समान नागरिक संहिता हकीकत बनती है तो यह हमारे संविधान निर्माताओं का बड़ा सम्मान होगा

समान नागरिक संहिता के विरोध में तमाम तरह के तर्क दे रहे, समान नागरिक संहिता आने पर तूफान आने की चेतावनी दे रहे और समान नागरिक संहिता आने पर धार्मिक आधार पर विभाजन बढ़ने की बात कह रहे लोगों को देखना चाहिए कि यह देश के लिए नई चीज नहीं है।
समान नागरिक संहिता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान के बाद उम्मीद की जा रही है कि देश की बरसों पुरानी मांग जल्द ही पूरी होगी। देखा जाये तो समान नागरिक संहिता यदि हकीकत बनती है तो इससे देश की आकांक्षाएं ही पूरी नहीं होंगी बल्कि हमारे संविधान निर्माताओं की अपेक्षाएं भी पूरी होंगी। हमारे संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता का पक्ष लेते हुए इसे मूर्त रूप देने का जो दायित्व आने वाली सरकारों पर छोड़ा था, उस संकल्प को यदि मोदी सरकार सिद्ध करती है तो निश्चित ही यह हमारी संविधान सभा के सदस्यों का सम्मान भी होगा। देखा जाये तो संविधान सभा ने जो संवैधानिक प्रावधान किये थे, उन सभी का पालन देश आरम्भकाल से करता आ रहा है। लेकिन कुछ ऐसे मुद्दे भी थे जिस पर संविधान सभा में सहमति तो थी लेकिन उस पर फैसला करने का दायित्व भविष्य की सरकारों के लिए छोड़ दिया गया था। यह गौर करने योग्य बात है कि उस दायित्व को पूरा करने का साहस पहली बार कोई सरकार दिखा रही है।
संपूर्ण प्रक्रिया का पालन हो रहा है
समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के समक्ष रोजाना ढेरों सुझाव आ रहे हैं। 14 जुलाई सुझाव और विचार भेजने की अंतिम तिथि है, तब तक यह संख्या लाखों में पहुँच सकती है। इसके अलावा, समान नागरिक संहिता को लेकर देश में गली-मोहल्लों से लेकर टीवी चैनलों की डिबेटों और राजनीतिक जनसभाओं के मंचों तक जो चर्चा और बहस का दौर चल रहा है वह दर्शा रहा है कि पूरा देश इस समय इस गंभीर मुद्दे पर मंथन कर रहा है। देखा जाये तो लोकतंत्र में किसी कानून के निर्माण में जितनी ज्यादा भागीदारी होगी वह कानून उतना ही सशक्त होगा। अभी जनता संभावित कानून को लेकर बहस कर रही है। जब मसौदा प्रस्ताव सामने आयेगा तब वह उसके लाभ हानि से जुड़े मुद्दों पर बहस करेगी और जनभावना को ध्यान में रखते हुए संसद में सांसद भी प्रस्तावित विधेयक पर बहस करेंगे। इसलिए जो लोग यह भ्रम फैलाने का अभियान चला रहे हैं कि समान नागरिक संहिता को थोपा जा रहा है उन्हें देखना चाहिए कि जब किसी कानून को बनाने से पहले संपूर्ण प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है तब वह थोपा हुआ कैसे हो सकता है?
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यूसीसी के विरोधी जरा ध्यान दें
इसके अलावा, समान नागरिक संहिता के विरोध में तमाम तरह के तर्क दे रहे, समान नागरिक संहिता आने पर तूफान आने की चेतावनी दे रहे और समान नागरिक संहिता आने पर धार्मिक आधार पर विभाजन बढ़ने की बात कह रहे लोगों को देखना चाहिए कि यह देश के लिए नई चीज नहीं है। गोवा में आजादी के बाद से ही समान नागरिक संहिता लागू है। क्या किसी ने सुना है कि वहां पर धार्मिक आधार पर भेदभाव होता है? क्या किसी ने सुना है कि गोवा में समान नागरिक संहिता की वजह से अल्पसंख्यकों को किसी भी प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ा? क्या किसी ने सुना है कि समान नागरिक संहिता की वजह से किसी को अनावश्यक लाभ या किसी को नुकसान हुआ? जाहिर है इन सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं में ही होगा। इसलिए जब हमारे समक्ष गोवा जैसा जांचा परखा और खरा उदाहरण है तो समान नागरिक संहिता का विरोध करना सिर्फ 'राजनीति' से प्रेरित कदम ही लगता है।
यूसीसी का विरोध आखिर क्यों?
इसके साथ ही हमें यह भी देखना चाहिए कि दुनिया के कई देशों में पहले से ही समान नागरिक कानून हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय की ओर से भी इस संबंध में कानून लाने के लिए सरकार को कहा जा चुका है। इसलिए समय आ गया है कि इस मुद्दे को टालने की बजाय इसका हल निकालना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को उन राजनीतिक विवादों को नहीं झेलना पड़े जिसका आज की पीढ़ी ने सामना किया या कर रही है। दुनिया जब तेजी से आगे बढ़ रही है, ऐसे में हम पीछे नहीं छूट जायें, इसके लिए जरूरी है कि देश के विकास और एकता को बाधित करने वाले दशकों पुराने मुद्दों का हल जल्द से जल्द निकाला जाये ताकि सरकार पुरानी दुश्वारियों को दूर करने में ऊर्जा लगाने की बजाय देश के भविष्य को सुनहरा बनाने में ही पूरी तरह प्रयत्नशील रहे।
मोदी सरकार की तैयारी
इसके अलावा, हाल ही में कानून मंत्री के रूप में अर्जुन मेघवाल की नियुक्ति यह भी संदेश देती है कि 'अर्जुन के अचूक निशाने' की प्रतिभा का उपयोग करने का समय आ चुका है। देखना होगा कि सरकार संसद के मॉनसून सत्र में ही समान नागरिक संहिता संबंधी विधेयक लाती है या फिर इसे संसद के शीतकालीन सत्र तक टाला जाता है। संसद के शीतकालीन सत्र के समय छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव चल रहे होंगे, इसलिए यह उस समय भी राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के लिए लाभदायक हो सकता है। लेकिन भाजपा ने और खुद प्रधानमंत्री ने जिस तरह समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर अपनी सक्रियता बढ़ाई है उसको देखते हुए इस कानून के जल्द ही हकीकत बनने के आसार हैं।
बहरहाल, प्रधानमंत्री की ओर से समान नागरिक संहिता की बात कहे जाने के बाद जिस तरह बिना मांगे ही आम आदमी पार्टी और शिवसेना यूबीटी ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का समर्थन कर दिया है उससे विपक्षी एकता को भी धक्का पहुँचा है। पटना में विपक्षी दलों की बैठक में तय किया गया था कि मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई एकजुट होकर लड़ी जायेगी लेकिन सिर्फ समान नागरिक संहिता आने की सुगबुगाहट पर ही जिस तरह कुछ विपक्षी दलों ने सरकार का समर्थन कर दिया वह दर्शाता है कि यह मुद्दा मोदी सरकार का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित होने वाला है।
-नीरज कुमार दुबे
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