राकेश टिकैत के आंसुओं पर पिघलने वालों को पुलिसवालों के बहे खून पर दया क्यों नहीं आती ?

Rakesh Tikait

देश का आम किसान खेतों में काम कर रहा है और नये कानूनों का लाभ भी उठा रहा है लेकिन किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले सड़क पर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। राजनीति चमकाइये लेकिन देश पर धब्बा तो मत लगाइये।

ट्रैक्टर परेड रोकने वालों का बक्कल उतार देने की धमकी देने वाले किसान नेता राकेश टिकैत के खिलाफ मुकदमे क्या दर्ज हुए वह बुक्का फाड़ कर रोने लगे और कहने लगे कि आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे भले आत्महत्या क्यों ना करनी पड़े। राकेश टिकैत के आंसुओं पर कुछ लोगों को भले दया आ गयी हो लेकिन जरा सोचिये क्या इन आंसुओं से ज्यादा कीमती वह खून नहीं है जो हमारे दिल्ली पुलिस के जवानों का बहा है। अस्पतालों में बिस्तर पर पड़े हमारे लगभग 400 जवानों में से कुछ गंभीर स्थिति में भी हैं। हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि सहानुभूति वीर और धैर्यवान पुलिसवालों से रखें या भारत के स्वाभिमान तिरंगे का अपमान करने वालों से। आज लाल किले की ऊँची-ऊँची दीवारें न्याय माँग रही हैं ऐसे में सवाल यह है कि क्यों उन दीवारों की चीखों के बीच राकेश टिकैत जैसे लोगों की नकली सुबकियों की ही आवाज सुनी जा रही है। देश की सरकार को कोई महत्व नहीं देने वाले, संसद से पारित कानूनों की प्रतियों को जलाने वाले, देश के उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाले राकेश टिकैत जैसे नेता आज कह रहे हैं कि गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा मामले की जाँच उच्चतम न्यायालय की निगरानी वाली समिति करे। यह दोहरा रवैया नहीं तो और क्या है? 

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लुटेरों-हमलावरों से सहानुभूति क्यों रखें?

देश का आम किसान खेतों में काम कर रहा है और नये कानूनों का लाभ भी उठा रहा है लेकिन किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले सड़क पर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं। राजनीति चमकाइये लेकिन देश पर धब्बा तो मत लगाइये। लाल किले पर धार्मिक झंडा लहरा कर देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने पर तो प्रहार किया ही गया साथ ही लाल किले से प्राचीन वस्तुओं को गायब कर दिया गया और गणतंत्र दिवस पर दिखाई गई झांकियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। हम आपको बता दें कि गणतंत्र दिवस समारोह के बाद सभी झांकियों को लाल किला परिसर में रखा जाता है। 7 से 15 दिन तक लोग इन्हें देखने के लिये आते हैं लेकिन जब संस्कृति मंत्री लाल किले के हालात का जायजा लेने पहुँचे तो पाया कि झांकियां क्षतिग्रस्त हैं। जो झांकियां क्षतिग्रस्त की गयीं उनमें राम मंदिर की झांकी भी शामिल है। सरकार को जो वित्तीय नुकसान हुआ उसे एक तरफ रखते हैं जरा उन बहुमूल्य प्राचीन वस्तुओं की सोचिये जिन्हें यह लुटेरे लूट कर ले गये। सवाल आपसे है कि क्या देश की धरोहरों के हमलावरों, क्या देश की बहुमूल्य प्राचीन वस्तुओं के लुटेरों, क्या तिरंगे की आन बान शान कायम रखने और कानून व्यवस्था बनाये रखने में जुटे हमारे जवानों पर हमला करने वालों से हमें जरा-सी भी सहानुभूति रखने की जरूरत है?

दिल्ली पुलिस तारीफ के काबिल

अगर राकेश टिकैत जैसे भड़काऊ बयान देने वाले नेताओं को कानून के कठघरे में जल्द नहीं लाया गया तो ऐसी ताकतों का हौसला बढ़ेगा। राकेश टिकैत जैसे नेता भावनाओं से खेलना जानते हैं और अपना खोता हुआ जनसमर्थन वापस पाने के लिए भावनात्मक खेल खेल रहे हैं। राकेश टिकैत को समझना होगा कि रोकर अगर सारे गुनाफ माफ हो जाते तो कानून की जरूरत ही क्या थी? राकेश टिकैत समेत जिन भी किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी है उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाना चाहिए क्योंकि हमें अस्पताल में पड़े हमारे 400 पुलिस जवानों को भी न्याय दिलाना है। इन पुलिसवालों ने शांति बनाये रखने की भरसक कोशिश करते हुए जिस बहादुरी के साथ अपने ऊपर तलवारों, पत्थरों और डंडों के प्रहार झेले हैं उसके लिए यह सभी तारीफ के काबिल हैं।

नेताओं ने नहीं निभाई जिम्मेदारी

इस मामले में राजनीतिक दलों को बड़ी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी और देश की भावना का सम्मान करना चाहिए था लेकिन विपक्ष के कुछ दलों ने ऐसा करने की बजाय किसान आंदोलन को जिंदा रखने में अपना दमखम लगाने का फैसला किया ताकि मोदी सरकार पर दबाव बनाये रखा जाये। जब उत्तर प्रदेश प्रशासन गाजीपुर से धरना स्थल खाली करने का प्रयास कर रहा था तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ट्वीट पर ट्वीट किये जा रहे थे और आरोप लगा रहे थे कि किसानों को धमकाया जा रहा है और जो लोग अन्नदाताओं को तोड़ना चाहते हैं वे देशद्रोही हैं। यही नहीं शुक्रवार सुबह दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया गाजीपुर बॉर्डर पहुँच कर किसानों को समर्थन देते दिखे। एक सवाल इन नेताओं से भी है। कोरोना महामारी के बाद अब जब भारत तेजी से खड़ा हो रहा है और चाहे बात वैक्सीन की हो या मिसाइल की, हर मामले में आत्मनिर्भर बन कर पूरी दुनिया का सबसे बड़ा मददगार साबित हो रहा है, देश की अर्थव्यवस्था जब तेजी से प्रगति की पटरी पर दौड़ लगा रही है, ऐसे में हमें एकजुट होकर देश को महामारी काल में हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए या प्रगति में बाधा पैदा करनी चाहिए? 

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जाग गयी है जनता

बहरहाल, नेताओं ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई इसलिए अब जनता उठ खड़ी हुई है और बात चाहे गाजीपुर बॉर्डर की हो, टीकरी बॉर्डर की हो या फिर सिंघू बॉर्डर की, स्थानीय लोग जिस तरह इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं और सड़कें खाली कराने की माँग कर रहे हैं उससे अराजकतावादियों के होश उड़ गये हैं। जनता को और बड़ी संख्या में अराजकतावादियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए वर्ना ऐसे लोगों का हौसला बढ़ेगा। यही नहीं अब कई किसान नेताओं को इस बात का भान हो गया है कि वह गलत लोगों के चक्कर में पड़ गये थे इसलिए इस आंदोलन से वह तेजी से हटते भी जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन (लोक शक्ति) ने कृषि कानूनों के खिलाफ अपने प्रदर्शन को समाप्त करने की घोषणा के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की तो उनके सारे गिले शिकवे दूर हो गये और कानून के फायदे भी समझ आ गये।

-नीरज कुमार दुबे

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