मुश्किल को मुमकिन बनाने वाले सख्त प्रशासक की ही जरूरत थी गृह मंत्रालय को

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अमित शाह गुजरात में चूँकि गृह मंत्रालय का प्रभार संभाल चुके हैं इसलिए वहाँ का अनुभव उनके काम आयेगा ही। लेकिन इतना तय है कि इस मंत्रालय में उनके जैसे सख्त प्रशासक और नतीजे देने वाले नेता की ही जरूरत थी।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने देश के गृहमंत्री का कार्यभार बड़े आत्मविश्वास के साथ संभाल तो लिया है लेकिन उनके समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। हालांकि यह भी सही है कि मुश्किल को मुमकिन बनाने वाले शख्स हैं अमित शाह। देश में अधिकांश लोग हालाँकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी रणनीतियों की सफलता से ही ज्यादा वाकिफ हैं लेकिन अमित शाह शुरू से ही चुनावी राजनीति के चाणक्य रहे हैं। गुजरात में दो दशक से ज्यादा समय से भाजपा सत्ता में है तो इसका एक बड़ा कारण अमित शाह भी हैं। इसके अलावा 2014 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद से अमित शाह ने पार्टी को कई राज्यों में बड़ी चुनावी जीत दिलाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वस्त नेता अमित शाह आज जिस मुकाम पर हैं उसके लिए उन्होंने जबरदस्त मेहनत की है। भले यह कहा जाये कि उन्हें मौका मोदी की वजह से मिला हो लेकिन हर मोड़, हर चुनौती और हर परीक्षा में अमित शाह ने खुद को साबित किया है। 

मास्टर रणनीतिकार हैं अमित शाह

अन्य दल चुनावों से छह महीने या साल भर पहले अपनी तैयारी शुरू करते हैं लेकिन अमित शाह जीतने के तुरंत बाद अगले चुनावों की तैयारी शुरू कर देते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भाजपा का जो संगठन मजबूत हुआ है और आज पार्टी 12 करोड़ सदस्य वाली राजनीतिक पार्टी बन पाई है तो इसके पीछे अमित शाह की सक्रियता, राष्ट्रीय पदाधिकारी से लेकर पंचायत स्तर तक के प्रतिनिधि के संपर्क में खुद रहना और असंभव को संभव बना देने के लिए दिन-रात एक कर देने वाले जज्बे की अहम भूमिका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 18 घंटे काम करते हैं तो अमित शाह कहाँ पीछे रहने वाले हैं। यदि उनका औसत समय निकालेंगे तो वह भी लगभग इतना ही बैठेगा।

आंतरिक सुरक्षा

अब जब अमित शाह गृह मंत्री बन गये हैं तो उनके समक्ष खड़ी प्रमुख चुनौतियों की बात कर लेते हैं। सबसे पहले तो उन्हें आंतरिक सुरक्षा को मजबूत रखने पर ध्यान देना होगा। भाजपा ने जिस राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव जीता है उसमें विकास के जितना ही महत्वपूर्ण आधार है आंतरिक सुरक्षा। यह सही है कि राजग के पिछले पांच वर्षों के दौरान आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर शानदार काम हुआ और नक्सली हिंसा पर भी काफी हद तक काबू पाया गया लेकिन यह समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित इलाकों में आज भी दहशत का माहौल जारी है। 

धारा 370 और 35-ए

जम्मू-कश्मीर अमित शाह की प्राथमिकता में रहेगा क्योंकि वहाँ के हालात को यदि बतौर गृहमंत्री अमित शाह नियंत्रित रख पाये तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि होगी। जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। अभी वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू है और ऐसे में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ही भूमिका जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में धारा 370 और 35-ए के बारे में जो वादे किये हैं उन पर क्या पार्टी आगे बढ़ पाने का साहस दिखा पाती है, यह भी देखने वाली बात होगी।

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क्या देश भर में लागू होगा NRC

अमित शाह ने बतौर भाजपा अध्यक्ष खासकर पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल की चुनावी रैलियों में वादा किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आती है तो पूरे देश में NRC को लागू किया जायेगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस मुद्दे पर सरकार कितना आगे बढ़ती है। फिलहाल तो NRC की प्रक्रिया अभी असम में ही पूरी नहीं हो पायी है। पश्चिम बंगाल, जहाँ की सत्ता पर अब भाजपा की नजरें हैं यदि वहाँ NRC आता है तो भाजपा का ममता बनर्जी सरकार से जबरदस्त टकराव हो सकता है। इसके अलावा नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित करा पाना भी इस सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा।

राम मंदिर

केंद्र-राज्य संबंधों को और प्रगाढ़ बनाना, केरल और पश्चिम बंगाल में लगातार होने वाली राजनीतिक हिंसा से निबटना आदि भी अमित शाह की प्रमुख चुनौतियां हैं। इसके अलावा भाजपा ने अपने संकल्प-पत्र में वादा किया था कि राम मंदिर मुद्दे का कानून सम्मत हल निकाला जायेगा। अब देखना होगा कि क्या बतौर गृहमंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर आगे बढ़ पाते हैं। भाजपा ने पिछली मोदी सरकार के अंतिम दिनों में जो प्रयास शुरू किये थे उस पर वह आगे बढ़ेगी, ऐसा बहुत लोगों को विश्वास है।

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अर्धसैनिक बलों की समस्याओं का निराकरण करना और संघ शासित क्षेत्रों में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच के संबंधों को सुधारना भी अहम चुनौतियाँ हैं। बहरहाल, अमित शाह गुजरात में चूँकि गृह मंत्रालय का प्रभार संभाल चुके हैं इसलिए वहाँ का अनुभव उनके काम आयेगा ही। लेकिन इतना तय है कि इस मंत्रालय में उनके जैसे सख्त प्रशासक और नतीजे देने वाले नेता की ही जरूरत थी।

-नीरज कुमार दुबे

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