Trump-Munir Lunch का मेन्यू और मकसद क्या था? ट्रंप और मुनीर को एक दूसरे से क्या चाहिए?

देखा जाये तो डोनाल्ड ट्रंप जैसे लेन-देन वाले राजनेता के साथ पाकिस्तान की बढ़ती निकटता और अमेरिका की नई प्राथमिकताएं इस बात की जरूरत पर बल दे रही हैं कि भारत को अपनी विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को नए सिरे से आंकना चाहिए।
दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति कहे जाने वाले अमेरिका की कूटनीति ने सदैव "जैसे को तैसा" नहीं, बल्कि "जैसे से फायदा हो, वैसे को गले लगा लो" की नीति अपनाई है। चाहे वह सऊदी अरब के राजाओं को हथियार बेचना हो, या पाकिस्तानी सैन्य तानाशाहों को 'मित्र' बताना हो, सब कुछ स्वार्थ-सिद्धि के लिए किया गया। जहां तक पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर के अमेरिका में किये गये स्वागत की बात है तो यह इस ओर स्पष्ट इशारा है कि वॉशिंगटन अब फिर से रावलपिंडी की ओर झुकाव दिखा रहा है, खासकर ईरान और अफगानिस्तान जैसे जटिल मामलों में, जहां पाकिस्तान की भौगोलिक और सामरिक स्थिति अमेरिका के लिए फायदेमंद हो सकती है। ट्रंप और मुनीर की मुलाकात से यह भी स्पष्ट है कि लोकतंत्र, मानवाधिकार और वैश्विक शांति जैसे शब्द सिर्फ सजावट के लिए हैं, असल खेल रणनीतिक हित, निजी फायदे और चुनावी लाभ का है।
देखा जाये तो यह संपूर्ण घटनाक्रम भारत के लिए सिर्फ राजनयिक चिंता नहीं, बल्कि रणनीतिक चेतावनी भी है। ट्रंप जैसे लेन-देन वाले राजनेता के साथ पाकिस्तान की बढ़ती निकटता और अमेरिका की नई प्राथमिकताएं इस बात की जरूरत पर बल दे रही हैं कि भारत को अपनी विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति को नए सिरे से आंकना चाहिए। ट्रंप और मुनीर की मुलाकात के बारे में दोनों पक्षों की ओर से जो बयान जारी हुआ है और इस संबंध में जो मीडिया रिपोर्टें आईं हैं उन सभी का विश्लेषण करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि यह भेंट सिर्फ एक प्रतीकात्मक नहीं थी बल्कि यह लेन-देन और कूटनीतिक सौदेबाज़ी का केंद्रबिंदु थी। सवाल यह है कि कौन, किससे, क्या चाहता है?
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पहला सवाल है कि अमेरिका को मुनीर से क्या चाहिए? इसके तीन जवाब हो सकते हैं-
1. इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISK) के खिलाफ सहयोग- अमेरिकी सेंटकॉम (CENTCOM) प्रमुख की हालिया गवाही से संकेत मिला है कि अमेरिका और पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर गहराई से सहयोग कर रहे हैं। ट्रंप का मकसद हो सकता है कि वह मुनीर से ISK पर खुफिया और सैन्य सहयोग चाहते हों, खासकर अफगानिस्तान और ईरान सीमा क्षेत्रों में।
2. ईरान के खिलाफ सैन्य रणनीति- ईरान-इज़राइल तनाव और अमेरिका-ईरान टकराव की संभावना को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि:
-अमेरिका पाकिस्तान से बलूचिस्तान में लॉजिस्टिक बेस की अनुमति मांग रहा है।
-पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र का उपयोग ईरान पर संभावित अमेरिकी हमले के दौरान माँगा गया हो।
-अमेरिका, पाकिस्तान से ईरानी क्षेत्र में रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद की मांग कर सकता है।
-यहाँ तक कि ईरान में शासन परिवर्तन हेतु खुफिया सहयोग भी एजेंडे में हो सकता है।
3. चीन से पाकिस्तान को दूर करना- एक दीर्घकालिक अमेरिकी रणनीति यह हो सकती है कि पाकिस्तान को चीन के प्रभाव से दूर खींचा जाए। चूंकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और रक्षा सहयोग चीन को हिंद महासागर तक पहुँचाने में मदद करता है, इसलिए अमेरिका चाहता होगा कि पाकिस्तानी सेना की निष्ठा दोबारा वॉशिंगटन की ओर झुके।
अब दूसरा सवाल यह है कि मुनीर को ट्रंप से क्या चाहिए? इसके भी तीन जवाब हो सकते हैं।
