बंद के नाम पर देश में गुंडागर्दी आखिर कब तक सही जाएगी?

violence during bharat bandh from dalits
मनोज झा । Apr 5 2018 10:42AM

तमाम संगठनों के नेताओं से लिखित हलफनामा लिया जाना चाहिए जिसमें साफ-साफ लिखा हो वो हिंसा से दूर रहेंगे..आरक्षण को लेकर आंदोलन का हो या फिर कोई और मामला हम बंद के नाम पर किसी तरह की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं कर सकते।

एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलित संगठनों के बुलाए भारत बंद के दौरान देश में किस कदर कोहराम मचा उसकी तस्वीरें टेलीविजन पर देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गए। बंद के नाम पर प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर निकल कर जो उत्पात मचाया उसे शायद ही हम कभी भूल पाएंगे। भारत बंद बुलाने के दौरान कहीं गाड़ियां फूंक दी गई तो कहीं ट्रेनों को निशाना बनाया गया।

सबसे भयानक तस्वीर बिहार के हाजीपुर में देखने को मिली जहां उपद्रवियों ने एंबुलेंस को रास्ता नहीं दिया जिसके कारण एक मासूम की जान चली गई। एंबुलेंस में बैठी मां भीड़ से अपने बच्चे की जिंदगी की भीख मांगती रही लेकिन बंद समर्थकों पर उसका कोई असर नहीं हुआ। बिहार में जहां बंद ने मां से उसके कलेजे के टुकड़े को छीन लिया...वहीं यूपी के बिजनौर में एंबुलेंस का रास्ता रोके जाने पर एक बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया। जाम में एंबुलेंस के फंसने पर बीमार बुजुर्ग पिता को कंधे पर लादकर बेटा अस्पताल तो पहुंचा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मेरठ में किडनी की बीमारी से पीड़ित महिला मरीज भी इलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुंच सकी। भारत बंद के नाम पर हर जगह भीड़ की गुंडागर्दी दिखी...बिहार के मुजफ्फरपुर में उपद्रवियों ने एक ऑटो पर लाठी-डंडों से हमला किया जिसमें एक मासूम बुरी तरह घायल हो गया...उत्तराखंड के रूड़की में बंद के दौरान हुई फायरिंग में गोली लगने से एक बच्चा घायल हो गया...भारत बंद के दौरान अलग-अलग शहरों में हुई हिंसा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। 

बंद के दौरान राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा हिंसा देखने को मिली... हाथे में डंडे और सरिया लेकर सड़कों पर निकले लोगों ने जहां गाड़ियों में तोड़फोड़ की...वहीं राहगीरों और पुलिस टीम पर भी हमला किया। भारत बंद के दौरान हुई हिंसा में 12 लोगों की मौत हुई जिसमें एक राजस्थान का दारोगा भी शामिल है। सबसे ज्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुई जहां 8 लोगों की जानें चली गईं। बंद के नाम पर सड़क पर इस तरह की गुंडागर्दी पहले कभी नहीं देखी गई...मध्य प्रदेश में तो बंद समर्थक हथियार लेकर सड़कों पर उतर आए...जब कारोबारियों ने जबरन दुकानें बंद कराने का विरोध किया तो उन पर हमला किया गया जिसमें कई दुकानदार घायल हो गए।

भारत बंद के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान रेलवे को उठाना पड़ा...कई शहरों में ट्रेनों पर पत्थरबाजी की गई तो कहीं पटरियां उखाड़ दी गई...जगह-जगह चक्काजाम होने से देश को करोड़ों का नुकसान हुआ सो अलग। सवाल उठता है कि देश को जो नुकसान हुआ..जिन लोगों की जिंदगियां खत्म हो गई उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? दलितों के नाम पर सियासत करने वाले नेताओं के पास इसका कोई जवाब नहीं है। इस देश में हर किसी को अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने की आजादी है...लेकिन हक की लड़ाई के नाम पर बेकसूरों की जान लेने का अधिकार किसी को नहीं है। भारत बंद के दौरान हिंसा फैलानेवालों के खिलाफ जगह-जगह केस तो दर्ज हुए हैं...लेकिन जब तक हिंसा में शामिल लोगों की पहचान कर उन्हें कड़ी सजा नहीं दी जाती तब तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा। 

बंद के नाम पर अपने देश में पहले भी हिंसा होती रही है...पद्मावत फिल्म को लेकर एक समुदाय के लोगों ने देश में किस कदर कोहराम मचाया था उसे सभी ने देखा था...विरोध के नाम पर लोग सड़कों पर बवाल मचाते रहे और पुलिस तमाशा देखती रही। लेकिन पुलिस करती भी क्या...जब सरकारी तंत्र ही उपद्रवियों के सामने घुटने टेक दो तो फिर हमें पुलिस से ज्यादा उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।  

सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर अपने देश में विरोध-प्रदर्शन के नाम पर कब तक हिंसा होती रहेगी? कब तक सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता रहेगा...कब तक जाम में फंसकर मरीजों की जान जाती रहेगी? आज देश का हर नागरिक यही सवाल पूछ रहा है कि आखिर हम किस समाज में जी रहे हैं....एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगर लोग हिंसा पर उतारु हो जाते हैं तो फिर ये हम सभी के लिए चिंता का विषय है। हर राजनीतिक दल को अपने वोट बैंक की चिंता है और हम उनसे किसी तरह की उम्मीद नहीं रख सकते। लेकिन आज नहीं तो कल सभी राजनीतिक दलों को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सोचना होगा...बंद बुलाने या फिर बंद का समर्थन करने से पहले तमाम संगठनों के नेताओं से लिखित हलफनामा लिया जाना चाहिए जिसमें साफ-साफ लिखा हो वो हिंसा से दूर रहेंगे..आरक्षण को लेकर आंदोलन का हो या फिर कोई और मामला हम बंद के नाम पर किसी तरह की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं कर सकते। 

मनोज झा

(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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