ऑपरेशन सिंदूर से बदली नीतियों का वैश्विक संकेत

Operation Sindoor
ANI

ऑपरेशन सिंदूर के तहत चली महज चार दिनों की कार्रवाई के बाद संघर्ष विराम होने को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा है। बड़े वर्ग का मानना है कि पाकिस्तानी उकसावे के बाद जारी भारतीय कार्रवाई से पाकिस्तान की गर्दन भारतीय पैरों के नीचे आ गई थी।

बीती छह मई की देर रात को पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर गरजती मिसाइलों ने दुनिया को कई संदेश दिए हैं। भारतीय कार्रवाई का पहला संदेश यह है कि अब ना सिर्फ भारत, बल्कि उसकी विदेश नीति भी बदल चुकी है। अब अगर भारत का बेगुनाह खून बहेगा तो खून बहाने वाले नापाक हाथों को भारत कहीं से भी ढूंढ़ निकालेगा और उसकी कब्र खोदने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा। पाकिस्तानी हमले के सफल प्रतिकार ने स्वदेशी हथियार तकनीक की खुद-ब-खुद ब्रांडिंग हो गई। पहलगाम के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद भारतीय राजनीति और राजनय को देखने का दुनिया का नजरिया बदलना तय है। 

ऑपरेशन सिंदूर के तहत चली महज चार दिनों की कार्रवाई के बाद संघर्ष विराम होने को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा है। बड़े वर्ग का मानना है कि पाकिस्तानी उकसावे के बाद जारी भारतीय कार्रवाई से पाकिस्तान की गर्दन भारतीय पैरों के नीचे आ गई थी। लिहाजा जरूरी था कि उसकी कमर तोड़ दी जाए। भारत के एक बड़े वर्ग को उम्मीद थी कि मौजूदा कार्रवाई के जरिए पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी भारत का हिस्सा होगा। बहुत लोगों तो लगता था कि अगर ऑपरेशन सिंदूर जारी रहता तो बलूचिस्तान के लिए पाकिस्तान से अलग होने की राह आसान हो जाती। इस लिहाज देखें तो भारत का लोकमानस पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई जारी रखने के पक्ष में था या कह सकते हैं कि अब भी है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि युद्ध कभी-भी जनमत के दबाव में लड़े जाते। आधुनिक दौर में जब लड़ाई और हथियारों में तकनीक की पहुंच और पैठ बढ़ी है, सिर्फ जनमत के दबाव में युद्ध लड़ना ताकतवर से ताकतवर देश के लिए संभव नहीं।  इस बीच संघर्ष विराम पर राष्ट्रपति ट्रंप के उतावले दावों ने संघर्ष विराम की हकीकत की जिज्ञासा बढ़ा दी है। लोग यह जानने के लिए उतावले हैं कि संघर्ष विराम की असल वजह आखिर क्या है? वैसे ऐसी संवेदनशील जानकारियां शायद ही कभी बाहर आ पाती हैं। इसलिए संघर्ष विराम के पीछे  की असलियत को आने वाला इतिहास ही जान पाएगा।

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जिस तरह पाकिस्तान के एयरबेस समेत तमाम सैनिक ठिकानों को भारतीय सेना ने निशाना बनाया है, उससे बिलबिलाकर वह अमेरिका की शरण में पहुंचा और युद्ध विराम कराने के लिए गुहार लगाने लगा। यह जानकारी कुछ अमेरिकी अखबारों के पन्नों पर आ चुकी है। बहरहाल ऑपरेशन सिंदूर ने संदेश दिया है कि अब भारत रणनीति के तहत जवाब नहीं देगा, बल्कि अपने नागरिकों पर हमले, संप्रभुता और अखंडता पर चोट की हालत में वह निर्णायक कार्रवाई करेगा। इस ऑपरेशन ने एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है, जिसे नजरंदाज करना पाकिस्तान के लिए अब संभव नहीं होगा। उसे अब पता चल गया है कि राजनीति और सेना पोषित आतंकवाद और आतंक की नीति को सीधा और करारा जवाब मिलेगा। 

भारत पिछले करीब साढ़े चार दशक से आतंकवाद को झेल रहा है। पाकिस्तान पहले पंजाब को आतंकवादी आग से झुलसाता रहा तो बाद के दिनों में जम्मू-कश्मीर में खून बहाता रहा। पाक परस्त आतंकी अगर भारतीय संसद, वाराणसी, जयपुर, मुंबई आदि जगहों पर बेगुनाह खून बहाने में कामयाब रहे तो इसकी बड़ी वजह रही पाकिस्तान की आतंकवाद केंद्रित नीति। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने संदेश दिया है कि अब यह नीति नहीं चलेगी। इस बार आतंकवादियों और उनके सरपरस्तों को जिस तरह भारत ने सफल निशाना बनाया, उसके बाद अब आतंकी कार्रवाई करने से पहले सौ बार सोचने को मजबूर होंगे। अब उन्हें सोचना होगा कि आतंक फैलाकर वे दूसरे देश की सीमा में जाकर चैन से नहीं रह पाएंगे। भारत की सेना उन्हें उनके घर में ही मारेगी।

