पाई पाई को तरसते पाक को एक और झटका, लंदन में ''दबे'' खजाने को पाने का सपना टूटा

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मामले को पूरी तरह से आप समझ सकें इसलिए आपको थोड़ा इतिहास में लिये चलते हैं। आजादी के समय जब देश का विभाजन हुआ तो हैदराबाद के तत्कालीन निजाम ने आजाद रियासत रहने का फैसला किया था जबकि स्थानीय लोग ऐसा नहीं चाहते थे।

झटके पर झटके, झटके पर झटके, झटके पर झटके...बात किसी भूकंप की नहीं, पाकिस्तान की हो रही है। पाई-पाई को तरस रहे टेररिस्तान को अब ब्रिटेन की अदालत ने दिया है बहुत बड़ा झटका। झटका भी ऐसा कि जज साहब के एक ही ऑर्डर से पाकिस्तान का 35 मिलियन पाउंड का सपना टूट गया। यह सपना दरअसल उसने देखा ही गलत था, भारत के करीब 3 अरब 8 करोड़ 40 लाख रुपये पर उसकी जो बुरी नजर थी उस बुरी नजर को ब्रिटेन की हाई कोर्ट ने उतार दिया। हाई कोर्ट ने 64 साल पुराने हैदराबाद के 7वें निजाम मीर उस्मान अली खान के खजाने से जुड़े मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारत के पक्ष को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ-साफ कहा है कि लंदन के बैंक में जमा निजाम की रकम पर भारत और 7वें निजाम के उत्तराधिकारियों का ही हक बनता है। दरअसल पाकिस्तान ने दावा किया था कि लंदन में पाकिस्तान उच्चायोग के साथ हैदराबाद की निजाम सरकार ने 1948 में 1 मिलियन पाउंड की राशि जमा कराई थी जिसकी कीमत अब बढ़कर 35 मिलियन पाउंड हो गई है, वह उसकी है।

मामला आखिर है क्या ?

मामले को पूरी तरह से आप समझ सकें इसलिए आपको थोड़ा इतिहास में लिये चलते हैं। आजादी के समय जब देश का विभाजन हुआ तो हैदराबाद के तत्कालीन निजाम ने आजाद रियासत रहने का फैसला किया था जबकि स्थानीय लोग ऐसा नहीं चाहते थे। तब पाकिस्तान ने हैदराबाद के निजाम के आजाद रहने के फैसले का समर्थन करते हुए उम्मीद जताई थी कि कभी यह हिस्सा भी उसके देश का हो सकता है। पाकिस्तान निजाम के करीब आता रहा और लेकिन भारत का भी प्रयास रहा कि हैदराबाद भारत के साथ रहे। आखिरकार निजाम ने भारतीय सेना से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान से अस्त्र-शस्त्र की मांग कर दी। हैदराबाद के निजाम के उस समय वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहे नवाज जंग ने इन अस्त्र-शस्त्रों के लिए 1,007,940 पाउंड (यानि करीब 8 करोड़ 87 लाख रुपये) की राशि ब्रिटेन के हबीब इब्राहिम रहिमटोला के खाते में हस्तांतरित कर दी ताकि वह पाकिस्तानी उच्चायुक्त को दी जा सके। 1948 में भारत के प्रयास रंग लाये और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के अथक प्रयासों के चलते हैदराबाद पर भारत का अधिकार हो गया। अब हैदराबाद पर भारत का आधिपत्य होते ही कहानी में नया ट्विस्ट आ गया। निजाम मीर उस्मान अली खान ने कहा कि उनके वित्त और विदेश मंत्री ने उनकी अनुमति के बिना ही धन को हस्तांतरित कर दिया था।

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कोर्ट कैसे पहुँच गया मामला ?

