उत्तर प्रदेश की दर्जन भर लोकसभा सीटों ने बढ़ा रखी है भाजपा नेतृत्व की टेंशन

yogi adityanath
ANI

भाजपा का पहला लक्ष्य 2014 में जीती हुई सीटों को वापस हासिल करना है। वर्ष 2014 में भाजपा ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, सहयोगी अपना दल-एस को 2 सीटों पर जीत मिली थी। उस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं।

भारतीय जनता पार्टी के नेता भले ही सार्वजनिक रूप से अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत का दावा कर रहे हों, लेकिन अंदर खाने की खबर यही है कि फिलहाल बीजेपी आलाकमान 68-70 सीटों से आगे जीत का अनुमान नहीं लगा पा रहा है। बीजेपी मुस्लिम बाहुल्य कुछ सीटों पर हमेशा से कमजोर रही है तो कई मौजूदा सांसद जनता के बीच अपनी खराब छवि के चलते पार्टी के लिए बोझ बन गए हैं। अब आलाकमान को यह तय करना है कि ऐसे सांसदों का क्या किए जाये जो इस बार बीजेपी के लिए जीत की गारंटी नहीं रह गए हैं। यह सब बातें बीजेपी के आंतरिक सर्वे में भी सामने आ चुकी हैं। इसीलिए पार्टी ने कुछ लोकसभा सीटों के प्रत्याशी बदलने का भी मन बना लिया है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी के आंतरिक सर्वे में करीब 16 सीटें ऐसी मिली हैं, जहां पर पार्टी की स्थिति अत्यंत कमजोर है। इन सीटों पर जीत के लिए पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन अच्छी बात यह कि इन सीटों पर भी बीजेपी हार की संभावना के बीच भी लड़ती हुई नजर आयेगी। पार्टी के भीतर कुछ सांसदो का टिकट काटे जाने की चर्चा शुरू होते ही उन सांसदों ने दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में बैठे अपने आकाओं के यहां दौड़ लगाना शुरू कर दिया है, जिनकी टिकट बंटवारे में अहम भूमिका रहती है। लेकिन बीजेपी आलाकमान इन सब बातों को अनदेखा करते हुए मिशन 80 पूरा करने में लगा है।

    

उत्तर प्रदेश में मिशन 2024 के तहत पार्टी सभी 80 सीटों पर जीत की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा की कोशिश सहयोगी दलों से बेहतर समन्वय स्थापित कर चुनावी मैदान में उतरने की है। टिकट बंटवारे के समय एनडीए के सहयोगियों के बीच में किसी प्रकार की खींचतान का न होना, इस बार सकारात्मक संदेश दे रहा है। दूसरी तरफ, विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए में सीटों को लेकर दावेदारी बढ़ने लगी है। बीजेपी इस बात से भी खुश है कि बसपा सुप्रीमो मायावती विपक्षी गठबंधन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनती दिख रही हैं। बसपा के उम्मीदवार चुनावी मैदान में किसी भी दल के प्रत्याशी का खेल ऊपर-नीचे कर सकते हैं। मायावती का चुनावी मैदान में उतरना विपक्षी गठबंधन के लिए किसी भी स्थिति में सही नहीं होगा। विपक्ष मान रहा है कि आमने-सामने का मुकाबला हो तभी भाजपा को हराना संभव हो पाएगा। ऐसे में विपक्ष को एक पाले में लाना होगा। वहीं, भाजपा 50 फीसदी से अधिक वोट शेयर हासिल करने के लिए लोकसभा क्षेत्रवार अपनी रणनीति तैयार करने में जुट गई है।

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भाजपा का पहला लक्ष्य 2014 में जीती हुई सीटों को वापस हासिल करना है। वर्ष 2014 में भाजपा ने 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, सहयोगी अपना दल-एस को 2 सीटों पर जीत मिली थी। उस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। लेकिन, 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के कारण बसपा के सीटों की संख्या बढ़कर 10 हो गई। कांग्रेस एक सीट पर सिमटी। सपा ने एक बार फिर 5 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा के सीटों की संख्या घटकर 62 रह गई। अपना दल-एस ने अपने 2 सीटों के आंकड़े को बरकरार रखा। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा यूपी की हारी हुई सीटों को रेड जोन में रखा है। साथ ही, जिन सीटों पर सांसदों का परफॉर्मेंस खराब है, उसे भी रेड जोन में रखते हुए तैयारियां चल रही हैं।

केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया है कि उसके आदेशों को अनदेखा करके जो सांसद अभी तक अपनी छवि सुधारने में नहीं जुटे हैं। ऐसे बेपरवाह रहने वाले सांसदों का टिकट इस बार कट सकता है। वैसे कुछ सांसद नेतृत्व के निर्देशानुसार टिकट कटने की स्थिति से बचने के लिए क्षेत्र में अपनी छवि चमकाने की कवायद में जुट गए हैं। इस बार भाजपा के अंदरूनी सर्वे में वर्ष 2019 के चुनाव में जीती गई फिरोजाबाद, बदायूं और इटावा जैसी लोकसभा सीटों को सबसे मुश्किल श्रेणी में में रखा गया है। इसी तर भले ही भाजपा ने रामपुर और आजमगढ़ उप चुनाव में जीत हासिल की हो, लेकिन दोनों सीटों पर अभी भी बीजेपी जीत का दावा करने की स्थिति में नहीं हैं। इन सीटों पर जीत हासिल करन के लिए विशेष तौर पर रणनीति तैयार की जा रही है।

    

बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कि जाए तो यहां की मुरादाबाद, संभल, रामपुर, नगीना, बिजनौर, बदायूं, फिरोजाबाद, इटावा और मैनपुरी सीटों को जीतने के लिए पार्टी द्वारा विशेष प्रयास किया जा रहा है। वहीं, पूर्वी यूपी की आजमगढ़, घोसी, लालगंज, गाजीपुर, जौनपुर, श्रावस्ती और अंबेडकरनगर जैसी सीटें भी भाजपा की चिंता बढ़ा रही हैं। वर्ष 2014 में भाजपा ने मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अंबेडकर नगर, नगीना, गाजीपुर, घोसी और लालगंज में जीत हासिल की। भाजपा की कोशिश इन सीटों को फिर से जीतने की है। वहीं, 2019 में बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, रायबरेली, घोसी, लालगंज, जौनपुर, अंबेडकर नगर, गाजीपुर, श्रावस्ती, मैनपुरी, सहारनपुर, आजमगढ़, रामपुर और नगीना में मिली हार को जीत में बदलने की भी कोशिश होगी।

खैर, बात मीडिया सर्वे के आधार पर लोकसभा चुनाव में हार-जीत की कि जाए तो टाइम्स नवभारत और ईटीसी के सर्वे के अनुसार एनडीए गठबंधन को 69-73 सीटों पर जीत मिलते नजर आ रही है। जिसका मतलब यह है कि अगर वर्तमान में लोकसभा चुनाव कराए जाएं तो यूपी में एनडीए को 70 से ज्यादा सीटें जीतने को मिल सकती हैं। वहीं इंडिया गठबंधन जिसमें समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर देखे जा रहे हैं उसे सिर्फ 5 से 9 सीटें ही मिल रही हैं। वहीं बसपा को शुन्य से एक सीट पर जीत मिल सकती है और अन्य के खाते में 1 से 3 सीट जाते हुए नजर आ रही है। फिलहाल इस सर्वे की सबसे बड़ी बात यह है कि 70 से ज्यादा सीटें बीजेपी के खाते में जा रही है, वहीं समाजवादी पार्टी का गठबंधन अपना पिछला आंकड़ा भी नहीं छू पा रहा है। सर्वे के अनुसार वोट शेयर की बात करें तो एनडीए को 51.2 प्रतिशत वोट शेयर, इंडिया गठबंधन को 38.2 प्रतिशत वोट शेयर, बसपा को 6.4 प्रतिशत वोट शेयर और अन्य के खाते में 4.2 प्रतिशत वोट शेयर जा रहे हैं।

-स्वदेश कुमार

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पूर्व सूचना आयुक्त उ0प्र0 रह चुके हैं)

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