वाराणसी हादसे से कुछ सीख लेंगे या अन्य घटना का इंतजार करेंगे?

Will Varanasi officers learn anything from the accident
संजय तिवारी । May 18 2018 12:37PM

वाराणसी के अलावा लखनऊ में भी ऐसे निर्माणाधीन अनेक पुलों से ये लोग आज भी गुजर रहे हैं। हर कहीं खुले में निर्माण चल रहा है। धूल, गर्द सब उड़ रही है। नीचे से लोग चल रहे हैं। ऊपर काम चल रहा है।

वाराणसी में जो दुर्घटना हुई उसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? वह पुल सालों से बन रहा है। उसी रास्ते अनगिनत बार अनगिनत नेता, मंत्री, अफसर, इंजीनियर अवश्य गुजरे होंगे। वाराणसी के अलावा लखनऊ में भी ऐसे निर्माणाधीन अनेक पुलों से ये लोग आज भी गुजर रहे हैं। हर कहीं खुले में निर्माण चल रहा है। धूल, गर्द सब उड़ रही है। नीचे से लोग चल रहे हैं। ऊपर काम चल रहा है। शायद ही कोई निर्माणस्थल है जहां किसी प्रकार की सुरक्षा की गयी हो। आखिर इन जिम्मेदार लोगो को दुर्घटना से पहले क्यों नहीं दिखता कुछ ? किसी निर्माण स्थलों पर न तो सुरक्षा के मानकों का पालन हो रहा है, न ही आम आदमी की जान की परवाह की जा रही है। रिश्वत और भ्रष्टाचार ने सभी को किनारे लगा दिया है। यदि ऐसा नहीं होता तो जिस एमडी को अखिलेश यादव की सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में हटाया था, उसी को भाजपा की सरकार में फिर एमडी कैसी बनाया जाता ? लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं होती। जब दुर्घटनाये होती हैं तो नीचे वालों के खिलाफ कार्रवाई हो जाती है। ऊपर वाले मलाई खाते रहते हैं। शायद ही कोई हादसा ऐसा रहा हो जिसमे कोई बड़ी कार्रवाई हुई हो और हत्या के आरोप में कभी किसी को कोई सजा हुई हो। घटना होने के दो चार दिन बाद तक हल्ला गुल्ला होता है और फिर सब यथावत चलने लगता है।

अपने देश में गर्डर गिरने की घटनाएं आम हैं। हर कुछ समय के अंतराल पर एक नए हादसे के हम गवाह बनते हैं। हर बार सबक सीखने की बात भी कही जाती है, पर अनुभव यही बताता है कि हमने कोई सबक नहीं सीखा है। अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले 10 वर्षों के भीतर करीब पांच ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जबकि इनसे आसानी से बचा जा सकता था। दुर्घटनाओं से बचने का कोई बड़ा अंकगणित नहीं है। इसके लिए जरूरत है, तो बस गर्डर रखने या ऐसा कोई भी काम करने के दौरान कुछ मामूली सावधानियां बरतने की। इसकी तकनीक भी उपलब्ध है और खर्च भी काफी कम है पर इस पर ध्यान कौन देता है ? यहाँ तो एमडी और चीफ बनने के लिए जुगाड़ फिट करने से फुर्सत कहां किसी को। यह भी सोचने की बात है कि हर थोड़े दिन पर मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री से लेकर मुख्य सचिव, सचिव और स्थानीय प्रशासन के बड़े अधिकारी भी समीक्षाएं करते हैं। आखिर ये लोग किस बात की समीक्षा करते हैं ? इनकी समीक्षा में होता क्या है ? इनकी जिम्मेदारियां क्या हैं ? क्या वाराणसी के जिलाधिकारी और कमिश्नर को नहीं पता था कि उनके शहर में इस तरह के निर्माण हो रहा हैं ? सलीके से जांच हो तो सब नपेंगे, लेकिन यह घाघ नौकरशाही जांच भी तो सलीके से नहीं होने देती। कुछ दिन बीतते ही मामलों में फ़ाइनल रिपोर्ट लगा कर यह सब पचा जाती है। इसकी पाचन शक्ति जो बहुत मजबूत है।

यह भी सच है कि सरकार चला रहे लोगों की संकल्प शक्ति पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। इतने बड़े हादसे होते हैं तब सम्बंधित जिम्मेदार अफसरों की गिरफ्तारी क्यों नहीं की जाती। मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में घटना हुई तो डॉक्टरों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। बनारस के दोषियों के साथ ऐसा क्यों नहीं होता ? कुशीनगर में अवैध स्कूल और अवैध गाड़ियां चलवाने वाले अफसरों को जेल क्यों नहीं भेजा गया ? हद तो तब हो गयी जब कुशीनगर में मरे बच्चो के परिजनों को जो चेक दिए गए वह भी बाउंस हो गए। यह तो बेहद शर्मनाक है।

