Vishwakhabram: वैश्विक राजनीति का परिदृश्य बदल कर रख सकता है भारत-चीन-रूस का त्रिपक्षीय मंच RIC

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हम आपको बता दें कि रूस जहां सैन्य शक्ति, ऊर्जा संसाधन और यूरोपीय-एशियाई भू-राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी है वहीं भारत विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था, युवा जनसंख्या और इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक ताकत है।

चीन ने रूस द्वारा की गई रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने की पहल का समर्थन किया है। उल्लेखनीय है कि यह कोई नया मंच नहीं है, बल्कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध से ही यह इन तीन देशों के बीच संवाद का माध्यम रहा है। हालाँकि, बीते वर्षों में चीन-भारत सीमा विवाद और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यह मंच निष्क्रिय-सा हो गया था। अब चीन का समर्थन इस ओर इशारा करता है कि विश्व राजनीति में एक नई धुरी बनने की संभावना फिर से उभर रही है।

हम आपको बता दें कि रूस जहां सैन्य शक्ति, ऊर्जा संसाधन और यूरोपीय-एशियाई भू-राजनीति में प्रमुख खिलाड़ी है वहीं भारत विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था, युवा जनसंख्या और इंडो-पैसिफिक में रणनीतिक ताकत है। दूसरी ओर चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एशिया का आर्थिक इंजन है। यदि ये तीनों देश मिलकर साझा हितों के आधार पर आगे बढ़ते हैं, तो यह पश्चिम के नेतृत्व वाली मौजूदा विश्व व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।

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अगर यह तीनों देश साथ आते हैं तो अमेरिकी वर्चस्व को सीधे-सीधे चुनौती मिलेगी। देखा जाये तो अब तक वैश्विक व्यवस्था अमेरिका और उसके सहयोगियों (G7, NATO, EU) के प्रभुत्व में रही है। यदि रूस-भारत-चीन साथ आते हैं, तो वे एक "मल्टी-पोलर वर्ल्ड" यानी बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूती देंगे, जिसमें अमेरिका का वर्चस्व कम होगा।

इसके अलावा, ये तीनों देश संयुक्त राष्ट्र, BRICS, SCO जैसी संस्थाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। यदि वे एक सुर में बोलें तो वैश्विक एजेंडा (जलवायु, विकास, आतंकवाद) पश्चिम के हितों के बजाय इन देशों के पक्ष में ढल सकता है। साथ ही यूरोप में रूस-यूक्रेन युद्ध, एशिया में अमेरिका-चीन टकराव और भारत-चीन सीमा विवाद जैसे मुद्दों के बीच यदि ये तीनों मिलकर काम करते हैं, तो वैश्विक ध्रुवीकरण और तेज हो सकता है।

 

 पक्ष भारत चीन रूस
 भू-राजनीतिक हित अमेरिका और पश्चिम के दबाव से संतुलन अमेरिका को एशिया में चुनौती देना पश्चिमी प्रतिबंधों से निकलने के लिए एशिया का सहारा
 सुरक्षा हित रूस से रक्षा सहयोग, चीन के साथ तनाव कम रूस के साथ सैन्य, ऊर्जा सहयोग चीन और भारत दोनों से सैन्य-रणनीतिक संबंध मजबूत करना
 आर्थिक हित ऊर्जा, टेक्नोलॉजी, व्यापार के नए विकल्प एशिया में व्यापार और निवेश के नए अवसर चीन-भारत के साथ व्यापार, ऊर्जा निर्यात को बढ़ावा
 बाधाएँ सीमा विवाद, चीन पर अविश्वास भारत से अविश्वास, भारत का पश्चिम झुकाव भारत-चीन दोनों के बीच असंतुलन का खतरा
 संभावित लाभ रणनीतिक विकल्पों का विस्तार, संतुलन अमेरिका के खिलाफ नया संतुलन एशिया में नई शक्ति धुरी के रूप में पुनर्स्थापना

तीनों देशों के साथ आने से खुद भारत, रूस और चीन को क्या लाभ होगा, यदि इसका जिक्र करें तो आपको बता दें कि रूस-चीन के साथ अच्छे रिश्तों से भारत सामरिक संतुलन बना सकता है। साथ ही भारत ऊर्जा, रक्षा, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में रूस और चीन से नए अवसर पा सकता है। इसके अलावा, इस त्रिकोण से भारत को चीन के साथ स्थायी संवाद करने से सीमा विवाद में तनाव कम करने का मंच मिलेगा।

वहीं रूस को होने वाले लाभों को देखें तो पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच उसे एशिया में नए साझेदारों के साथ आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य विकल्प मिलेंगे। साथ ही चीन-भारत दोनों को साथ रखकर रूस अपनी रणनीतिक भूमिका को पुनः मज़बूत कर सकता है।

इस गठजोड़ से चीन को होने वाले लाभ को देखें तो इससे अमेरिका के खिलाफ नया संतुलन बनेगा। साथ ही भारत के साथ टकराव को कम करके चीन अपने आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को सुरक्षित कर सकेगा और रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में उसके गहरे संबंध बनेंगे।

तीनों देशों के गठजोड़ में संभावित बाधाओं और चुनौतियों को देखें तो भारत-चीन सीमा विवाद और विश्वास की कमी सबसे बड़ी बाधा है। इसके अलावा, यह भी डर है कि रूस-चीन की बढ़ती नजदीकी कहीं भारत को हाशिए पर न धकेल दे। साथ ही भारत पश्चिम (अमेरिका, फ्रांस, जापान) के साथ भी गहरे संबंध चाहता है, जिससे यह त्रिकोण अस्थिर रह सकता है।

हम आपको बता दें कि भारत, रूस और चीन के गठजोड़ आरआईसी को पुनर्जीवित करने में रूस और चीन की दिलचस्पी हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर के शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बीजिंग की यात्रा करने के बाद बढ़ी है। इस दौरान, जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी और उनके रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव सहित शीर्ष चीनी-रूसी अधिकारियों के साथ बातचीत की थी। हम आपको याद दिला दें कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने मई महीने में कहा था कि रूस, जिसके भारत और चीन के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, आरआईसी प्रारूप को पुनर्जीवित करने में ‘‘वास्तव में रुचि’’ रखता है। उन्होंने कहा था कि रूस के पूर्व प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की ओर से शुरू की गई त्रिपक्षीय व्यवस्था के परिणामस्वरूप तीनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों पर 20 बैठकें हुईं थीं। 

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय सहयोग यदि पुनर्जीवित होता है तो इससे विश्व व्यवस्था में शक्ति संतुलन बदल सकता है। साथ ही बहुध्रुवीय विश्व की अवधारणा को मजबूती मिल सकती है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब तीनों देश अपने पारस्परिक मतभेदों को कुशलतापूर्वक संभाल सकें। भारत के लिए यह अवसर और चुनौती दोनों है: एक ओर सामरिक विकल्पों का विस्तार है तो दूसरी ओर संतुलन की जटिल कूटनीति है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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