Mach 8 की रफ्तार, 1500 KM तक मार, भारत की सबसे घातक Hypersonic Missile तैयार

Hypersonic Missile
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हम आपको बता दें कि हाइपरसोनिक हथियारों को आधुनिक युद्ध का ‘गेम चेंजर’ कहा जाता है। अमेरिका, रूस और चीन इस तकनीक में अग्रणी हैं। रूस ने 2022 में यूक्रेन युद्ध में ‘किंझाल’ मिसाइल का उपयोग कर इस क्षमता का प्रदर्शन किया था।

भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण कर अमेरिका, रूस और चीन जैसी वैश्विक शक्तियों वाले हाइपरसोनिक क्लब में प्रवेश हासिल कर लिया है। हम आपको बता दें कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के माध्यम से मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में भारत ने ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। DRDO ने ‘एक्सटेंडेड ट्राजेक्टरी लॉन्ग ड्यूरेशन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (ET-LDHCM)’ नामक देश की सबसे उन्नत मिसाइल प्रणाली विकसित की है। यह न केवल भारत की वर्तमान मिसाइल प्रणाली जैसे ब्रह्मोस, अग्नि-5 और आकाश को पीछे छोड़ती है, बल्कि आधुनिक युद्ध की परिभाषा ही बदल सकती है।

हम आपको बता दें कि ET-LDHCM को DRDO के गोपनीय प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ के तहत विकसित किया गया है। यह मिसाइल Mach 8 (आवाज की गति से आठ गुना अधिक) की रफ्तार से उड़ सकती है और 1,500 किलोमीटर तक सटीक वार करने में सक्षम है। यह ब्रह्मोस के मुकाबले तीन गुना अधिक दूरी और तीन गुना अधिक रफ्तार वाली प्रणाली है। इसकी मुख्य विशेषताओं की बात करें तो आपको बता दें कि पारंपरिक इंजनों के विपरीत यह इंजन वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग करता है, जिससे यह लंबी दूरी तक लगातार हाइपरसोनिक गति बनाए रख सकता है। यह 1,000 से 2,000 किलोग्राम तक के पारंपरिक या परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। साथ ही यह रडार से बचने और दुश्मन की रक्षा प्रणाली को भेदने में सहायक है। इसे भूमि, समुद्र और वायु तीनों स्थानों से दागा जा सकता है। इसके टारगेट्स की बात करें तो आपको बता दें कि दुश्मन के कमांड सेंटर, रडार सिस्टम, नौसेना के बेड़े और भूमिगत बंकर को यह आसानी से निशाना बना सकता है। हम आपको बता दें कि eurasiantimes.com की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ET-LDHCM नामक जो मिसाइल बना रहा है उसकी सबसे खास बात उसका इंजन है जिसे स्क्रैमजेट कहते हैं। यह मिसाइल करीब 8 मैक यानी लगभग 11,000 किलोमीटर की रफ्तार से दुश्मन पर कहर बनकर टूटती है। 

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क्या होता है हाइपरसोनिक हथियार यदि इसकी बात करें तो आपको बता दें कि हाइपरसोनिक हथियार वे होते हैं जो Mach 5 (आवाज की गति से पांच गुना अधिक) से तेज गति से उड़ सकते हैं। ये पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से अलग होते हैं क्योंकि ये अपनी उड़ान के दौरान दिशा बदल सकते हैं, जिससे इन्हें पकड़ना और रोकना अत्यंत कठिन होता है। इसके मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं- हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) और हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (HCM), ET-LDHCM इसी श्रेणी में आता है।

हम आपको बता दें कि हाइपरसोनिक हथियारों को आधुनिक युद्ध का ‘गेम चेंजर’ कहा जाता है। अमेरिका, रूस और चीन इस तकनीक में अग्रणी हैं। रूस ने 2022 में यूक्रेन युद्ध में ‘किंझाल’ मिसाइल का उपयोग कर इस क्षमता का प्रदर्शन किया था। अमेरिका लॉकहीड मार्टिन के जरिए इस दिशा में कार्य कर रहा है। फ्रांस, जर्मनी, जापान, इजराइल और ऑस्ट्रेलिया भी इस दौड़ में शामिल हैं। यह बात भी काबिलेगौर है कि भारत का यह परीक्षण ऐसे समय हुआ है जब दुनिया में भू-राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है।

हम आपको बता दें कि हाइपरसोनिक हथियारों के विकास में सबसे बड़ी चुनौती अत्यधिक गति के कारण उत्पन्न 2000 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को सहने की होती है। इसके लिए DRDO ने हीट रेसिस्टेंट मटेरियल और कार्बन कॉम्पोजिट्स का प्रयोग किया है। दूसरी चुनौती रियल टाइम नेविगेशन और संचार की है, जिसे भारत ने स्वदेशी तकनीक से हल किया है।

