कोरोना संकट ने बदल दिये हैं जीवन के मायने, इसे स्वीकार कर आगे बढ़ें

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ललित गर्ग । Jul 22 2020 10:01AM

सुविधावादी जीवनशैली हमें सिखाती है कि चीजों का संग्रह ही सफलता की निशानी है। इससे हम अकसर अत्यंत तनाव एवं बेचैनी में और अपने जीवन के असंतुलन में इस तरह फंस जाते हैं कि किसी उद्देश्य, सार्थकता और खुशी के साथ जीना दूभर हो जाता है।

कोरोना वायरस से उपजे संकट ने मानव जीवन को गहरे घाव दिये हैं। स्वास्थ्य संकट, भय, निराशा, अनिष्ट की आशंका जैसी अनेक मानसिक समस्याएं-परिस्थितियां उभरी हुई हैं। ऐसे नाजुक क्षणों में हमें चुनौतियों का सामना करना होगा। संयम, विवेक और संतुलन से आगे बढ़ना होगा। संतुलित एवं स्वस्थ जीवन के लिये उतावलापन नहीं, नापसन्दगी के क्षणों में बौखलाहट नहीं, सिर्फ धैर्य, स्वविवेक एवं साहस को सुरक्षित रखना होगा। कोरोना का प्रकोप इसलिये भी भयावह बना हुआ है कि हमने स्वयं को भुला दिया है। प्रकृति एवं पर्यावरण से हमारा जीवन कट गया है। कोरोना के संकट एवं महामारी के प्रभाव को निस्तेज करने के लिये हमें अपने मनोबल को मजबूत करना होगा, आत्मविश्वास जगाना होगा, स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करना होगा। ‘डूइंग वर्क यू लव’ किताब के लेखक और प्रसिद्ध मोटिवेशल गुरु शेरेल गिलमेन लिखते हैं, ‘मैंने अपनी जिंदगी में खुशियां बहुत मुश्किलों से पाईं। यह समझना थोड़ा दुरूह है कि आप अपनी जिंदगी से क्या चाहते हैं।’ कई बार आप जो चाहते हैं, जो आपको अच्छा लगता है, आपके आसपास वाले वह करने नहीं देते। लेकिन कोरोना महासंकट ने आपको यह अवसर दिया है कि आप अपने मन की करें, लिखना पसन्द है तो लिखें। कविता करना पसन्द है तो कविता करें। चित्र बनाना चाहते हैं तो चित्र बनायें। जब यह बात समझ में आ जायेगी, तो जिंदगी पहेली या समस्या न रहकर खुशी का स्रोत बन जायेगी। आप अगर अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करते हैं तो निश्चित ही आप खुश नहीं हो पाएंगे।

अपनी अंतरात्मा में झांकना और अपने आपको एक शून्य के रूप में देख पाना आसान काम नहीं है। कई बार तो आप यह जान ही नहीं पाते कि हम दरअसल जिंदगी से क्या चाहते हैं? हमें अपने मन को खुशी देने वाले काम करने होंगे। अपने दिल का काम करते समय न आप पैसे की बात सोचते हैं न तरक्की की। वह काम आपको मानसिक तौर पर आगे ले जाता है, आपमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है एवं आप अपने आपको परिपूर्ण बनाते हैं। गिलमेन की मानें तो, ‘आप अपने आपको पूर्ण महसूस करते हैं। ऊर्जावान व आशावादी। खुद को एक बेहतर इंसान बनते हुए देखते हैं।’ ऐसा करके ही हम कोरोना संकट से उबर सकते हैं।

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अपने आपको देखने और अपनी पसंद की जिंदगी जीने के लिए महानगरों में रहने वाले अनेक कामयाब लोगों ने अपना बना-बनाया कैरियर छोड़ कर अपने गांव का रुख किया है, ऐसे लोग अपने आप को भाग्यशाली मान रहे हैं, उन्होंने पाया कि महानगरों के जीवन में भय एवं संकट ज्यादा मुखर होते हैं, जबकि गांवों में, अपने लोगों के बीच भय एवं आशंकाएं कम हो जाती हैं, एसी से अच्छी नींद पंखे के नीचे आती है। अगर आपको लगता है कि जिंदगी में कुछ कमी है, काम में मजा नहीं आ रहा, आप कुछ और करना चाहते हैं, तो अपने लिए कुछ वक्त निकालना शुरू कीजिए। अकेले टहलें, ध्यान करें, प्रकृति से रू-ब-रू हों। अच्छा सोचें। अगर लगता है बचपन की कोई इच्छा, शौक अधूरे रह गए हैं, तो पूरा करने की कोशिश करें। जिसे पूरा करने पर आपको कोरोना का संकट याद नहीं आयेगा, आपको लगेगा कि आपने अपनी इच्छा का काम पूरा करके एवरेस्ट फतह कर लिया। अपने लिए जीने का जब भी वक्त मिले, उसे पूरी तरह जी लें। इन्हीं सुखद एवं मन को खुशी देने वाली स्थितियों से निकलेगा आपके सवालों का जवाब, कोरोना को परास्त करने का रास्ता।