अगर समय रहते तमाम शिकायतों पर गौर किया जाता तो बनारस का यह हादसा नहीं होता। प्रोजेक्ट मैनेजर ने तीन महीने पहले खुद पर मामला दर्ज होने के बाद चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर को जो चिट्ठी लिखी थी, उस पर ध्यान दिया जाता, तो हाल यह नहीं होता। 19 फरवरी 2018 को वाराणसी यातायात पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर फ्लाईओवर के प्रोजेक्ट मैनेजर केआर सूदन पर धारा 268, 283, 290, 341 के तहत वाराणसी पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था। वाराणसी पुलिस की FIR में लिखा गया है, 'लहरतारा चौकाघाट फ्लाईओवर का निर्माण कार्य प्रगति पर है और इस पुल के आयरन प्रोटेक्शन वॉल को काफी बढ़ाकर रखा गया है। मिट्टी का अत्यधिक कार्य होने के नाते लगातार धूल उड़ती रहती है, जिसके कारण ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मी और आवागमन करने वाले व्यक्तियों को भारी असुविधा हो रही है।' वाराणसी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने प्रोजेक्ट मैनेजर के.आर. सूदन को कई पत्र लिखे और सुगम यातायात संचालन के लिए बार-बार निर्देश दिए लेकिन, ट्रैफिक मैनेजमेंट और सेतु निगम के अधिकारियों के बीच आपसी तालमेल की कमी दिख रही थी। बाद में पुलिस ने ट्रैफिक में कठिनाइयों को आधार बनाते हुए प्रोजेक्ट मैनेजर केआर सूदन के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। इसके बाद ही 20 फरवरी 2018 को प्रोजेक्ट मैनेजर के.आर. सूदन ने सेतु निगम के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर एचसी तिवारी को चिट्ठी लिखी।

प्रोजेक्ट मैनेजर ने बताया कि फ्लाईओवर निर्माण के चलते ट्रैफिक को आसान बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि ट्रैफिक पुलिस डिपार्टमेंट से उन्हें सहयोग नहीं मिल रहा है और ट्रैफिक पुलिस ने सेतु निगम के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया है। विपरीत परिस्थितियों में मेरे लिए काम करना मुश्किल हो रहा है। इतने मानसिक दबाव में मैं काम करने में सक्षम नहीं हूं, क्योंकि इससे कार्यस्थल पर कोई अप्रिय घटना घट सकती है। बेहतर होगा कि इस प्रोजेक्ट से मुझे ट्रांसफर कर दिया जाए। 21 फरवरी 2018 को फ्लाईओवर प्रोजेक्ट मैनेजर के.आर. सूदन ने वाराणसी पुलिस अधीक्षक, यातायात को पत्र लिखा और डीएम वाराणसी को भेजी प्रतिलिपि में कहा कि फ्लाईओवर के पिलर संख्या 42 से 65 के बीच फल फ्रूट, चाट पकौड़ी और अन्य खाने-पीने के सामान के ठेले लगे रहते हैं और पब्लिक इन ठेलों पर आती जाती रहती है, जिसके कारण भीड़ बनी रहती है। इन स्थानों पर जेनरेटर की केबल, पानी के पंप और अन्य इलेक्ट्रिक मशीनें कार्यरत रहते हैं। इनकी वजह से किसी भी वक्त कोई अप्रिय घटना घट सकती है, इसलिए इन जगहों पर लोगों की आवाजाही को रुकवाएं।

21 फरवरी 2018 को ही प्रोजेक्ट मैनेजर के.आर. सूदन ने चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर को पत्र लिखा, 'मैं एसएसपी वाराणसी से मिला और स्पष्ट किया कि जिस मामले में मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है उसमें मेरी कोई कमी नहीं है। इसके बावजूद एसएसपी ने बात सुनने के बाद एफआईआर को खत्म करने का कोई विचार नहीं किया। उक्त घटनाचक्र से मैं काफी आहत और मानसिक दबाव महसूस कर रहा हूं। वर्तमान में निर्माण कार्य में रूचि ना लेकर मैं प्रकरण के समाधान हेतु कार्यवाही में व्यस्त हूं। कृपया मेरे मामले को बंद कराने की कृपा करें, अन्यथा इस प्रकार की विषम परिस्थितियों में बाकी काम को उसी लगन से कराया जाना संभव नहीं होगा। बनारस में यह सब हो रहा था। सभी अधिकारी इससे वाकिफ थे। ऐसे में अब भी किसी को बख्शने की जरूरत है क्या ? 

-संजय तिवारी

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