संसद में हंगामा मतलब समय और संसाधनों की बर्बादी

वास्तव में, देश के विपक्षी दल और विश्व की ताकतें बखूबी जानते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सैन्य बलों ने किस कारनामे को अंजाम दिया है। भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति और मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से दुनिया हतप्रभ है।
संसद के मानसून सत्र की शुरुआत हो चुकी है और जैसा कि उम्मीद थी, सत्र की शुरुआत हंगामेदार रही। विपक्ष पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता के दावों, बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण, मणिपुर, चीन जैसे विषयों पर नारेबाजी कर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष ने दोनों सदनों में पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग करते हुए नारेबाजी की। राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- पहलगाम हमले के आतंकी अब तक पकड़े नहीं गए। मारे भी नहीं गए। ट्रम्प 24 बार कह चुके हैं कि हमने युद्ध रुकवाया। सरकार को इन सभी जवाब देना चाहिए। केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने कहा- हम चर्चा करेंगे और हर तरीके से करेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि, एक ओर ऑपरेशन सिंदूर की ऐतिहासिक और शानदार सफलता की दुंदभि देशवासियों में ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी जोर-शोर से बज रही है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नेता अपने एक एजेंडा और झूठे नैरेटिव के साथ भारत को बदनाम करने के मिशन पर चल रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही राहुल गांधी बार-बार सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि हमारे कितने फाइटर जेट को नुकसान हुआ। दरअसल, वे पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। उन्हें पूछना तो यह चाहिए कि हमारी वायुसेना ने पाकिस्तान को किस तरह तहस-नहस कर दिया? लेकिन राहुल गांधी द्वारा अनाप-शनाप तरीके से ऑपरेशन सिंदूर की आलोचना किसी के भी गले नहीं उतर रही है।
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वास्तव में, देश के विपक्षी दल और विश्व की ताकतें बखूबी जानते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सैन्य बलों ने किस कारनामे को अंजाम दिया है। भारत की बढ़ती सैन्य शक्ति और मोदी सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से दुनिया हतप्रभ है। ऐसे में ऑपरेशन सिंदूर का श्रेय कहीं राजनीतिक तौर मोदी सरकार को न मिल जाए, इसलिए विपक्ष लगातार रणनीति के तहत अनावश्यक सवाल पूछ कर ऑपरेशन सिंदूर पर सेना और सरकार को संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है। विपक्ष के इस रवैये से सेना का मनोबल तो गिरता ही है, वहीं देश की उपलब्धियों और गर्व के क्षणों पर भी ग्रहण लगता है।
ये कोई पहली बार नहीं है जब विपक्ष खासकर कांग्रेस किसी विदेशी नेता के बयान या रिपोर्ट के आड़ में संसद को समय बर्बाद कर रहा है। विपक्ष अपने आलोचना धर्म की आड़ में विपक्ष देश की उपलब्धियों और मान—सम्मान पर बेजा टीका—टिप्प्णियां करने से बाज नहीं आता। राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई अपनी जगह है। पक्ष—विपक्ष में बहस, तर्क वितर्क और टीका टिप्पणी तो लोकतंत्र की प्राणवायु है। लेकिन सरकार या किसी राजनीतिक दल पर हमला करते करते देश के मान सम्मान को नीचा गिरा देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। और देश के संविधान, सुरक्षा, संप्रभुता और सम्मान से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को हासिल नहीं है। भले ही व्यक्ति किसी भी पद या पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ हो। हर नागरिक के लिए राष्ट्र प्रथम का भाव सर्वोपरि, सर्वोत्तम और सिर माथे पर होना ही चाहिए।
मामला चाहे देश की सुरक्षा से जुड़ा हो या फिर आर्थिक क्षेत्र की बात हो। विपक्ष सरकार, सेना और संवैधानिक संस्थाओं के बयान पर विश्वास करने की बजाय दूसरे देशों और विदेशी एजेंसियों एवं संस्थाओं के बयान, रिपोर्ट और बयानबाजी पर संसद में हंगामा करता है। असल में संसद सत्र के दौरान देश और दुनिया का ध्यान उस तरफ होता है। इस समय और अवसर का देशहित और जनहित में करने की बजाय विपक्ष सरकार की छवि धूमिल करने, उसकी साख गिराने और अपनी राजनीति चमकाने के लिये करता है।
