नेहरूजी ने बाबू लाल गौर से संघ की टोपी पहने रहने को कहा था

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प्रभात झा । Aug 23 2019 11:45AM

नेहरूजी ने इंटक अधिकारी को कहा की उन्हें काली टोपी पहने रहने दो और बाबू लाल जी आगे बढ़े। रात को विश्राम के लिए वे जब संघ कार्यालय गए तो वहां तत्कालीन सरसंघचालक परम पूज्य गुरुजी भी संघ कार्यालय में थे।

उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश में आकर मजदूर से मुख्यमंत्री बनने की कहानी का नाम है 'बाबू लालजी गौर'। कोई कल्पना नहीं कर सकता। एक मजदूर अपनी रोजी-रोटी की लड़ाई लड़ता है। मजदूरी अपने परिवार का पेट चलाने के लिए करता है। लेकिन बाबू लालजी गौर पेट के लिए नहीं, अपने मजदूर दोस्तों के लिए संघर्ष में आगे आने लगे। प्रारम्भ में वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक रहे। मजदूर की लड़ाई के लिए उन्हें ट्रेड यूनियन में लड़ना पड़ा। लेकिन उस समय तक भारतीय मजदूर संघ की स्थापना नहीं हुई थी। बाबू लालजी गौर इंटक के सदस्य बने। ट्रेड यूनियन कैसे काम करता है, उन्होंने सीखना शुरू कर दिया। सन् 1954 की बात है। वे इंटक के राष्ट्रीय अधिवेशन में नागपुर गए। वे जब नागपुर गए तो वहां संघ के कार्यालय में रुके। लोगों ने पूछा कैसे आये हो, तो उन्होंने भोपाल के तत्कालीन प्रचारक तिजारेजी की चिट्ठी दिखाई और संघ कार्यालय में रुक गए। दूसरे दिन वे अधिवेशन में संघ की काली टोपी पहनकर गए। उस अधिवेशन में नेहरूजी आने वाले थे। जब इंटक के लोगों ने काली टोपी देखकर कहा कि काली टोपी हटा दो और सफ़ेद टोपी लगा लो, तो बाबू लाल जी ने कहा की काली टोपी ही पहनुंगा। नेहरूजी सब देख रहे थे। नेहरूजी ने पूछा क्या बात है। संघ की टोपी उतारने को क्यों कह रहे हो। नेहरूजी ने इंटक अधिकारी को कहा की उन्हें काली टोपी पहने रहने दो और बाबू लाल जी आगे बढ़े। रात को विश्राम के लिए वे जब संघ कार्यालय गए तो वहां तत्कालीन सरसंघचालक परम पूज्य गुरुजी भी संघ कार्यालय में थे। उन्होंने पूछा कैसे आये हो? बाबू लालजी गौर ने कहा कि इंटक के सम्मलेन में आये हैं। आगे उन्होंने कहा कि संघ की टोपी पहन कर इंटक के सम्मेलन में गया था, जहां टोपी उतारने को कहा गया, लेकिन नेहरूजी ने कहा कि इन्हें संघ की काली टोपी पहने रहने दो। गुरुजी ने उनकी सारी बातें बड़े ध्यान से सुनीं और कहा कि इंटक में जब सफ़ेद टोपी है तो संघ की टोपी पहन कर नहीं जाना चाहिए। जहां का जो परिवेश है जो वेशभूषा है वही पहनना चाहिए। उन्होंने कहा की जब आप इंटक के अधिवेशन में गए थे तो आपको संघ की काली टोपी पहनकर नहीं बल्कि इंटक की सफ़ेद टोपी पहनकर जाना चाहिए था। यह घटना मुझे स्वयं बाबू लालजी गौर ने कुछ महीने पहले जब वे अस्वस्थ हो रहे थे, तब सुनायी थी। उन्होंने मुझे कहा कि गुरुजी और नेहरूजी कितने महान थे।

सन् 1972 में वे जनसंघ से चुनाव लड़े थे। वे पहला चुनाव हार गए, उसके बाद साझा उम्मीदवार के रूप में 1974 में दक्षिण भोपाल से चुनाव जीतकर आये। 1974 से लेकर 2018 में वे अपराजित विधायक का चुनाव लड़ते रहे और जीतेते रहे। गत 45 वर्षों से वे एक ही विधानसभा क्षेत्र से लगातार 10 बार विधायक रहे। 

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बाबू लालजी गौर का संपर्क तत्कालीन जनसंघ के सगठन मंत्री और प्रचारक कुशाभाऊ ठाकरे से हुआ। ठाकरेजी ने उनसे कहा कि तुम मजदूरों के नेता हो तो सबसे पहले वकालत की पढ़ाई करो और वकील बनो। बाबू लालजी गौर ने उनके कहने पर वकालत की पढ़ाई की और वकील भी बने। ठाकरेजी ने उनके निर्माण में अहम् भूमिका निभाई। वे एक मुखर वक्ता थे। वे अनेकों बार भाजपा में महामंत्री और उपाध्यक्ष भी रहे। सदन में विपक्ष के नेता भी रहे। राजधानी भोपाल के विधायक के रूप में उन्होंने पूरे मध्य प्रदेश में अपना विशिष्ट स्थान बनाया।

