लिथियम की होड़ में भारत-चीन आमने-सामने, अर्जेंटीना बना रणनीतिक रणभूमि

हम आपको बता दें कि चीन अर्जेंटीना का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों देशों ने कृषि, अवसंरचना, ऊर्जा और रक्षा जैसे क्षेत्रों में कई समझौते किए हैं। चीन अर्जेंटीना से बड़ी मात्रा में सोयाबीन, मांस और कृषि उत्पाद आयात करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अर्जेंटीना की द्विपक्षीय यात्रा दोनों देशों के आपसी संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही इस यात्रा का एक और बड़ा रणनीतिक असर होने जा रहा है। हम आपको बता दें कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में लैटिन अमेरिका और एशिया के देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते गहराते जा रहे हैं। अर्जेंटीना और चीन के संबंध इसी उभरते भू-राजनीतिक समीकरण का हिस्सा हैं। बीते एक दशक में अर्जेंटीना ने चीन के साथ अपने व्यापारिक, निवेश, और कूटनीतिक संबंधों को अत्यंत मजबूत किया है। यह संबंध न केवल क्षेत्रीय रणनीति को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि भारत के लिए भी कई अवसर और चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं।
हम आपको बता दें कि चीन अर्जेंटीना का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों देशों ने कृषि, अवसंरचना, ऊर्जा और रक्षा जैसे क्षेत्रों में कई समझौते किए हैं। चीन अर्जेंटीना से बड़ी मात्रा में सोयाबीन, मांस और कृषि उत्पाद आयात करता है। साथ ही चीन ने अर्जेंटीना में जलविद्युत परियोजनाओं और परमाणु संयंत्रों में भारी निवेश किया है। यही नहीं, अर्जेंटीना वर्ष 2022 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव BRI में शामिल हुआ, जिससे चीन की लैटिन अमेरिका में रणनीतिक उपस्थिति और गहराई। एक खास बात और है कि अर्जेंटीना “लिथियम ट्रायंगल” का हिस्सा है और चीन ने वहां की कई लिथियम परियोजनाओं में निवेश कर रखा है।
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चीन का अर्जेंटीना में गहराता प्रभाव भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से चिंता का विषय है, खासकर जब चीन की नीति Global South के देशों में कर्ज और निवेश के माध्यम से प्रभाव बढ़ाने की रही है। यहां यह भी काबिलेगौर है कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों और ऊर्जा भंडारण के लिए लिथियम पर निर्भर है। अर्जेंटीना में चीन की बढ़ती हिस्सेदारी इस महत्वपूर्ण खनिज की वैश्विक आपूर्ति में भारत को पीछे धकेल सकती है। इसलिए भारत अर्जेंटीना के साथ अपने संबंधों को मजबूती देना चाहता है, लेकिन चीन की पहले से मौजूदगी भारत की कूटनीतिक पहुंच को सीमित कर सकती है। लेकिन भारत के "ग्लोबल साउथ" को जोड़ने की नीति अर्जेंटीना जैसे देशों में स्वीकार्यता पा रही है।
देखा जाये तो भारत और चीन दोनों ही अर्जेंटीना को एक बड़ा कृषि, औद्योगिक और खनिज स्रोत मानते हैं। हालांकि चीन का आक्रामक निवेश मॉडल भारत के लिए प्रतिस्पर्धा को कठिन बना देता है, खासकर तब जब भारत सतर्क और स्थिर निवेश नीति पर चलता है। सवाल उठता है कि भारत की रणनीतिक दिशा क्या होनी चाहिए? इसका जवाब यह हो सकता है कि भारत को अर्जेंटीना सहित लैटिन अमेरिका के देशों में उच्च स्तरीय राजनीतिक और व्यापारिक संवाद को और गहरा करना होगा। साथ ही अर्जेंटीना में लिथियम जैसे संसाधनों के लिए भारत को चीन के समानांतर रणनीतिक साझेदारियाँ बनानी होंगी। इसके अलावा, 'सॉफ्ट पावर' के माध्यम से भारत अर्जेंटीना में अपनी पहचान मजबूत कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अर्जेंटीना दौरे में देखने को आया कि भारत जिन उद्देश्यों और लक्ष्यों को लेकर चल रहा है उसमें सही रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। वैसे भी हाल के वर्षों में भारत और अर्जेंटीना के द्विपक्षीय संबंध ऐतिहासिक, कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से लगातार प्रगाढ़ हुए हैं। ये संबंध केवल व्यापार और कूटनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, खेल और संस्कृति जैसे विविध क्षेत्रों में भी परस्पर सहयोग का आधार बनते जा रहे हैं। हम आपको बता दें कि भारत और अर्जेंटीना के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध 1949 में स्थापित हुए थे। दोनों देश वैश्विक मंचों पर समान विचार साझा करते हैं– जैसे बहुपक्षवाद, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद विरोध और Global South की आवाज को सशक्त बनाना। पिछले दो दशकों में दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय राजनीतिक यात्राएं, व्यापारिक समझौते और रणनीतिक सहयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
प्रधानमंत्री की इस यात्रा के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर करें तो आपको बता दें कि दोनों देशों ने रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सहयोग को लेकर सहमति जताई। साथ ही अर्जेंटीना चूंकि Lithium Triangle का हिस्सा है और भारत की इलेक्ट्रिक वाहन नीति के लिए लिथियम एक प्रमुख संसाधन है, इसलिए प्रधानमंत्री की यात्रा में लिथियम आपूर्ति के समझौते बेहद अहम रहे। इसके अलावा, अर्जेंटीना कृषि विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में उन्नत है इसलिए भारत ने कृषि क्षेत्र में सहयोग की दिशा में भी कदम बढ़ाए हैं। साथ ही दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ाने पर जोर दिया, विशेषकर आईटी, फार्मा और ऑटोमोबाइल सेक्टर में निवेश को प्रोत्साहन देने पर सहमति हुई।
आगे की संभावनाओं पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि भारत-अर्जेंटीना संबंध आने वाले वर्षों में और अधिक सुदृढ़ हो सकते हैं, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा, खासकर सौर और पवन ऊर्जा में। इसके अलावा, छात्र विनिमय कार्यक्रम और विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी से शिक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग और बढ़ने की संभावना है। साथ ही अर्जेंटीना की फुटबॉल विरासत और भारत की सांस्कृतिक विविधता के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की भी अपार संभावनाएं हैं।
बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अर्जेंटीना यात्रा भारत की "Act Global" कूटनीतिक नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। इस यात्रा ने न केवल दोनों देशों के बीच सहयोग के नए द्वार खोले हैं बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को और सुदृढ़ किया है। अर्जेंटीना जैसे लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भारत के संबंधों की सुदृढ़ता न केवल आपसी सहयोग को बढ़ावा देती है, बल्कि वैश्विक संतुलन की दिशा में एक सकारात्मक कदम भी है।
-नीरज कुमार दुबे
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