2023 के बजट सत्र में अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ था। अगस्त 2024 में हिंडनबर्ग की एक और रिपोर्ट सामने आई थी। तब भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के समय को लेकर गंभीर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि, पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि हर बार संसद सत्र से ठीक पहले विदेश से एक रिपोर्ट जारी कर दी जाती है। इसको आधार बनाकर विपक्ष संसद में हंगामा खड़ा करता है। उन्होंने इसे एक सोची-समझी साजिश करार दिया था। अब हिंडनबर्ग के बारे में एक भी शब्द राहुल गांधी या विपक्ष का कोई नेता बोलता सुनाई नहीं देता।
विपक्ष की राजनीतिक सोच और विचार का समर्थन करने वाला एक तथाकथित तबका देश में मौजूद है। ये लोग भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के विरोध के लिए ‘से नो टू वॉर’ कह रहे थे वही लोग आज सीजफायर की खिल्ली उड़ा रहे हैं। अब यही लोग कह रहे हैं कि सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आगे झुक गई। यह लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इरादे और जज्बे से कर रहे हैं। इनका मूल उद्देश्य यही है कि किसी भी तरह यह साबित कर सकें कि सीजफायर को स्वीकार करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक कमजोर पीएम साबित किया जा सके। इस तरह की दोहरा रवैया देखकर वास्तव में हंसी आती है कि खुद को बुद्धिजीवी समझने वाले ये लोग आखिर चाहते क्या हैं?
इस साल बजट सत्र में राज्यसभा की प्रॉडक्टिविटी 119 प्रतिशत, जबकि लोकसभा की 118 प्रतिशत रही। विपक्ष ने नई शिक्षा नीति, मणिपुर के हालात और बढ़ती रेल दुर्घटनाओं को लेकर सवाल पूछे थे। इस दौरान कुल 16 बिल पास हुए। जट सत्र के आंकड़े भले थोड़े अच्छे दिख रहे हों, पर आमतौर पर संसद से हंगामे की तस्वीरें ही ज्यादा आती हैं। लेकिन बजट सत्र के विपरीत शीतकालीन सत्र में संसद के बहुमूल्य समय और संसाधन नष्ट हुए।
18वीं लोकसभा का शीतकालीन सत्र में कुल 20 बैठकें हुईं। दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा में लगभग 105 घंटे कार्यवाही चली। सत्र के दौरान लोकसभा की प्रोडक्टिविटी 57.87 प्रतिशत, राज्यसभा में 41 प्रतिशत रही। संविधान पर चर्चा के दौरान लोकसभा में 16 घंटे जबकि राज्यसभा में 17 घंटे बहस हुई। वहीं, लेजिस्लेटिव थिंक टैंक पीआरएस इंडिया के अनुसार 20 दिनों की कार्यवाही में से लोकसभा में 12 दिन प्रश्न काल 10 मिनट से ज्यादा नहीं चल सका। शीत सत्र उदाहरण है, जब लोकसभा के 65 से ज्यादा घंटे बर्बाद हो गए।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार दोहरा रहे हैं कि उन्होंने दोनों पड़ोसियों में शांति कराई। अब तो उन्होंने यह भी दावा कर दिया है कि संघर्ष में कुछ जेट गिरे थे। सरकार पर स्थिति स्पष्ट करने का दबाव होगा। इसी तरह, चुनाव आयोग का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी सर केवल वोटिंग लिस्ट की समीक्षा तक सीमित नहीं रह गया है। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने भी सर की टाइमिंग को सही नहीं माना है, तो सरकार को कुछ कठिन प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है। संसद की कार्यवाही अच्छे से चले, इसके लिए पक्ष और विपक्ष को मिलकर काम करना होगा। राजनीतिक दल अलग-अलग विचारधाराओं के हो सकते हैं, मगर सदन का अच्छी तरह चलना सभी की जिम्मेदारी है। सत्र को चलाने में हर मिनट ढाई लाख रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं। ऐसे में सदन का काम नहीं करना समय के साथ देश के संसाधनों की भी बर्बादी है। उम्मीद करनी चाहिए कि हमारे प्रतिनिधि संसद के चालू सत्र में हंगामा करके राजनीति चमकाने और सस्ती लोकप्रियता बटोरने की बजाय संसद के बहुमूल्य समय और संसाधनों का सकारात्मक और सार्थक उपयोग करेंगे।
- डॉ. आशीष वशिष्ठ
(स्वतंत्र पत्रकार)
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