ऑपरेशन सिंदूर पर संघर्ष विराम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में दो-तीन बड़ी बातें कहीं। पहला यह कि खून और पानी साथ नहीं बहेगा। यानी सिंधु जल समझौता स्थगित ही रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि टेरर यानी आतंक और ट्रेड यानी कारोबार एक साथ नहीं चलेगा। यानी आतंक फैलाने वाले देशों के साथ भारत ना तो कारोबार करेगा और न ही उन्हें कोई विशेष दर्जा देगा। सवाल यह है कि भारत की इस बदली नीति की वजह क्या है? भारत की इस बदली नीति की वजह है, उसकी बढ़ती आर्थिक ताकत। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिहाज से भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था  बनने जा रहा है। जल्द ही जापान की अर्थव्यवस्था को वह पीछे छोड़ देगा। भारत की स्वदेशी हथियार तकनीक, चाहे आकाश मिसाइल हो या रूस के सहयोग से विकसित ब्रह्मोस, उन्होंने अपनी अचूक मारक क्षमता दिखाई है। एक तरफ देश आर्थिक ताकत बढ़ाता जा रहा है तो दूसरी तरफ सैनिक ताकत भी बढ़ रही है। शांति के लिए मजबूत आर्थिक और सैनिक ताकत जरूरी होती है। कहना न होगा कि आर्थिक और सामरिक ताकत की वजह से भारत अपनी नीति बदलता हुआ दिख रहा है। भारत की अब तक की घोषित नीति रही है कि वह किसी दूसरे देश के मामले में न हस्तक्षेप करेगा और न ही किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप मंजूर करेगा। ऑपरेशन सिंदूर इस नीति में बदलाव का वाहक बनकर आया है। अब तक भारत आतंक के खिलाफ विदेशी धरती पर कार्रवाई के लिए विदेशी ताकतों पर निर्भरत रहता है। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने दिखाया है कि अब वह अपनी जनता की रक्षा के लिए किसी की इजाजत का इंतजार नहीं करेगा। इस ऑपरेशन के जरिए भारत ने दुनिया को संदेश दिया है कि अब आतंकी और उसके मास्टरमाइंड कहीं नहीं छिप सकते। भारत उन्हें खोज निकालेगा और उन्हें उनके किए की सजा के तहत अंजाम पर पहुंचाएगा। महिलाओं के माथे  का सिंदूर मिटाने वाले आतंकियों को मिटाने के लिए चले ऑपरेशन सिंदूर ने यह भी दिखाया है कि अगर पाकिस्तान आतंकी कार्रवाई के खिलाफ जवाबी हमला करेगा तो उस ना सिर्फ हमला माना जाएगा,बल्कि उसे करारा जवाब भी दिया जाएगा। 

आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच कश्मीर बड़ा मुद्दा रहा है। पाकिस्तान हर संभव मंचों, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी आदि के सामने कश्मीर राग अलापता रहा है और इसके जरिए जरूरी सहयोग और संसाधन भी हासिल करता रहा है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि अब तक भारत-पाक के बीच कश्मीर का नैरेटिव हावी रहा है, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब भारत-पाक के बीच कश्मीर की बजाय आतंक बड़ा नैरेटिव बनकर उभरा है। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री का यह कहना कि अब पाकिस्तान से सिर्फ आतंक और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर बात होगी, भारत की इसी बदली नीति का स्पष्ट संकेत है।

बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान भी भारत ने सीमित कार्रवाई की और संयम का परिचय दिया। ये कार्रवाइयां पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में ही हुईं। चूंकि भारत का समूचे कश्मीर पर दावा है, लिहाजा इन कार्रवाइयों में यह भी संकेत रहा कि भारत अपनी ही भूमि पर कार्रवाई कर रहा है। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर से भारत ने साफ संकेत दिया है कि अब वह आतंक के खिलाफ सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर ही नहीं, समूचे पाकिस्तान में बिना जमीनी तौर पर घुसे ही जोरदार और निर्णायक कार्रवाई कर सकता है।

साफ है कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने जहां आक्राकम विदेश नीति का मुजाहिरा किया है, वहीं उसने आतंक के खिलाफ अपने निर्णायक संकल्प और नीति की घोषणा की है। इसके साथ ही स्वदेशी हथियार तकनीक की हुई वैश्विक ब्रांडिंग एक तरह से बोनस कही जा सकती है। इससे जहां स्वदेशी हथियार तकनीक का बाजार बढ़ेगा, वहीं आतंक को लेकर भारत की बदली नीति से पड़ोसी देशों को सचेत रहना होगा।  

- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं..

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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