सर्जिकल स्ट्राइक को राजनीतिक तौर पर भुनाने की कोशिश

राजेश कश्यप । Oct 4 2016 12:12PM

जिस तरह से राजनीतिक दल सर्जिकल स्ट्राइक को वोटों के नफे-नुकसान के तराजू में तोलने और इसकी सफलता को भुनाने की जुगत भिड़ाने में लग गए हैं, वह आगे चलकर देश के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जहां भारत में जश्न का माहौल है, वहीं पाकिस्तान में मातम पसरा है। पाकिस्तान के लिए यह एक तरह से साँप के मुँह में छछुंदर वाली स्थिति है, खाए तो कोढ़ि और न खाए तो नामर्द। पाकिस्तान में कुछ भी सहज नहीं है। वह लाख चाहकर भी सर्जिकल स्ट्राइक की न तो कोई काट ढूंढ़ पा रहा है और न ही उसे पचा पा रहा है। उसे वैश्विक बिरादरी में कोई जवाब देते हुए भी नहीं बन रहा है। इसी के दृष्टिगत रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने पाकिस्तान की वर्तमान दशा की तुलना ‘सर्जरी’ के बाद ‘बेहोशी की हालत वाले रोगी’ से करते हुए कहा है कि ‘पाकिस्तान की हालत सर्जरी के बाद बेहोश रोगी जैसी है, जिसे नहीं मालूम कि उसकी सर्जरी हो चुकी है। सर्जिकल स्ट्राइक के दो दिन बाद भी उसे नहीं पता कि क्या हुआ?’ रक्षा मंत्री का यह कटाक्षपूर्ण बयान पाकिस्तान के जले पर नमक छिड़कने वाला और उकसावे वाला बन सकता है। यही नहीं, रक्षा मंत्री ने भारतीय सेना की तुलना ‘हनुमान’ से करते हुए कहा कि ‘भारतीय सेना हनुमान की तरह है, जो सर्जिकल स्ट्राइक से पहले अपनी ताकत के बारे में नहीं जानती थी। इस स्ट्राइक से अपने सैनिकों को अपनी क्षमता का अन्दाजा लगा, जबकि पाकिस्तान समझ नहीं पा रहा है कि क्या प्रतिक्रिया दे।’ रक्षा मंत्री के इस तरह के बयान परिपक्वतापूर्ण व जिम्मेदाराना नहीं कहे जा सकते हैं। यह भावनाओं के अतिरेक के अलावा कुछ नहीं है। सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए इससे बेहतर मिसालों का चयन किया जा सकता था। पार्टी मुख्यालयों पर सर्जिकल स्ट्राइक का जश्न पटाखों की लड़ियां फोड़कर और ढोल की थाप पर नाच कर प्रदर्शन करना, हल्कापन दर्शाता है। देश ने कोई जंग नहीं जीती है, आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ जंग का ऐलान किया है। यह आगे क्या रंग लाता है, वह भविष्य बतायेगा। हाल फिलहाल, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद की बदली हुई परिस्थितियों एवं संभावित चुनौतियों पर गम्भीरता से चिन्तन-मन्थन करना राष्ट्रहित में बेहद जरूरी है। 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में हमें अप्रत्याशित कामयाबी मिली है और यह सब मोदी सरकार की कूटनीतिक दक्षता एवं परिचायक की साक्षात साक्षी है। लेकिन, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब भी मौका मिला है सेना के जाबांजों ने अपने पराक्रम व सूझबूझ का लोहा बखूबी मनवाया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पूरी दुनिया भारतीय सेना के अनूठे पराक्रम से भलीभांति परिचित है। उसे अपनी ताकत का सहज अहसास है। हनुमान की तरह उसे ताकत का अहसास करवाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। सेना द्वारा अपनी ताकत का अहसास करवाना, राजनीतिकों की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। इतिहास में लड़े गए युद्धों और वैश्विक स्तर पर शांति स्थापना के अभियानों में भारतीय सैनिकों ने अपने अद्भुत कौशल और शौर्य का चमत्कारिक प्रदर्शन करके दिखाया है। राजनीतिकों की इच्छा शक्ति के अभाव के चलते ही वर्ष 1999 में कारगिल की जंग के बाद भारतीय सेना अपने लाव-लश्कर के साथ बार्डर से लौटने को विवश हुई थी और राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी के चलते ही वीर जाबांज हेमराज का सिर ले जाने वाले पाकिस्तानियों की नापाक हरकतों का जवाब सेना द्वारा नहीं दिया जा सका था। इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय जाबांज हर परिस्थिति में दुश्मन से लोहा लेने में सदैव तत्पर रहते हैं और वे अजेय हैं।

