White House से निराश Europe को अब PM Modi से आस, वैश्विक शांति का निर्णायक सूत्रधार बनेगा भारत

प्रधानमंत्री मोदी ने भी भारत की स्थायी स्थिति को दोहराते हुए कहा कि भारत शांति और स्थिरता की बहाली के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने दोनों नेताओं को भारत आने और 2026 में होने वाले अगले भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में भाग लेने का आमंत्रण दिया।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा अक्सर आर्थिक समीकरणों से तय होती है। हाल के दिनों में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उठाए गए टैरिफ विवाद ने यूरोपीय संघ (EU) को झटका दिया है। अमेरिकी बाजारों पर निर्भरता और ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों ने यूरोपीय देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उन्हें अपने वैश्विक साझेदारों का दायरा बढ़ाना होगा। इसी कड़ी में भारत एक स्वाभाविक विकल्प बनकर उभर रहा है। हम आपको बता दें कि यूरोपीय संघ ने अब तक भारत के खिलाफ रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर कोई सेकेंडरी प्रतिबंध लगाने की बात नहीं की है। यह बहुत बड़ा संकेत है कि यूरोप, भारत को नाराज़ करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। वजह साफ है— भारत न केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, ऊर्जा सुरक्षा और राजनीतिक संतुलन में उसकी भूमिका अहम हो चुकी है।
इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप थकान और बेचैनी की स्थिति में है। अब तक की सारी कोशिशें— मसलन व्हाइट हाउस के दरवाज़े खटखटाने से लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के साथ मंच साझा करने तक, किसी ठोस परिणाम तक नहीं पहुँची हैं। इसी परिदृश्य में यूरोपीय नेताओं ने भारत की ओर देखना शुरू किया है। यूरोपीय संघ (EU) और स्वयं यूक्रेन, इस युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत की भूमिका पर नज़रें गड़ाए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोपीय नेताओं और यूक्रेन के विदेश मंत्री की भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ हुई वार्ताओं ने इस धारणा को और प्रबल किया है कि भारत की आवाज़ अंतरराष्ट्रीय मंच पर निर्णायक साबित हो सकती है।
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हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन से संयुक्त टेलीफोन वार्ता की। इस बातचीत में भारत-यूरोपीय संघ साझेदारी की समीक्षा की गई और व्यापार, प्रौद्योगिकी, निवेश, रक्षा, सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखला जैसी अहम विषयों पर प्रगति का स्वागत किया गया। दोनों पक्षों ने भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को जल्द निष्कर्ष तक पहुँचाने और IMEEC कॉरिडोर के क्रियान्वयन पर बल दिया। वॉन डेर लेयेन ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यूक्रेन का युद्ध वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए गहरा खतरा है और इसे समाप्त करवाने में भारत की भूमिका निर्णायक हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी भारत की स्थायी स्थिति को दोहराते हुए कहा कि भारत शांति और स्थिरता की बहाली के लिए निरंतर प्रयासरत रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने दोनों नेताओं को भारत आने और 2026 में होने वाले अगले भारत-ईयू शिखर सम्मेलन में भाग लेने का आमंत्रण दिया।
उधर, यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा ने भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से टेलीफोन पर बातचीत की। सिबिहा ने युद्धक्षेत्र की स्थिति की जानकारी साझा करते हुए भारत से आग्रह किया कि वह अपनी “प्राधिकृत आवाज़ और सक्रिय भूमिका” से रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने के प्रयासों को गति दे। उन्होंने कहा कि यूक्रेन एक "न्यायसंगत शांति" की दिशा में काम कर रहा है और भारत की भागीदारी इस लक्ष्य को हासिल करने में अहम होगी। दोनों पक्षों ने आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्चस्तरीय सत्र में मिलने और राजनीतिक, आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी सहयोग को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई।
हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से चीन में मुलाकात की थी और इस दौरान दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता के अलावा निजी स्तर पर भी लंबी बातचीत हुई थी। इससे पहले 30 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से भी बात की थी और शांति बहाली का समर्थन दोहराया था। इस प्रकार, भारत एक ओर रूस के साथ अपने रणनीतिक और ऊर्जा संबंधों को बनाए रखे हुए है, वहीं दूसरी ओर यूरोप और यूक्रेन को आश्वस्त कर रहा है कि वह युद्ध को समाप्त करने के लिए रचनात्मक योगदान देगा।
सवाल उठता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करवाने में भारत की भूमिका क्यों अहम है? इसका जवाब यह है कि भारत की स्थिति कई कारणों से अनूठी है। भारत रूस और पश्चिम— दोनों से संवाद बनाए रखने वाले कुछेक देशों में से है। लोकतांत्रिक मूल्यों और बहुपक्षीय मंचों पर सक्रियता के कारण भारत की विश्वसनीयता बढ़ी है। साथ ही दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और उभरती शक्ति होने के कारण भारत की बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी की “यह युग युद्ध का नहीं है” वाली घोषणा पहले ही वैश्विक राजनीति में एक नैतिक संदर्भ बन चुकी है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की दिशा फिलहाल अनिश्चित बनी हुई है। लेकिन यह तथ्य स्पष्ट है कि यूरोप और यूक्रेन भारत की भूमिका को निर्णायक मान रहे हैं। भारत यदि अपनी कूटनीतिक ताक़त और संवाद-क्षमता का उपयोग कर सके, तो न केवल इस युद्ध के अंत की राह आसान होगी, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय साख भी नई ऊँचाइयों तक पहुँचेगी।
बहरहाल, यूरोपीय संघ का भारत की ओर झुकाव केवल कूटनीति का शिष्टाचार नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक आवश्यकता है। व्हाइट हाउस की राह में जब ठोस नतीजे नहीं मिले, तब यूरोप ने नयी उम्मीद के साथ नई दिल्ली का रुख किया है। सवाल यह है कि क्या भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर स्वयं को वैश्विक शांति के निर्णायक सूत्रधार के रूप में स्थापित कर पाएगा?
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