SCO बैठक में जयशंकर और इशाक डार के भाषणों के विश्लेषण से कई बड़ी बातें सामने आईं

जयशंकर का फोकस भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम' की नीति और 'आत्मनिर्भर भारत' के विजन को क्षेत्रीय सहयोग से जोड़ने पर रहा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि साझा विकास तभी संभव है जब क्षेत्र में शांति और आतंकवादमुक्त माहौल हो।
चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के भाषण ने एक बार फिर यह साफ कर दिया कि दोनों देशों के बीच भले ही मंच साझा हो, लेकिन उनके दृष्टिकोण, प्राथमिकताएं और वैश्विक भूमिका को लेकर सोच में गहरी खाई कायम है। जहां भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का वक्तव्य एक परिपक्व, आत्मविश्वासी और वैश्विक दृष्टिकोण से परिपूर्ण था, वहीं पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार का भाषण पुरानी शिकायतों, पाकिस्तान की विक्टिम कार्ड वाली छवि और कश्मीर के घिसे-पिटे मुद्दों के इर्द-गिर्द ही सिमटा रहा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने भाषण में एससीओ की प्रासंगिकता, क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ साझा जिम्मेदारियों पर जोर दिया। उन्होंने न सिर्फ भारत की उभरती हुई वैश्विक भूमिका को रेखांकित किया, बल्कि इस मंच के माध्यम से पाकिस्तान सहित सभी पड़ोसी देशों को स्पष्ट संदेश भी दिया कि आतंकवाद और सीमा-पार हिंसा किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में भारत की कार्रवाई को उचित ठहराते हुए जयशंकर ने एससीओ को आतंकवाद और चरमपंथ से निपटने के अपने स्थापना उद्देश्य से नहीं भटकने की सलाह भी दी। साथ ही जयशंकर का फोकस भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम' की नीति और 'आत्मनिर्भर भारत' के विजन को क्षेत्रीय सहयोग से जोड़ने पर रहा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि साझा विकास तभी संभव है जब क्षेत्र में शांति और आतंकवादमुक्त माहौल हो। ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, कनेक्टिविटी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर भारत के रुख ने एक जिम्मेदार और परिपक्व वैश्विक शक्ति की छवि भी पेश की।
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दूसरी ओर, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार का भाषण कहीं न कहीं भारत के विरुद्ध पूर्व निर्धारित एजेंडे और पुराने दावों का ही विस्तार प्रतीत हुआ। इशाक डार ने अप्रत्यक्ष रूप से कश्मीर का मुद्दा उठाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घसीटने की कोशिश की, जबकि एससीओ का मापदंड है कि यह मंच द्विपक्षीय विवादों के लिए नहीं, बल्कि साझा क्षेत्रीय हितों के लिए है। डार के भाषण में पहलगाम हमले से पल्ला झाड़ने, भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाने और भारत के साथ संवाद की आवश्यकता भी जताने जैसी बातें मुख्य बिंदू रहीं। इशाक डार ने कहा कि पिछले तीन महीनों में दक्षिण एशिया में ‘‘बेहद परेशान करने वाली घटनाएं’’ हुईं। इशाक डार ने कहा, ‘‘पाकिस्तान संघर्ष-विराम और स्थिर क्षेत्रीय संतुलन कायम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है। हालांकि, हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि बल का मनमाना प्रयोग सामान्य हो जाए।’’ देखा जाये तो पाकिस्तान एक ओर खुद को पीड़ित दिखाने की कोशिश करता रहा, वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय स्थिरता और विकास की बातें करता रहा, जो उसकी नीति में अंतर्विरोध को ही उजागर करता है।
भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के भाषण पर गौर करेंगे तो एससीओ मंच पर दोनों देशों के दृष्टिकोण में जमीन-आसमान का फर्क दिखाई देगा। जहां भारत आर्थिक विकास, आतंकवाद के विरुद्ध एकजुटता और क्षेत्रीय स्थिरता की बात कर रहा था, वहीं पाकिस्तान अब भी कश्मीर राग और भारत-विरोधी विमर्श में उलझा हुआ दिखा। भारत वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है, तो पाकिस्तान अब भी अपनी पहचान और अस्तित्व की राजनीति में उलझा है। इस बैठक से स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान अपने पुराने एजेंडे से बाहर आने को तैयार नहीं है जबकि भारत हर वैश्विक मंच पर रचनात्मक, समाधानपरक और विकासोन्मुखी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है।
हम आपको यह भी बता दें कि एससीओ के शीर्ष नेताओं की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने की संभावना है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बताया है कि 20 से अधिक देशों के नेता और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख अगले महीने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के तियानजिन शिखर सम्मेलन एवं संबंधित कार्यक्रमों में भाग लेंगे। एससीओ तियानजिन शिखर सम्मेलन 31 अगस्त से एक सितंबर तक आयोजित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और एससीओ सदस्य देशों के अन्य नेताओं के इस शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में जाते हैं तो सबकी निगाहें खासतौर पर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के भाषण पर लगी रहेंगी।
बहरहाल, एससीओ जैसे मंच पर भारत और पाकिस्तान के दृष्टिकोण में दिखा अंतर महज भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों की व्यापक विदेश नीति और भविष्य के कूटनीतिक रास्तों का संकेतक भी है। भारत जहां अपने आत्मविश्वास, आर्थिक मजबूती और वैश्विक भूमिका के आधार पर भविष्य गढ़ रहा है, वहीं पाकिस्तान अब भी अतीत के नारों में फंसा है। यह बैठक एक बार फिर यह सिद्ध कर गई कि भारत आज न केवल दक्षिण एशिया बल्कि ग्लोबल साउथ के लिए भी भरोसेमंद नेतृत्वकर्ता है, जबकि पाकिस्तान की भूमिका अब केवल एक विरोध और शिकार के नैरेटिव तक सीमित हो चुकी है।
-नीरज कुमार दुबे
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