Project Vishnu की जहां तक बात है तो आपको बता दें कि इसके तहत DRDO 12 अलग-अलग हाइपरसोनिक सिस्टम विकसित कर रहा है, जिनमें आक्रमणकारी मिसाइल और इंटरसेप्टर दोनों शामिल हैं। नवंबर 2024 में इस प्रोजेक्ट के तहत स्क्रैमजेट इंजन का पहला सफल परीक्षण हुआ था। ET-LDHCM इस प्रोजेक्ट की पहली बड़ी सफलता है। महत्वपूर्ण बात यह कि इस मिसाइल का पूरा निर्माण भारत में हुआ है और वह भी MSME और निजी रक्षा कंपनियों के सहयोग से। इससे न केवल आत्मनिर्भर भारत अभियान को बल मिलेगा, बल्कि स्थानीय रोजगार और नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि ET-LDHCM दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन बदलने में सक्षम है। यह चीन के इंडो-पैसिफिक प्रभुत्व और पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की क्षमता को और मजबूत करेगा। यह मिसाइल रूस के S-500 या इजराइल के Iron Dome जैसी अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों को भी चुनौती दे सकती है। देखा जाये तो इस सफल परीक्षण ने भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमता वाले देशों की कतार में खड़ा कर दिया है। यह केवल एक मिसाइल नहीं बल्कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रभाव का प्रतीक है। भविष्य में इस तकनीक के आधार पर भारत रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भी बड़ी शक्ति बन सकता है।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत के मिसाइल कार्यक्रम की शुरुआत का जब भी जिक्र होता है, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का नाम सबसे पहले स्मृति में आ जाता है। ‘मिसाइल मैन ऑफ इंडिया’ के रूप में प्रसिद्ध डॉ. कलाम ने भारत को मिसाइल तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा था, जिसमें बैलिस्टिक, क्रूज और भविष्य में हाइपरसोनिक तकनीक भी शामिल थी। आज जब भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली में बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तो यह केवल एक सैन्य सफलता नहीं, बल्कि अब्दुल कलाम के उसी सपने का विस्तार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस क्षेत्र को राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक सामरिक संतुलन के लिहाज से सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

हम आपको बता दें कि डॉ. कलाम का सपना था कि भारत अपने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने और तकनीक आधारित प्रतिरोधक क्षमता हमारे देश की नीति का अभिन्न हिस्सा हो। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों के ज़रिए भारत को सामरिक क्षमता दी, लेकिन उनके विजन में अगला कदम था— हाइपरसोनिक स्पीड, सटीकता और आधुनिक युद्धक्षमता वाली मिसाइलें। कलाम मानते थे कि अगली सदी के युद्ध सिर्फ हथियारों की संख्या से नहीं, रफ्तार, तकनीक और चुपकेपन से तय होंगे। इसलिए उन्होंने स्क्रैमजेट इंजन, हाइपरसोनिक फ्लाइट और उन्नत रडार-प्रूफ सिस्टम के अनुसंधान पर बल दिया था। वह कहते थे कि - "Speed is power in future warfare, and India must never lag behind." हम आपको बता दें कि DRDO में रहते हुए डॉ. कलाम ने इस दिशा में हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) जैसे शुरुआती प्रयासों की नींव रखी थी।

प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता में क्यों है हाइपरसोनिक मिसाइल? यदि इसकी बात करें तो आपको बता दें कि आज भारत की सीमाएं सिर्फ पारंपरिक युद्ध के खतरे से नहीं, बल्कि चीन की आक्रामक नीति, पाकिस्तान के परमाणु ब्लैकमेल और इंडो-पैसिफिक में अमेरिका-चीन संघर्ष के बीच सामरिक दबाव में हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलें भारत को 'सिक्योर स्ट्राइक' और 'रैपिड रिटैलिएशन' की क्षमता देती हैं— चाहे पाकिस्तान हो या दक्षिण चीन सागर।

इसके अलावा, भारत की न्यूनतम प्रतिरोधक नीति के तहत हाइपरसोनिक मिसाइलें उसकी सेकंड स्ट्राइक क्षमता को अजेय बनाती हैं। चीन के DF-17, रूस के Avangard और अमेरिका के LRHW के मुकाबले भारत का ET-LDHCM या HSTDV उसकी सामरिक विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं। साथ ही मोदी सरकार का स्पष्ट लक्ष्य है कि भारत रक्षा तकनीक में केवल उपभोक्ता न रहे, बल्कि वैश्विक रक्षा निर्यातक और इनोवेशन लीडर बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ विजन में रक्षा उत्पादन अहम स्तंभ है। Project Vishnu, ET-LDHCM जैसी परियोजनाएँ भारत में न केवल तकनीक लाती हैं बल्कि MSME, निजी कंपनियों और DRDO के सहयोग से स्थानीय उद्योग और रोजगार को भी बढ़ावा देती हैं।

इसके अलावा, भारत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD में है और चीन से प्रतिस्पर्धा में। हाइपरसोनिक तकनीक भारत को इस क्षेत्र में रणनीतिक ताकत का स्तंभ बनाती है, जिससे भारत का कूटनीतिक प्रभाव भी बढ़ेगा। हम आपको यह भी बता दें कि चीन के बढ़ते सैन्य उन्नयन और आक्रामक तेवर तथा रूस-अमेरिका के बीच हथियारों की होड़ से सीख लेते हुए नई राष्ट्रीय रक्षा नीति में 'प्री-एम्प्टिव टेक्नोलॉजी' की वकालत करते हुए रक्षा निर्यात को 5 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा, स्पेस, एंटी-सैटेलाइट और हाइपरसोनिक को साथ-साथ विकसित करने की रणनीति भी बनाई गयी है।

बहरहाल, भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम ने जिस भविष्य की कल्पना की थी, मोदी सरकार उसे नीति, संसाधन और रणनीति के स्तर पर जमीन पर उतार रही है। हाइपरसोनिक मिसाइल भारत के लिए सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा, प्रतिष्ठा और भविष्य के लिए अनिवार्य अस्त्र बन चुकी है। DRDO, ISRO और निजी रक्षा उद्योग के सहयोग से भारत अब उस राह पर है, जहाँ आने वाले दशक में भारत अपनी तकनीक के दम पर न केवल सुरक्षित रहेगा, बल्कि विश्व मंच पर मजबूती से खड़ा भी रहेगा।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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