1990 में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और स्वर्गीय सुन्दरलाल पटवाजी मुख्यमंत्री बने। उनके मंत्रिमंडल में बाबू लालजी गौर 8 मंत्रालय के मंत्री बने। उनके पास नगरीय निकाय विभाग भी था, जिसका उन्होंने भरपूर उपयोग किया और पूरे मध्य प्रदेश में अतिक्रमण हटाने का ऐतिहासिक अभियान शुरू किया। उन्हें उस समय लोग 'बुल्डोजर मंत्री' कहा करते थे।

अयोध्या में ढांचा गिरा और केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार को भंग कर दिया। भाजपा के लोग डरे नहीं, संघर्ष के लिए सड़कों पर उतरे और इसमे बाबू लालजी गौर की संघर्षशीलता और निडरता देखने लायक थी। इससे पहले इंदिराजी ने आपातकाल लगाया था, उस समय भी बाबू लालजी गौर निडर होकर जेल गए और मिसा में बंद रहे, लेकिन कभी झुके नहीं।

बाबू लालजी गौर निरंतर संगठन का कार्य करते-करते पूरे प्रदेश का प्रवास करते थे। सदन और सड़क दोनों में वे कांग्रेसी को घेरते थे। आज का भोपाल, जो देश के सुंदर नगरों में आता है, उसका बहुत बड़ा श्रेय बाबू लालजी गौर को जाता है। उन्हें भोपाल से बहुत मुहब्बत थी। वे भोपाल से प्यार करते थे। उनके खून के हर कतरे में भोपाल का विकास छुपा हुआ था। उन्होंने अपने खून की स्याही से भोपाल के विकास की कहानी लिखी है। अब जब भी भोपाल के विकास की चर्चा होती है तो लोग गर्व से बाबू लालजी गौर का नाम लेते हैं।

2004 में साध्वी उमा भारतीजी ने दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की गद्दी से उतारा और कांग्रेस को चुनाव में हराया। उमाजी मुख्यमंत्री बनीं और अपने मंत्रीमंडल में उन्होंने बाबूलाल जी गौर जैसे कद्दावर नेता को वरिष्ठ मंत्री बनाया। बाबू लालजी गौर एक अखंड प्रवासी कार्यकर्ता थे। निरंतर प्रवास करते रहते थे। वे सहज, सरल और सामान्य रूप से उपलब्ध होने वाले नेता थे। वे हरदिल अजीज थे। वे 'मुस्कुराते रहो' के वाक्य पर विश्वास करते थे और सदैव मुस्कुराते रहते थे। उनके पास पांच मिनट बैठने के बाद ही लोग हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाते थे। 

उमाजी जब तिरंगा यात्रा में बंगलोर गईं और मुख्यमंत्री पद बाबू लालजी गौर को सौंप दिया, उसके बाद वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन एक ऐसा समय भी आया, जब उनके युवा बेटे का निधन हो गया। एक दो दिन बाद ही भोपाल में एक रेल दुर्घटना हुई जिसमें कई लोगों की जान चली गई। बाबू लालजी गौर ने कहा कि मैं दुर्घटना स्थल पर जाउंगा। सबने कहा कि आपका परिवार शोकाकुल है, ऐसे में आप कैसे जायेंगे। इस पर उन्होंने कहा मै मुख्यमंत्री हूं। मेरे लिए राष्ट्र धर्म पहले है। वे अपने शोक ग्रस्त परिवार को छोड़कर घटना स्थल पर गए और मृतकों के परिजनों से मिले। उन परिवारों की चिंता की। इस घटना से यह बात सामने आती है की बाबू लालजी गौर राष्ट्र धर्म के प्रहरी थे।

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एक बार जब वे मुख्यमंत्री थे तो केन्द्रीय नेतृत्व ने निर्णय लिया कि शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया जाए। बाबू लालजी गौर ने उफ़ तक नहीं की और इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं वे शिवराज जी के मंत्रिमंडल में संगठन के कहने पर गृह मंत्री का पद भी स्वीकार किया। जब वे 75 वर्ष के हुए तो उनसे केन्द्रीय नेतृत्व ने इच्छा व्यक्त की कि वे मंत्री पद छोड़ दें। बाबू लालजी गौर ने उसे भी स्वीकार किया और मंत्री पद छोड़ दिया। 60-65 वर्ष अनवरत संगठन का काम करते हुए उन्होंने अपनी बात जरूर रखी लेकिन संगठन ने जो निर्णय लिया उससे बाहर वे कभी नहीं गए, वे संगठन निष्ठ थे। 

बाबू लालजी गौर का जितना सम्मान अपने दल में था, वैसा ही सम्मान अन्य दलों में भी बना हुआ था। वे उदारमना थे। संकीर्ण राजनीति से वे कोसों दूर थे। 70-72 साल के राजनीतिक जीवन में वे मजदूर से मुख्यमंत्री बने, पर उन पर आजतक किसी ने दो पैसे का भी आरोप नहीं लगाया। उन्होंने ताउम्र ईमानदारी का जीवन जिया। यही कारण है कि जब लोगों ने उनके निधन का समाचार सुना तो हजारों की संख्या में लोग दल से ऊपर उठकर उनकी शवयात्रा में शामिल हुए। उनके निधन से भाजपा ने एक संघर्षशील, परिश्रमी, पराक्रमी और जनहितकारी नेता खो दिया।

-प्रभात झा 

सांसद (राज्य सभा)

एवं भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष

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