दावोस में मोदीः ''भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ''

मोदी ने अपनी बात रखते हुए जिस तरीके से भारतीय संस्कृति से जुड़े उद्धरणों से विश्व को परिचित करवाया उससे हिंदी फिल्म पूरब और पश्चिम का गीत स्मृति पटल पर उभर आता है कि ''भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हू्ं''।
दावोस में आयोजित विश्व आर्थिक सहयोग संगठन में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बात रखते हुए जिस तरीके से भारतीय संस्कृति से जुड़े उद्धरणों से विश्व को परिचित करवाया उससे हिंदी फिल्म पूरब और पश्चिम का गीत स्मृति पटल पर उभर आता है कि 'भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हू्ं'। अपने 50 मिनट से अधिक लंबे भाषण में मोदी भारत के हित में भारत की बात और भारतीय के रूप में ही करते दिखे। मोदी ने दुनिया को बता दिया कि जहां जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आतंकवाद और दुनिया का आत्मकेंद्रित होना मानवता के लिए खतरनाक बन रहा है वहीं इन समस्याओं का हल नहीं निकाला गया तो भविष्य में मानवता बहुत बड़े संकट में फंस सकती है। अपने भाषण में मोदी भारत के प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ देश के सांस्कृतिक दूत के रूप में भी नजर आए। उन्होंने भारत के वर्तमान विकास, परिवर्तन, भविष्य के साथ-साथ गौरवशाली अतीत का भी खूब बखान किया।
फोरम में 23 जनवरी मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन भाषण दिया। अतीत के बहुत से नेताओं के विपरीत उन्होंने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 4 जरूरतों पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगल वे वेल्थ के साथ वेलनेस चाहते हैं तो भारत आएं। मोदी ने कहा, तीन चुनौतियां मानव सभ्यता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। पहली जलवायु परिवर्तन है। मौसम के चर्मोत्कर्ष का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। होना ये चाहिए था कि हमें एकजुट होना था। लेकिन, हम ईमानदारी से पूछें कि क्या ऐसा हुआ? और अगर नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ। हजारों साल पहले हमारे शास्त्रों में मानव की पहचान बताई गई कि 'माता भूमि, पुत्रोहम् पृथ्विया' अर्थात हम सभी मानव धरती माता की संतान हैं। यदि हम उसकी संतान हैं तो आज मानव और प्रकृति के बीच ये जंग क्यों चल रही है। मोदी ने दूसरी चुनौती आतंकवाद व इसको लेकर किए जाने वाले भेद को बताया। तीसरी चुनौती में मोदी ने बहुत से समाज और देश आत्मकेंद्रित होते जाने को बताया। उन्होंने कहा कि वैश्विकरण अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता चला जा रहा है। इस तरह की सोच को हम कम खतरे के तौर पर नहीं आंक सकते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की दीवारें और खिड़कियां सभी तरह से बंद हों। मैं चाहता हूं कि सभी देशों की संस्कृतियों की हवा मेरे घर में पूरी आजादी से आ-जा सके। लेकिन, इस हवा से मेरे पैर उखड़ जाएं, ये मुझे मंजूर नहीं होगा। आज का भारत गांधी के इसी दर्शन और चिंतन को अपनाते हुए, पूरे आत्मविश्वास और निर्भीकता के साथ पूरे विश्व से जीवनदायिनी तरंगों का स्वागत कर रहा है।
नरेंद्र मोदी ने 4 जरूरतों पर जोर दिया। उन्होंने कहा, सबसे जरूरी ये है कि विश्व की बड़ी ताकतों के बीच सहयोग बढ़े, प्रतिस्पर्धा दीवार बनकर ना खड़ी हो जाए, साझा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें अपने मतभेदों को दरकिनार कर लार्जर विजन के तहत साथ काम करना होगा। दूसरी आवश्यकता नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का पालन करना पहले से ज्यादा जरूरी हो गया है। हमारे चारों ओर होने वाले बदलाव अनिश्चितताओं को जन्म दे सकते हैं। तब अंतरराष्ट्रीय कानून और नियमों का सही अर्थों में पालन जरूरी है। तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि विश्व के प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों में सुधार की जरूरत है। सहभागिता और लोकतंत्रिकरण को आज के माहौल के अनुरूप बढ़ावा देना चाहिए। चौथी महत्वपूर्ण बात ये है कि हमें विश्व की आर्थिक प्रगति में और तेजी लानी होगी। इस बारे में हाल के संकेत उत्साहजनक हैं। टेक्नोलॉजी और डिजिटल रिवोल्यूशन नए समाधानों की संभावना बढ़ाते हैं, जिससे गरीबी और बेरोजगारी का नए सिरे से मुकाबला कर सकते हैं।
उल्लेखनीय बात है कि प्रधानमंत्री ने केवल इन समस्याओं का जिक्र ही नहीं किया बल्कि इनके समाधान का वह मार्ग भी दुनिया को दिखाया जो हजारों सालों पहले हमारु ऋषि-मुनियों ने मानवता को दिया। उपनिषदों का जिक्र करते हुए उन्होंने 'सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विना वधीतमस्तु मा विद्विषावहै' का रास्ता दिखाया। जिसका भाव है कि हम सभी मिल कर आगे बढ़ें, मिल कर नई ऊर्जा के साथ काम करें और हममें परस्पर द्वेष न हों। आज के दौर में जब आत्मकेंद्रित विश्व व समाज की बात की जा रही है तो यह घोष हमारा समुचित मार्गदर्शन कर सकता है। यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित भी है कि हर व्यक्ति व हर समाज परस्पर निर्भर करता है। दुनिया में कहीं भी कोई घटना-दुर्घटना होती है तो उसका असर पूरी मानवता पर पड़ता है। उदाहरण के लिए आज सीरिया व अरब देश जहां आतंकवाद की आग में सर्वाधिक जल रहे हैं तो इससे केवल यही देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। अपने भाषण में मोदी ने एक अन्य उपनिषद मंत्र का प्रयोग किया 'सर्वे भवन्तु सुखिन:। सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चिददु:खभाग्भवेत्।' अर्थात केवल मेरा नहीं सभी का भला हो, सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ हों। सभी की भावना में मेरी सुरक्षा, मेरे हित भी निहित हैं। मेरा कल्याण सभी के कल्याण में है। वसुधैवकुटुंबकम अर्थात पूरी दुनिया मेरा परिवार है। इन सिद्धांतों को मानने वाला दुनिया में कभी आतंकवाद, प्राकृतिक संसाधनों के शोषण की बात सोच भी नहीं सकता।
दुनिया में जब वैश्विकरण अर्थात ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव कम हो रहा है तो उसके सामने विकल्प है वसुधैवकुटुंबकम का। दुनिया के सभी लोग धरती को अपनी जननी मानें और उतना ही लें जितनी कि आवश्यकता है, जलवायु परिवर्तन से निपटने का इससे अधिक सार्थक कोई मार्ग फिलहाल तो दिखाई नहीं देता। जब दुनिया का हर व्यक्ति सहोदर भाई लगने लग जाएगा तो कौन आतंकी बन कर दूसरे की हत्या करेगा? दुनिया को अगर सुरक्षित रखना है, परस्पर मेलजोल बढ़ाना और मानवता को विकास करना है तो भारत का मार्ग ही श्रेयस्कर होगा।
- राकेश सैन
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