बेगानी शादी में जश्न मना रहे अब्दुल्ला दीवानों को केजरीवाल का झटका

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संतोष पाठक । Feb 17 2020 2:29PM

2014 की तरह राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की कोई गलती केजरीवाल अभी नहीं करना चाहते और इसलिए उन्होंने बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने की तर्ज पर जश्न मना रहे तमाम मोदी विरोधी नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है।

यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि शत्रु का शत्रु मित्र होता है। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि अगर आपका शत्रु मजबूत हो और आप कमजोर तो किसी और के कंधे का सहारा लेकर लड़ाई लड़ो और शत्रु का हराने की कोशिश करो। कहावत तो यह भी है कि जंग और मुहब्बत में सब कुछ जायज है। आओ सोच रहे होंगे कि एक राजनीतिक चर्चा में इन कहावतों का क्या काम ? लेकिन इन सबका तात्पर्य बताने से पहले हम आपको एक और कहावत सुना देते हैं- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। 

हम बात कर रहे हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों की। ऊपर कही गई तमाम कहावतें दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं और इसके केंद्र में हैं कांग्रेस समेत भाजपा के तमाम विरोधी दल। 2014 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो गए थे। बाद में मोदी ने अपने सबसे करीबी सहयोगी अमित शाह को भी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना कर दिल्ली की राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित कर दिया। इसके बाद मोदी-शाह की यह जोड़ी चुनाव दर चुनाव अजेय जोड़ी के रूप में स्थापित होती चली गई। एक के बाद एक भाजपा का विजयी घोड़ा राज्यों को जीतता जा रहा था और भाजपा की हर जीत के साथ के साथ विरोधी दलों की हिम्मत जवाब दे रही थी। 

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फिर आया 2019 लोकसभा चुनाव का समय। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद भाजपा जीती, देश भर में मतदाताओं का साथ मिला और सहयोगी दलों के साथ मिलकर 350 से ज्यादा लोकसभा सांसदों के बल पर नरेंद्र मोदी दोबारा से देश के प्रधानमंत्री बन गए। राष्ट्रीय राजनीति में इसका बड़ा प्रभाव होता दिखाई दिया। यह पहली बार हुआ कि गांधी परिवार के किसी सदस्य ने चुनावी हार की वजह से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया हो। मायावती-अखिलेश यादव अलग हो गए और तमाम विरोधी दलों को यह लगने लगा कि भाजपा को हरा पाना संभव नहीं है। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे कई ऐसे मौके भी आये जब भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा लेकिन ऐसे हर मौकों पर विरोधी दलों के नेताओं, मुख्यमंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों का जमावड़ा मंच पर सजा कर यह साबित कर दिया गया कि नरेंद्र मोदी को अकेले नहीं हराया जा सकता और इसके लिए सबका साथ आना जरूरी है। मोदी विरोधी सभी राजनीतिक दलों का एकजुट होना जरूरी है।

ऐसे ही कुछ शपथ ग्रहण समारोह पर मंच की शोभा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी बढ़ा चुके हैं। लेकिन इसका खामियाजा उन्हें ब्रांड अरविंद केजरीवाल पर पड़े डेंट के रूप में उठाना पड़ा। सब मिले हुए हैं जी के- केजरीवाल के पुराने बयान को उन्हीं पर थोप दिया गया और बार-बार सोशल मीडिया पर इस तरह की कोशिश जारी रही। लेकिन आखिरकार अरविंद केजरीवाल को भी समझ आ गया कि इस तरह के जमावड़े का कोई सियासी मतलब-मायने नहीं है। कोई फायदा नहीं है। यही वजह रही है कि हाल ही में भाजपा विरोधी मुख्यमंत्रियों के कई शपथ ग्रहण समारोह में न्योते के बावजूद केजरीवाल नहीं गए।

यहां तक कि दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह को लेकर जो प्लान तैयार किया गया, उससे भाजपा और खासतौर से मोदी विरोधी कई मुख्यमंत्रियों को झटका लग गया है। मध्य प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस को मिले शून्य से ज्यादा भाजपा की हार पर खुशी मना रहे थे। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में अपने सफाये के गम को केजरीवाल की जीत से भुलाने की कोशिश कर रहे थे। भाजपा के ज्यादातर विरोधी मुख्यमंत्रियों या दलों के दिग्गज नेताओं की प्रतिक्रिया एक जैसी थी। सब यह मानने लगे थे कि मोदी को केजरीवाल ही हरा सकता है। सबको यह भी लग रहा था कि रामलीला मैदान के ऐतिहासिक मंच पर वो केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद रहकर दिल्ली की धरती से मोदी विरोध का संयुक्त बिगुल फूंकेंगे।

लेकिन राजनीतिक हालात का तकाजा कहिए या बदले-बदले से नजर आ रहे केजरीवाल की रणनीति कि वो अपनी इतनी बड़ी जीत के बावजूद खुद को मोदी के सामने खड़ा नहीं करना चाहते। फिलहाल तो लग भी यही रहा है कि केजरीवाल अपने आपको सिर्फ और सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित रखना चाहते हैं। 2014 की तरह राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की कोई गलती केजरीवाल अभी नहीं करना चाहते और इसलिए उन्होंने बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने की तर्ज पर जश्न मना रहे तमाम मोदी विरोधी नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया है।

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आम आदमी पार्टी की तरफ से गोपाल राय ने साफ-साफ यह ऐलान कर दिया है कि रामलीला मैदान के शपथ ग्रहण समारोह में वीवीआईपी मेहमान सिर्फ दिल्ली वाले होंगे। केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों और बाहरी नेताओं को नहीं बुलाया जाएगा। सार्वजनिक तौर पर तर्क दिया जा रहा है कि दिल्ली वालों के बल पर यह जीत मिली है इसलिए सिर्फ उन्हें ही बुलाया जा रहा है लेकिन पार्टी सूत्रों की मानें तो अरविंद केजरीवाल फिलहाल नरेंद्र मोदी विरोधी किसी भी जमावड़े का हिस्सा बनने से बचना चाहते हैं।

-संतोष पाठक

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