1. आर्थिक राहत और निवेश- पाकिस्तान की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को देखते हुए, मुनीर ट्रंप से सीधा अमेरिकी निवेश, व्यापारिक सौदे और वित्तीय सहायता की मांग कर सकते हैं— विशेषकर ट्रंप परिवार से जुड़े क्रिप्टो और इंफ्रास्ट्रक्चर डील्स के माध्यम से।
2. कश्मीर पर अमेरिकी मध्यस्थता- यह सबसे विवादास्पद और संवेदनशील मांग हो सकती है। मुनीर चाह सकते हैं कि:
-ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश करें।
-भारत को वार्ता की मेज पर लाने के लिए दबाव डाला जाए, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद के संघर्षविराम को “मेड इन USA” के रूप में पेश किया जाए।
3. भारत पर दबाव: सिंधु जल संधि और आतंकवाद का आरोप- अमेरिका से आग्रह किया जा सकता है कि वह भारत पर सिंधु जल संधि के पालन के लिए दबाव डाले।
-इसके अलावा, भारत पर आरोप लगाया जा सकता है कि वह बलूच विद्रोहियों और टीटीपी (Tehrik-e-Taliban Pakistan) का समर्थन कर रहा है और पाकिस्तान चाहेगा कि अमेरिका इस पर भारत को कठघरे में खड़ा करे।
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या मुनीर से मुलाकात ट्रंप की व्यक्तिगत राजनीति का हिस्सा है? इसके भी तीन जवाब हो सकते हैं-
-यह मुलाकात आने वाले अमेरिकी चुनावों को ध्यान में रखकर भी की जा सकती है:
-ट्रंप खुद को वैश्विक शांति-स्थापक की छवि में पेश कर सकते हैं, खासकर अगर उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए कोई प्रचार मिले।
-पाकिस्तानी-अमेरिकी समुदाय को साधने और मुस्लिम दुनिया में एक "सुलहकर्ता" नेता के रूप में खुद को पेश करने का अवसर भी ट्रंप को मिल सकता है।
हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप से नज़दीकी बनाने के लिए मुनीर काफी समय से लालायित थे और इसका मौका उन्हें इसी साल अप्रैल में मिल भी गया था। दरअसल, अप्रैल में एक अमेरिकी क्रिप्टो फर्म 'वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (WLF)' ने पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल के साथ समझौता किया। यह फर्म ट्रंप परिवार से जुड़ी है और ट्रंप के बेटे एरिक और डोनाल्ड जूनियर तथा दामाद जेरेड कुशनर के पास इस कंपनी में 60% हिस्सेदारी है। WLF के प्रतिनिधिमंडल की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान मुनीर ने उनका व्यक्तिगत रूप से स्वागत किया था और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ बैठक भी की। इसी कंपनी ने व्हाइट हाउस के गुप्त निमंत्रण का रास्ता तैयार किया, जिसे इमरान खान के समर्थकों के विरोध से बचने के लिए गोपनीय रखा गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने अमेरिकी कंपनियों को (कागज़ पर ही सही) दुर्लभ खनिज खनन के अधिकार, टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट्स और कई अन्य "लाभकारी" योजनाएं पेश की हैं जिनमें ट्रंप से जुड़े लोग निवेशक होंगे।
बहरहाल, इस मुलाकात के बारे में जारी किये गये बयान में पाकिस्तान सेना ने यह भी कहा है कि मुनीर ने राष्ट्रपति ट्रंप को पाकिस्तान आने का औपचारिक निमंत्रण दिया है, जिसे ट्रंप ने "सकारात्मक रूप से" स्वीकार किया है। देखा जाये तो ट्रंप-मुनीर मुलाकात पाकिस्तान के लिए कूटनीतिक जीत और भारत के लिए राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से सतर्कता की घंटी है, खासकर ईरान से जुड़ी किसी भविष्य की सैन्य कार्रवाई में अमेरिका द्वारा पाकिस्तानी आधारों के उपयोग की संभावना को देखते हुए। यहां एक बात और काबिलेगौर है कि अमेरिका भले ही खुद को लोकतंत्र, मानवाधिकार और उदार मूल्यों का पुरोधा कहे, लेकिन इतिहास गवाह है कि जब अपने हितों की बात आती है, तो वह "तानाशाह हमारा हो, तो सब माफ़ है" के सिद्धांत पर ही चलता है। इसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो मुनीर का व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत और डोनाल्ड ट्रंप की ओर से मुनीर की बेशुमार प्रशंसा कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
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