पाकिस्तान को कुछ नहीं सूझ रहा है, हमें इस गलतफहमी का शिकार बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि साँप कोई बड़ा या छोटा नहीं होता। दोनों का विष घातक होता है। जब तक साँप का फन बुरी तरह नहीं कुचला जाता, तब तक साँप का खतरा बरकरार रहता है। बांबी में हाथ डालकर साँप की पूंछ को मरोड़कर छोड़ देना, सबसे घातक होता है। ऐसा साँप कब और किस तरह चोट पहुंचा दे, इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता है। यह सब शब्दशः पाकिस्तान पर भी लागू होता है। पाकिस्तान एक जहरीले नाग के समान है। पाकिस्तान को अकेला समझने की भूल भी कदापि नहीं करनी चाहिए। बड़े-बड़े अजगर, दोमुंहे साँप और इच्छाधारी नाग भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ सीधी जंग में दे सकते हैं। यह सही है कि इस समय पाकिस्तान के समर्थन में कोई भी प्रमुख देश उसके समर्थन में खड़ा होने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। निःसन्देह, यही मोदी सरकार की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है। लेकिन, इसका मतलब यह कतई नहीं लेना चाहिए कि यह हमेशा बरकरार बनी रहने वाली है। यह कहना कदापि गलत नहीं होगा कि असल में भारत के समक्ष सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हो चुका है। मोदी सरकार के समक्ष जहां देश-दुनिया को आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुट रखने के कूटनीतिक प्रयासों को अटूट बनाए रखने की चुनौती होगी, वहीं आतंकवादियों एवं उनके आकाओं के छद्म वारों का शिकार होने से बचने व उनका समुचित जवाब देने की रणनीति अपनाने की भी जरूरत होगी। कहना न होगा कि इसके लिए ‘काकः चेष्टा, बको ध्यानम्’ की नीति पर चलने की आवश्यकता होगी।

हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश-दुनिया में भारी हलचल मची हुई है। इससे कई गुणा हलचल पाकिस्तान में मची हुई है। पाकिस्तानी सरकार पर अवाम का जबरदस्त दबाव है। पाकिस्तान में एक बार फिर तख्ता पलट की घटना घट जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। पाकिस्तानी सेना के हाथ में सत्ता की बागडोर आने के बाद फिर से कारगिल जैसी घटनाएं सामने आ सकती हैं। पाकिस्तानी सरकार जिस तेजी से भारी दबाव में आई हुई है, हो सकता है कि वह बदहवास होकर, कोई अति गैर-जिम्मेदाराना हरकत कर बैठे। इसके साथ ही यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तानी हुक्मरानों के साथ-साथ आतंकवादी संगठनों व नेताओं के दिन का चैन और रातों की नींद भी उड़ी हुई है। यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि सर्जिकल स्ट्राइक को पड़ोसी देश चीन भी नहीं पचा पा रहा है। वह इसे अप्रत्यक्ष तौर पर अपनी हार महसूस कर रहा है। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी का पानी रोकना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 में से 14 देशों द्वारा जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन करने के बावजूद अकेले चीन द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध करना, दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण है। ये सब प्रमाण इस बात के साक्षी हैं कि यदि पाकिस्तान के साथ सीधे युद्ध होने की परिस्थितियां बनती हैं तो चीन चुप बैठने वाला नहीं हैं। चीन पिछले दिनों उत्तराखण्ड व अरुणाचल प्रदेश में सीमाओं का अतिक्रमण कर चुका है और गुलाम कश्मीर में पाक-चीन के आर्थिक गलियारे को प्रभावित होने की सूरत में चुप न बैठने की धमकी भी दे चुका है। ऐसे में हमें एक तरफ जहां पाकिस्तान को सबक सिखाने की जरूरत होगी तो वहीं चीन की चालबाजियों को साधने की रणनीति भी बनानी होगी। आज नहीं तो, कल इस तरह की परिस्थितियों का सामना जरूर होना ही है। ऐसे में हमें हर तरह की परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए हर तरह से सक्षम होने की आवश्यकता होगी। वर्ष 1971 में चीन से हुई करारी हार के कारणों को पुनः खंगालने और उनके निराकरण की सख्त आवश्यकता है। विगत युद्धों के सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं का गम्भीरता से विश्लेषण करके भावी रणनीति बनाना ज्यादा कारगर होगा। इसके साथ ही हमें आधुनिक तकनीकों और संसाधनों की भूमिका व दक्षता के पहलू को भी ध्यान में रखना होगा। देश में आतंकवादी कोई कायराना हरकत करने में कामयाब न हो जाएं, इसके लिए हर स्तर पर आवश्यक कदम उठाने होंगे। स्थानीय सरकारों व प्रशासनिक अधिकारियों को अपने जिम्मेदारियों में कोताही बरतने से परहेज करना होगा। 

कुल मिलाकर, तत्काल प्रभाव से देश को युद्ध के संभावित हालातों से निपटने की तैयारी पर जोर देने की आवश्यकता है। युद्ध भले ही सीमा पर लड़ा जाता है, लेकिन देश के अन्दरूनी हालातों से भी युद्ध जीते और हारे जाते हैं। इसके लिए धर्म, मजहब और सियासत से ऊपर उठकर पूरी निष्ठा एवं समर्पित भावना के साथ एकजुट होकर एक स्वर में राष्ट्रीयता को मजबूती देने की आवश्यकता होगी। सर्जिकल स्ट्राइक मामले में जिस तरह से सभी राजनीतिक दलों व नेताओं ने संकीर्ण सियासत से बचकर एक स्वर में केन्द्र सरकार का समर्थन किया और सेना का मनोबल बढ़ाया, वह काबिले-तारीफ है। युद्ध की स्थिति में इसी तरह के माहौल की आवश्यकता होगी। लेकिन, जिस तरह से राजनीतिक दल सर्जिकल स्ट्राइक को वोटों के नफे-नुकसान के तराजू में तोलने और इसकी सफलता को भुनाने की जुगत भिड़ाने में लग गए हैं, वह आगे चलकर देश के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर यूपी, पंजाब व अन्य चुनावों के दौरान राजनीतिक फायदा लेने या न लेने देने के फेर में राष्ट्रीय हितों को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए पूरी गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यदि राजनीतिक स्तर पर हम राष्ट्रीय हितों से जुड़े अति संवेदनशील मुद्दों पर संयम नहीं रख पाए, तो भविष्य में इसका भारी खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है।

- राजेश कश्यप

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