सन् 1954 में निजाम ने ब्रिटिश कोर्ट में केस दायर करते हुए पाकिस्तानी उच्चायोग के पास जमा की गयी राशि वापस करने की मांग की लेकिन पाकिस्तान ने कभी किसी का पैसा यूँ ही लौटाया है क्या? वैसे भी अब मामला सिर्फ निजाम का नहीं बल्कि भारत का हो चुका था क्योंकि हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हुआ था तो उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर थे। निजाम ने मामले को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाने के लिए और लोगों के कल्याण के लिए 1960 के दशक में एक कल्याण ट्रस्ट का भी गठन किया और उसमें अपने सभी पोतों को भी शामिल कर लिया। बाद में निजाम के वंशज और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फकम जाह ने नेटवेस्ट बैंक पीएलसी में जमा इस बड़ी राशि को लेकर कानूनी लड़ाई में पाकिस्तान के खिलाफ भारत सरकार से हाथ मिला लिया। इस राशि को हासिल करने के निजाम परिवार के प्रयास वर्ष 2008 में और तेज हो गये। निजाम परिवार ने भारत में तत्कालीन पाकिस्तान के उच्चायुक्त से बात की, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की, उस वक्त के विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की और यह भी प्रयास किया कि पाकिस्तान के साथ मामले का हल अदालत के बाहर निकल आये लेकिन समझौता करने की बजाय 2013 में पाकिस्तान की सरकार ने निजाम के फंड के संरक्षक, नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक पर केस दायर दावा कर दिया कि यह धन उनका है।

अदालत के फैसलों का आधार

इसके बाद दोनों पक्षों की ओर से दावे-प्रतिदावे किये गये। पाकिस्तान ने इस राशि पर अपना हक एक बार फिर जताया और कहा कि इस राशि पर दावा करने का भारत का समय समाप्त हो गया है। लेकिन जज साहब पाकिस्तान की कुटिल चालों और कुतर्कों के झांसे में नहीं आये और अपने फैसले में साफ-साफ कहा कि उनके सामने दो तसवीर पूरी तरह साफ हैं। पहला यह कि हैदराबाद रियासत और भारत के राष्ट्रपति के बीच विलय पर समझौता हुआ था और दूसरा यह कि ब्रिटिश सरकार ने हैदराबाद के भारत में विलय के फैसले को मान्यता प्रदान कर रखी है। और इस प्रकार...लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में दिये गये फैसले में जस्टिस मार्कस स्मिथ ने फैसला सुनाया कि ‘‘सातवें निजाम को धन के अधिकार मिले थे और सातवें निजाम के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले जाह भाइयों तथा भारत को धन का अधिकार है।’’ इस फैसले में कहा गया है कि किसी दूसरे देश से जुड़ी गतिविधि के सिद्धांत और गैरकानूनी होने के आधार पर प्रभावी नहीं होने के तर्क के आधार पर इस मामले के अदालत में विचारणीय नहीं होने की पाकिस्तान की दलीलें विफल हो जाती हैं। अब अदालत के आदेश के बाद इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने कहा कि फैसले का विस्तार से अध्ययन करने के बाद वह आगे की कार्रवाई करेगा।

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खैर...अब जब हैदराबाद के सातवें निजाम की यह राशि भारत और निजाम के परिवार को मिलने ही वाली है तो इसको लेकर लोगों के मन में यह भी सवाल है कि यह राशि रखेगा कौन? दरअसल यह राशि भारत सरकार और निजाम के 120 वंशजों के बीच बंटेगी। सातवें निजाम नवाब मीर उस्मान अली खान बहादुर के पौत्र तथा निजाम परिवार कल्याण संघ के अध्यक्ष नवाब नजफ अली खान ने कहा है कि करीब 120 परिजन हैं जिनकी इस धन में हिस्सेदारी है और वे सब धन के बंटवारे को लेकर बातचीत करेंगे तथा फैसला करेंगे। अगर निजाम परिवार के बीच धन बंटवारे के फॉर्मूले को लेकर आम सहमति नहीं बनती तो फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। जहाँ तक भारत का सवाल है तो उसके लिए जमा राशि पाने से ज्यादा पाकिस्तान की कुटिल चाल, उसके गलत दावे, गलत मंशा को एक बार फिर बेनकाब करना जरूरी था।

-नीरज कुमार दुबे

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