प्रमुख स्वामी जी ने हिन्दू धर्म का सर्वव्यापी स्वरूप प्रतिष्ठित किया

तरुण विजय । Aug 29 2016 3:17PM

प्रमुख स्वामी जी ने बहुत गौरव और सुसंस्कृत भाव से हिन्दू धर्म के नवीन, सर्वव्यापी स्वरूप को प्रतिष्ठित किया। वेद, उपनिषद् एवं अनेकों धर्मशास्त्रों का अध्ययन और पारायण प्रोत्साहित किया।

भारत को सबसे बड़ा रक्षा कवच सेना नहीं संत शक्ति है, जिन्होंने निस्पृह, वीतरागी भाव से यहां के समाज और संस्कारों की सुगंध मिटने नहीं दी। गुजरात में यदि स्वामिनारायण संप्रदाय ने हिन्दुओं में नव-चैतन्य न भरा होता तो वहां हिंदू ढूंढने कठिन हो जाते- ऐसा था विदेशी धन और मन वाले मिशनरियों का षड़यंत्र। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के छपैया गांव से गुजरात की पावन धरती पर आए 'नीलकंठ' का वह चमत्कारी प्रभाव था कि इस धरती ने उन्हें भगवान माना और उनकी परम्परा ने देश-विदेश में हिंदू धर्म की ऐसी गौरव गाथा रची कि आज यदि कहा जाए कि स्वामिनारायण पंथ हिंदू धर्म का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करता है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

स्वामिनारायण पंथ के 67 वर्ष तक लगातार अध्यक्ष रहे पूज्य स्वामी गत 13 अगस्त को गुजरात के सारंगपुर में ब्रह्मलीन हो गए। केवल 28 वर्ष की आयु में 1950 में उन्हें विश्वव्यापी भक्तों की अपार निष्ठा से अलंकृत स्वामिनारायण (बोचासण वासी अक्षर पुरूषोत्तम संस्था) का प्रमुख पद मिला था। उनका मूल संन्यस्त नाम था शास्त्री नारायण स्वरूप दास। उनके मार्गदर्शन में न केवल विश्व के प्रमुख 15 देशों में विराट और भव्य मंदिरों की स्थापना की गयी बल्कि उच्च शिक्षित, विभिन्न विधाओं में युवा संन्यासियों की बहुत बड़ी संख्या हिंदू धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार में भी जुटी। आज 980 से अधिक ऐसे धर्मनिष्ठ विद्वान, शास्त्र मर्मज्ञ, अस्पृश्यतर को नकारने वाले आधुनिक संन्यासियों की एकजुटता वस्तुतः राष्ट्र धर्म के नए अभ्युदय का संकेत देती है।

प्रमुख स्वामी जी ने बहुत गौरव और सुसंस्कृत भाव से हिन्दू धर्म के नवीन, सर्वव्यापी स्वरूप को प्रतिष्ठित किया। वेद, उपनिषद् एवं अनेकों धर्मशास्त्रों का अध्ययन और पारायण प्रोत्साहित किया। गांधीनगर और नई दिल्ली में स्थापित अक्षरधाम वास्तव में भारतीय सभ्यता के उत्कर्ष की गाथा सुनाते हैं। दिल्ली के अक्षरधाम में प्रतिष्ठित पचास हजार से ज्यादा दर्शनों का अर्थ, भगवान नीलकंठ की प्रेरक संन्यास यात्रा, प्राचीन भारत में आयुर्वेद, खगोल शास्त्र, भौतिक एवं रसायन शास्त्र, गणित, बीजगणित, ज्यामिति और विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में हुए शोध का रोमांचक-प्रेरक-मनोहर परिचय कराने वाले स्वामिनारायण पंथ के मंदिर भारत-माता के भाल पर चंदन के तिलक समान सुशोभित हैं। धर्म को राष्ट्र के हित में जोड़कर प्रमुख स्वामी ने नवीन राष्ट्रधर्म को परिभाषित किया।

और भविष्य का भारत, आधुनिक टेक्नालॉजी के ज्ञान से सज्जित मनुष्य की सेवा में विज्ञान को लगाने वाला होगा। इस दृष्टि से प्रमुख स्वामी ने अपने नवीन युवा संन्यासियों को प्रवृत्त किया। विश्व की नवीनतम आधुनिकतम टेक्नालॉजी का उपयोग कर धर्म को 'जनरेशन एम्स' के सामने इतने प्रभावी ढंग से रखा कि आज उनके अनुयायियों में युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। विश्व को अचंभित करने वाले फ्रांसिसी डिजाइनर यूव्ज पेपीन गांधीनगर रहे और स्वामीनारायण के भक्तिभाव से प्रेरित होकर अपनी करोड़ों डॉलर की फीस भी नहीं ली।

