कार्य कर सकती है। जब भी किसी चुनौती का सामना करने के लिए देश के युवाओं को पुकारा गया, तो वे पीछे नहीं रहे। प्राकृतिक आपदाओं के समय युवा आगे बढ़कर अपना योगदान देते हैं, चाहे भूकंप हो या बाढ़। युवाओं ने सदैव पीड़ितों की सहायता में दिन-रात परिश्रम किया। युवा देश के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। युवाओं को देश के विकास के लिए अपना सक्रिय योगदान प्रदान करना चाहिए। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में युवाओं को सम्मिलित करना अति महत्वपूर्ण है तथा इसे यथाशीघ्र एवं व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए।

महादेवी वर्मा के शब्दों में- ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है, जिसकी तरुणाई सबल होती है, जिसमें मृत्यु को वरण करने की क्षमता होती है, जिसमें भविष्य के सपने होते हैं और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, वही तरुणाई है।’

- डॉ. सौरभ मालवीय

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