Russia-Ukraine War ने भर दी अमेरिकी रक्षा कंपनियों की झोली, ORF रिपोर्ट ने Trump की पोल खोली

Donald Trump
ANI

नतीजा यह है कि लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन जैसी अमेरिकी कंपनियां युद्ध के हर दिन मुनाफ़े की नई ऊंचाई छू रही हैं। NATO देशों को भी अपने रक्षा बजट बढ़ाने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जिससे अमेरिकी हथियार उद्योग के लिए और बड़े अवसर पैदा हो रहे हैं।

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। हजारों जानें जा चुकी हैं, लाखों लोग शरणार्थी बन गए हैं और यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था गहरे संकट में है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह संघर्ष अभी भी किसी निर्णायक जीत या हार की ओर नहीं बढ़ पाया है। लेकिन अगर इस युद्ध के बीच किसी ने सबसे ठोस और वास्तविक लाभ कमाया है, तो वह हैं अमेरिकी रक्षा कंपनियां। थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ORF) की रिपोर्ट बताती है कि 2022 से अब तक अमेरिका ने यूक्रेन को लगभग 66.9 अरब डॉलर की सैन्य सहायता दी है। शुरुआती दौर में यह पैकेज सीधे मदद के रूप में था, लेकिन 2024 से अमेरिकी नीति ने करवट ली और अब यह हथियारों की बिक्री में बदल चुका है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने यूक्रेन को मिसाइलों, तोपों और हथियारों की आपूर्ति को “बाज़ार” का रूप दे दिया है।

नतीजा यह है कि लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन जैसी अमेरिकी कंपनियां युद्ध के हर दिन मुनाफ़े की नई ऊंचाई छू रही हैं। NATO देशों को भी अपने रक्षा बजट बढ़ाने के लिए बाध्य किया जा रहा है, जिससे अमेरिकी हथियार उद्योग के लिए और बड़े अवसर पैदा हो रहे हैं। विडंबना यह है कि राजनीतिक स्तर पर अमेरिका भारत पर रूस से तेल खरीदने के लिए उंगली उठाता है, लेकिन असली खेल उसके अपने सैन्य-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स के मुनाफ़े से जुड़ा है। युद्ध चाहे लंबा खिंचे या किसी मोड़ पर थमे, अमेरिकी रक्षा कंपनियों के कैश रजिस्टर लगातार बढ़ते रहेंगे। यानी, रूस-यूक्रेन युद्ध का निष्कर्ष यह है कि मैदान में भले ही अभी कोई स्पष्ट विजेता न दिखे, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर असली जीत अमेरिकी रक्षा उद्योग की हो चुकी है। यही आज की सबसे कठोर और सबसे असहज सच्चाई है।

ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध का वास्तविक लाभार्थी अमेरिका का सैन्य-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स (Military-Industrial Complex) है, जिसने इस युद्ध के चलते हथियारों के ऑर्डर, उत्पादन, मुनाफे और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से जुड़ी रक्षा प्रणालियों के करारों में “विस्फोटक वृद्धि” दर्ज की है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच, यूक्रेन की कुल हथियार खरीद का 45% हिस्सा अमेरिका से आया, जो इस अवधि में अमेरिका के कुल हथियार निर्यात का 9.3% है। शुरुआती दौर में यह सहायता सीधे सैन्य पैकेज के रूप में थी, लेकिन 2024-25 से अमेरिका ने इसे हथियारों की बिक्री में बदलना शुरू किया। अगस्त 2025 में अमेरिका ने 825 मिलियन डॉलर मूल्य के 3,350 विस्तारित दूरी वाले आक्रमण मिसाइलों की बिक्री को मंजूरी दी। इसके बाद जुलाई में ट्रंप और NATO महासचिव मार्क रुट्टे की बैठक में यूरोपीय देशों और कनाडा को अमेरिका से 10 अरब डॉलर से अधिक के हथियार खरीदने पर राज़ी किया गया। यह बदलाव स्पष्ट करता है कि अमेरिका अब “उदार सहायता” देने की बजाय यूक्रेन संकट को अपने हथियार बाजार के विस्तार का अवसर मान रहा है।

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NATO और रक्षा बजट: अमेरिकी दबाव या सुरक्षा अनिवार्यता?

इसके अलावा, जून 2025 के NATO सम्मेलन में सदस्य देशों ने घोषणा की थी कि वे 2035 तक अपने वार्षिक रक्षा बजट को GDP के 5% तक बढ़ाएंगे। यह 2006 के 2% लक्ष्य से लगभग 150% की छलांग है। हम आपको बता दें कि वर्तमान में अमेरिका NATO सहयोगियों की कुल हथियार खरीद का 64% आपूर्ति करता है, जो 2015-19 में 52% था। इस तरह वैश्विक हथियार निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 2014-19 के 35% से बढ़कर 2020-24 में 43% हो गई। स्पष्ट है कि यूक्रेन युद्ध अमेरिकी हथियार उद्योग के लिए 'कैश काउ' साबित हो रहा है।

इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के रक्षा औद्योगिक ढांचे में 100,000 से अधिक कंपनियां शामिल हैं। इनमें से पाँच दिग्गज— लॉकहीड मार्टिन, RTX, जनरल डायनैमिक्स, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन और बोइंग, पेंटागन के एक-तिहाई से अधिक ठेके हासिल करती हैं। केवल 2024 में फॉरेन मिलिट्री सेल्स (FMS) के तहत हथियार सौदों का मूल्य 117.9 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो 2023 की तुलना में लगभग 46% अधिक है। इसी अवधि में डायरेक्ट कमर्शियल सेल्स 157.5 अरब डॉलर से बढ़कर 200.8 अरब डॉलर हो गईं। यानी, “लगातार चल रहे संघर्ष” जैसे- इराक, अफगानिस्तान, यूक्रेन और चीन के बढ़ते खतरे ने अमेरिकी रक्षा ठेकेदारों के लिए लगातार मुनाफ़े का स्रोत उपलब्ध कराया है।

दूसरी ओर, जहां अमेरिका के राजनीतिक वर्ग में भारत को रूस-यूक्रेन युद्ध में “रूस का सहायक” बताकर निशाना बनाया जाता है, वहीं हकीकत यह है कि युद्ध की सबसे बड़ी आर्थिक कमाई अमेरिका के हथियार उद्योग को हो रही है। अमेरिका के भीतर भी ट्रंप और बाइडेन प्रशासन युद्ध की ज़िम्मेदारी को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हैं, किंतु दोनों ही कार्यकालों में अमेरिकी हथियार कंपनियां लाभान्वित होती रही हैं। देखा जाये तो भारत को इस विमर्श को वैश्विक मंच पर चुनौती देने की आवश्यकता है, क्योंकि उसका तेल और ऊर्जा आयात तो संतुलनकारी रणनीति का हिस्सा है। 

बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस-यूक्रेन युद्ध न केवल यूरोप की सुरक्षा को पुनर्परिभाषित कर रहा है, बल्कि उसने अमेरिका के सैन्य-औद्योगिक कॉम्प्लेक्स को नए शिखर पर पहुंचा दिया है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में यह सच्चाई कितने देशों की आंखें खोलती है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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