लेकिन उससे बढ़कर प्रमुख स्वामी जी का योगदान रहा नौजवानों में नशे की लत को छुड़ाकर भगवद् भजन में लगाने का। उनके युवा संन्यासी रवि-सभाओं तथा बीएपीओ (बोचारूण वासी अक्षर पुरूपोत्तम संस्था) द्वारा नगरों और गांवों में हजारों टोलियों द्वारा नशामुक्ति का विशाल अभियान चलाते हैं। धर्मपुर, डांग जैसे जनजातीय क्षेत्रों में वनवासियों की कुटियों में जाकर धर्म प्रसार के साथ-साथ अच्छे जीवन द्वारा आर्थिक विकास का रास्ता दिखाने वाले युवा संन्यासी राष्ट्र प्रेम को भगवद्प्रेम का ही हिस्सा मानते हैं।

स्वच्छ, सुंदर भव्य मंदिर पुजारियों की दक्षिणा और पैसे की छाया से परे शांति और वीतरागी भाव ओढ़े वातावरण उस हिंदू धर्म का सनातन रूप प्रकट करता है जो हिंदू समाज के संगठन और राष्ट्र के अभ्युदय से जुड़ा है।

दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था और श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री नरेन्द्र मोदी की उसमें महती भूमिका रही। नरेन्द्र भाई तो उस समय भी प्रचारक जैसे ही रहते थे। प्रमुख स्वामी के आग्रह पर वे आए उद्घाटन पूजा में बैठे, तो यह जानकर कि नरेंद्र भाई की जेब में कदचित पूजा की थाली में चढ़ाने के लिए भी पैसे न हों, प्रमुख स्वामी ने विवेक सागर स्वामी से कहकर चुपचाप आरती के पैसे नरेंद्र भाई की जेब में डलवा दिए। ऐसी छोटी-छोटी बातों का ध्यान उन्हें रहता था। जब गंभीर रूग्णावस्था में प्रमुख स्वामी ने अन्न त्यागा तो ब्रह्म बिहारी स्वामी ने नरेन्द्र भाई को फोन किया। नरेन्द्र भाई ने बड़ी आत्मीयता और बालहठ से प्रमुख स्वामी से कुछ-कुछ भोजन शुरू करने का आग्रह किया तो ही वे माने। श्रद्धांजलि देते हुए सारंगपुर में अविरल अश्रुधारा बहाते हुए नरेन्द्र भाई ने कहा, 'आखिर अपने पुत्र का आग्रह पिता क्यों नहीं मानता! वे मेरे पिता समान थे।'

प्रमुख स्वामी अद्भुत संकल्प शक्ति के धनी थे। उनके पूर्ववर्ती गुरु महाराज योगी ने 1968 में सामान्य बातचीत में सहज रूप से कहा कि कितना अच्छा हो कि दिल्ली के यमुना तट पर भी अक्षरधाम बने। बस, शिष्य शास्त्री नारायण स्वरूपदास ने उसे आज्ञा स्वरूप हृदय में धारण कर लिया और 2005 में उसका भव्य उद्घाटन हुआ। तब पांचजन्य में उसके निर्माण को भारतीय दासता के प्रतीकों से जकड़ी दिल्ली में हिंदू संभ्यता के उषाकाल के समान ऐतिहासिक गौरव दिवस के रूप में मानकर सम्पादकीय लिखा गया था।

प्रमुख स्वामी का विश्व हिन्दू परिषद प्रमुख अशोक सिंहल के प्रति गहरा स्नेह था। जब अयोध्या आंदोलन के लाखों कारसेवकों के रूकने और भोजन की व्यवस्था का प्रश्न उठा तो प्रमुख स्वामी जी ने तुरंत उसकी विनम्रता से व्यवस्था की। सदैव भगवद्भक्ति में लीन रहने वाले प्रमुख स्वामी के हृदय में किसी के लिए विद्वेष का स्थान हीं नहीं था। जब गांधीनगर के अक्षरधाम पर इस्लामी आतंकवादियों ने हमला किया तो उन्होंने शांत भाव से सब कुछ सहा- और हमलावरों के लिए भी एक शब्द बुरा नहीं कहा। उनको भी सद्गति मिले- ऐसी प्रार्थना की।

प्रमुख स्वामी की अमर्त्य मानस काया भारत के उत्कर्ष हेतु समर्पित संन्यासियों व भक्तों के रूप में सदा जीवित रहेगी।

- तरुण विजय

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