Hun Sen की तानाशाही की विरासत को आगे बढ़ाते हुए बेटा Cambodia को North Korea की राह पर ले जायेगा

Cambodian Prime Minister Hun Sen
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हम आपको बता दें कि अभी जिस चुनाव में प्रधानमंत्री हुन सेन ने तूफानी और प्रचंड जीत हासिल करने का दावा किया है उसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठे हैं। देखा जाये तो दमित करके रखे गये नागरिकों पर जीत हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं है।

चार दशक से कंबोडिया में राज कर रहे प्रधानमंत्री हुन सेन ने चुनावों में एक बार फिर प्रचंड जीत हासिल करने के बाद अपने बेटे को कमान सौंपने के लिए प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि वह तीन सप्ताह में पद छोड़ देंगे जिसके बाद उनके बेटे हुन मानेट की ताजपोशी की जायेगी। हम आपको बता दें कि कंबोडिया में कंबोडियन पीपुल्स पार्टी का 1979 से ही राज चला आ रहा है। प्रधानमंत्री हुन सेन की अध्यक्षता में हुई पार्टी की एक बैठक में उनके सबसे बड़े बेटे 45 वर्षीय हुन मानेट को सर्वसम्मति से देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। वैसे, दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया पर शासन कर रही कंबोडियन पीपुल्स पार्टी का नया नेता कौन बनेगा, इसको लेकर चुनाव के दौरान ही हुन सेन ने ऐलान कर दिया था कि यदि पार्टी दोबारा जीतती है तो उनका बेटा देश की कमान संभालेगा। इसलिए, जैसे ही हुन मानेट के नाम का ऐलान किया गया तो किसी को ज्यादा आश्चर्य इसलिए नहीं हुआ क्योंकि हुन सेन ने लोकतंत्र का मजाक बना कर रखा हुआ है।

चुनाव परिणाम का विश्लेषण

हम आपको बता दें कि अभी जिस चुनाव में प्रधानमंत्री हुन सेन ने तूफानी और प्रचंड जीत हासिल करने का दावा किया है उसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठे हैं। देखा जाये तो दमित करके रखे गये नागरिकों पर जीत हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं है। बताया जा रहा है कि पूरी चुनाव प्रक्रिया दिखावटी अभियान थी। सरकार के विरोध में 17 कमजोर और बगैर किसी जनाधार वाले दलों को उतारा गया था। कुल मतदान 84.6 प्रतिशत हुआ और सत्ता पक्ष 82 प्रतिशत मतों को हासिल करने में सफल रहा। मतों का यह अंतर यह बताने के लिए काफी है कि यह जीत कितनी पारदर्शी थी। जिस जीत को तूफानी बताया जा रहा है उस पर कई स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने गंभीर सवाल खड़े किये हैं क्योंकि बताया जा रहा है कि हुन सेन की सरकार ने चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में करने की तैयारी पहले से ही कर ली थी। इस साल मई महीने में कंबोडिया की राष्ट्रीय चुनाव समिति ने प्रमुख विपक्षी कैंडललाइट पार्टी को चुनाव में प्रतिस्पर्धा करने से रोक दिया क्योंकि वह आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने में विफल रही थी। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कैंडललाइट पार्टी जो दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाई उस दस्तावेज को कुछ वर्ष पहले पुलिस ने छापे के दौरान जब्त कर लिया था। यानि पहले किसी से कोई दस्तावेज छीन लिया जाये और बाद में कहा जाये कि आप उस दस्तावेज को उपलब्ध नहीं करा पाये इसलिए आप चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं। यही नहीं, जून महीने की शुरुआत में कंबोडिया की नेशनल असेंबली ने चुनाव कानूनों में संशोधन कर गैर-मतदाताओं को किसी सरकारी पद की दौड़ में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया था और चुनाव बहिष्कार का आह्वान करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए कड़े दंड का प्रावधान कर दिया था। ऐसे में चुनावी परिदृश्य यह हो गया था कि एक ओर दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाने के चलते प्रमुख विपक्षी कैंडललाइट पार्टी चुनाव में भाग नहीं ले सकी और जो छोटे मोटे दल थे वह चुनाव लड़ने से मना नहीं कर पाये। बेमन से उन्होंने चुनाव लड़ा जिससे कंबोडियन पीपुल्स पार्टी चुनाव जीत गयी।

