भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच रक्षा संवाद के जरिये सामरिक संबंधों में हो गयी नई शुरुआत

भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुई प्रथम रक्षा रणनीतिक वार्ता इस बढ़ते सामरिक सहयोग का एक स्पष्ट संकेत है। प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, समुद्री सूचना साझा करना और बहुपक्षीय सहयोग के क्षेत्र में बातचीत ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को नई गति प्रदान की है।
भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच गहराते रक्षा संबंध न केवल द्विपक्षीय सहयोग की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र की उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों के संदर्भ में भी सामरिक दृष्टि से अत्यंत प्रासंगिक हैं। देखा जाये तो आज की वैश्विक व्यवस्था में, समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, साइबर खतरों और बहुपक्षीय सहयोग जैसे मुद्दों पर साझेदारी का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है। न्यूज़ीलैंड भले ही भौगोलिक रूप से भारत से दूर हो, परंतु दोनों देशों के साझा लोकतांत्रिक मूल्य, मुक्त और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता उन्हें स्वाभाविक रणनीतिक साझेदार बनाते हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जो आज वैश्विक शक्ति संघर्ष का केंद्र बन चुका है, उसमें भारत की भूमिका एक प्रमुख स्थिर कारक के रूप में उभर रही है। वहीं, न्यूजीलैंड अपनी शांतिपूर्ण, सहयोगात्मक नीति और समुद्री सुरक्षा में सक्रियता के कारण एक विश्वसनीय साझेदार है। इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच समन्वय अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हम आपको बता दें कि भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुई प्रथम रक्षा रणनीतिक वार्ता (Defence Strategic Dialogue) इस बढ़ते सामरिक सहयोग का एक स्पष्ट संकेत है। प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, समुद्री सूचना साझा करना और बहुपक्षीय सहयोग के क्षेत्र में बातचीत ने द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को नई गति प्रदान की है। अतः यह कहा जा सकता है कि भारत और न्यूजीलैंड के बीच रक्षा सहयोग केवल रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता, वैश्विक सामंजस्य और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है। भविष्य में यह सहयोग दोनों देशों के लिए सामरिक संतुलन और वैश्विक नेतृत्व के अवसरों को और सुदृढ़ कर सकता है।
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हम आपको बता दें कि 05 अगस्त, 2025 को नई दिल्ली में भारत-न्यूज़ीलैंड रक्षा रणनीतिक वार्ता (Defence Strategic Dialogue) का पहला संस्करण आयोजित किया गया। यह न केवल दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को गहराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में एक नए रणनीतिक तालमेल की शुरुआत भी मानी जा सकती है। इस संवाद की सह-अध्यक्षता भारत के रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव (अंतरराष्ट्रीय सहयोग) अमिताभ प्रसाद और न्यूजीलैंड रक्षा मंत्रालय की अंतरराष्ट्रीय शाखा की प्रमुख मिस कैथलीन पियर्स ने की। वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में सहयोग बढ़ाने, समुद्री सुरक्षा और रक्षा उद्योग में साझेदारी को सशक्त करने, बहुपक्षीय सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार करने, ग्लोबल कॉमन्स (जैसे कि समुद्री क्षेत्र, साइबर स्पेस आदि) से संबंधित मुद्दों पर सामंजस्य बढ़ाने और White Shipping Information Exchange के माध्यम से सूचना साझा करने की प्रक्रिया को और मजबूत करने पर चर्चा की।
इसके अलावा, भारत ने न्यूजीलैंड की CTF-150 (Combined Task Force-150) की सफल कमान संभालने के लिए सराहना की, जिसमें भारतीय नौसेना के पाँच जवान भी स्टाफ के रूप में तैनात थे। यह तथ्य दोनों देशों के बीच अंतर-संचालन और विश्वास का प्रतीक है। हम आपको याद दिला दें कि मार्च 2025 में दोनों देशों के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसके अंतर्गत यह संवाद स्थापित किया गया। इस MoU ने दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को औपचारिक और संस्थागत रूप प्रदान किया है। देखा जाये तो यह वार्ता सिर्फ एक द्विपक्षीय चर्चा नहीं थी, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नवीन शक्ति संतुलन और साझी रणनीतियों के निर्माण की प्रक्रिया का हिस्सा है। भारत और न्यूज़ीलैंड दोनों ही लोकतांत्रिक मूल्य, खुले समुद्री मार्गों की सुरक्षा, और कानून आधारित वैश्विक व्यवस्था में विश्वास रखते हैं।
हम आपको बता दें कि राजनयिक और रक्षा सहयोग के साथ-साथ दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, शैक्षणिक और खेल—विशेषकर क्रिकेट—के माध्यम से भी मजबूत संबंध हैं। अगस्त 2024 में भारत के राष्ट्रपति की न्यूजीलैंड यात्रा और मार्च 2025 में दोनों प्रधानमंत्रियों की बैठक ने द्विपक्षीय रिश्तों को नई ऊँचाई दी है।
बहरहाल, भारत-न्यूज़ीलैंड रक्षा रणनीतिक संवाद एक ऐसा मंच बनकर उभरा है, जो केवल सुरक्षा सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक नेतृत्व, क्षेत्रीय स्थिरता, और रणनीतिक लचीलापन की दिशा में भी मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है। यह संवाद दोनों देशों की साझा आकांक्षाओं, लोकतांत्रिक मूल्यों और वैश्विक जिम्मेदारियों का प्रमाण है।
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