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चुनाव प्रचार के दौरान की दादागिरी

चुनाव प्रचार के दौरान भी सत्ता पक्ष का रवैया दबदबे वाला था। इसलिए प्रधानमंत्री हुन सेन का जून के अंत में फेसबुक की मूल कंपनी मेटा के साथ सार्वजनिक रूप से झगड़ा भी हुआ था क्योंकि मेटा के निरीक्षण बोर्ड ने राजनीतिक विरोधियों को हिंसा की धमकी देने पर उनके खाते को निलंबित करने की सिफारिश की थी। यही नहीं, कंबोडिया की सरकार ने चुनाव प्रचार के दौरान रेडियो फ्री एशिया सहित कई समाचार संगठनों की वेबसाइटों को भी ब्लॉक कर दिया था ताकि जनता को प्रभावित नहीं किया जा सके। देखा जाये तो हुन सेन ऐसी ही तकनीकों के जरिये अब तक शासन करते रहे हैं। जनवरी 1985 में वियतनामी सेना ने उन्हें नेता के रूप में स्थापित किया था, जिसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे लेकिन व्यवस्थित रूप से देश की राजनीतिक व्यवस्था को अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ लिया।

तानाशाह रहे हैं हुन सेन

देखा जाये तो हुन सेन भले लोकतांत्रिक सरकार का नेतृत्व करते रहे लेकिन वह एक तानाशाह के रूप में ही याद किये जायेंगे। हुन सेन ने पिछले 38 सालों में सत्ता पर अपनी पूरी पकड़ बनाने के लिए इराक के सद्दाम हुसैन और युगांडा के ईदी अमीन जैसे अन्य ताकतवर लोगों की कुछ बातों का अनुसरण किया। अपनी सत्ता के चार दशकों में उन्होंने पार्टी, सेना और सरकार में उच्च-स्तरीय पदों पर अपने रिश्तेदारों को नियुक्त किया, राज्य सुरक्षा तंत्र पर नियंत्रण कर लिया और सैन्य कमान से अलग अपना स्वयं का अर्धसैनिक समूह भी बना लिया। हुन सेन ने कंबोडियन पीपुल्स पार्टी के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया पर एकाधिकार स्थापित करने के बाद हमेशा खुद से इस बात का फैसला किया कि पार्टी की कार्यकारी समिति में किसे रखना है और किसे बाहर करना है। इसके अलावा, एशिया में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले 70 वर्षीय हुन सेन ने हाल के वर्षों में कंबोडिया को एक तरह से एक-दलीय देश में बदल दिया जिससे लोकतंत्र मजाक बन कर रह गया है। इसके अलावा उनकी सरकार ने नागरिक समूहों की आवाज को कभी उभरने नहीं दिया। साथ ही फंडिंग, रिपोर्टिंग, पंजीकरण आदि संबंधी कड़े कानून बना दिये जिससे कभी कोई विरोधी उभर ही नहीं पाये।

तानाशाही में पिता से आगे जायेगा बेटा!

बहरहाल, जहां तक उनके बेटे और देश के नये प्रधानमंत्री बनने जा रहे हुन मानेट की बात है तो आपको बता दें कि उन्होंने वेस्ट प्वाइंट स्थित ‘यूएस मिलिट्री अकेडमी’ से स्नातक, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। वह इस समय कंबोडिया के सेना प्रमुख हैं। हुन मानेट के पश्चिमी देशों में शिक्षा हासिल करने के बावजूद ऐसा नहीं लगता है कि उनके सत्ता संभालने पर कंबोडिया सरकार की नीति में तत्काल कोई बदलाव आएगा। देखा जाये तो उनके पिता की नीतियों के कारण कंबोडिया की हाल के वर्षों में चीन के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं। माना जा रहा है कि हुन मानेट उसी नीति पर देश को आगे बढ़ाएंगे। यह भी माना जा रहा है कि हुन मानेट के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुन सेन राजनीतिक परिदृश्य से गायब नहीं होंगे। बल्कि दोनों एक साथ मिलकर काम करेंगे क्योंकि विदेश नीति सहित अन्य राजनीतिक दृष्टिकोणों में पिता-पुत्र में कोई अंतर नहीं है। कुछ विश्लेषकों का तो यहां तक कहना है कि हुन मानेट अपने पिता से आगे बढ़कर कंबोडिया को जल्द ही नया उत्तर कोरिया बना देंगे।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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