संयममय जीवन का अर्थ है अपनी आवश्यकताओं का अल्पीकरण। कम खरीदना, कम उपयोग करना और खुद को उन चीजों के प्रति समर्पित करना, जो महत्वपूर्ण हैं। आप जितना संयम एवं सादगी से रहेंगे, जीवन उतना ही सार्थक होता जाएगा। बांटना सीखें, बटोरना नहीं। लाओत्सू ने कहा है कि तुम्हारे पास जो है, उसी से संतुष्ट रहो। चीजें जैसी हैं, उसी रूप में उनका आनंद लो। जब तुम्हें महसूस होने लगेगा कि किसी चीज का अभाव नहीं है, तो तुम्हें सारा संसार अपना लगने लगेगा।’ इसी सोच के साथ जीवन जीते हुए हम इतनी बड़ी एवं विकराल समस्या से जूझते हुए भी अपने-आप को टूटने नहीं देंगे। स्वयं को शक्तिशाली बना पाएंगे, मनोबल को भी मजबूती प्रदान कर सकेंगे।

आवश्यकता है कोरोना महासंकट के कारण हो रहे नुकसान के दुःख को भूलकर एवं संकट की आशंकाओं को नकार कर नये सुख की सृजना में जुट जाने की। ढलान से बहते पानी के तेज प्रवाह को रोकना बहुत कठिन है, इसी तरह तीव्र गति से विपरीत दिशा में मुड़ती अच्छाइयों एवं तथाकथित सुविधावादी जीवनशैली की तेज रफ्तार को रोकने में स्वयं की सोच एवं परिष्कृत जीवनशैली ही कारगर होगी। लॉकडाउन के दौरान जनजीवन ठहर गया, लेकिन अब जन-जीवन अपनी पटरी पर लौट रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ माह में कामकाज एवं जीवनशैली सामान्य हो जाएगी। निराशा एवं धुंध के बादल छंटने लगेंगे।

तथाकथित सुविधावादी जीवनशैली हमें सिखाती है कि चीजों का संग्रह ही सफलता की निशानी है। इससे हम अकसर अत्यंत तनाव एवं बेचैनी में और अपने जीवन के असंतुलन में इस तरह फंस जाते हैं कि किसी उद्देश्य, सार्थकता और खुशी के साथ जीना दूभर हो जाता है। संयम एवं सादगी भरा जीवन आपको वैसा जीवन गढ़ने में मदद कर सकता है, जो आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है, जो संतोषप्रद और सार्थक होता है। बात चाहे भौतिक पदार्थों की उपलब्धि की हो या आध्यात्मिक उपलब्धि की, जीवन में लक्ष्य तथा संकल्प सबसे जरूरी हैं। सादगीपूर्ण जीवन आपको अपने लक्ष्य, अपनी प्राथमिकताओं को पहचानने में मदद करता है।

संयममय जीवन की सबसे चुनौती है अपनी आवश्यकताओं को कम से कम कर लेना। कुछ लोग अपना पूरा जीवन चीजों का संचय करने में बिता देते हैं। अपनी जरूरतों को न्यूनतम करना न सिर्फ एक चुनौती है, बल्कि यह अपने साथ बेइमानी जैसा भी महसूस कराती है। चीजों को जमा करने की बजाय खुशनुमा पलों को जमा करना अधिक उपयोगी है। सादगी भरे जीवन का सिद्धांत आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी लागू हो सकता है। अपने विचार और समय महत्वपूर्ण चीजों को समर्पित कीजिए, ताकि व्यर्थ की चीजों में फंसने से बच सकें। इसी से सार्थक जीवन का दायरा बढ़ जाता है, जब हम अर्जन के साथ विसर्जन करते हैं, हमारे साथ दूसरों की खुशी भी जुड़ी होती है एवं हम अपने हिस्से में से दूसरों को भी देना सीख जाते हैं तब सही अर्थ में संयम का सूत्र उद्घाटित होता है। अपनी खुशियों से दूसरों के जीवन में उजाला करने वालों के लिये चिंतक खलील जिब्रान कहते हैं, ‘मैं जब सोया हुआ था, तब सपना देखता था कि खुशी ही जिंदगी है। जब जागा तो देखा कि सेवा ही जिंदगी है। और जब सेवा करने लगा तो पाया कि सेवा ही खुशी है।’

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आज कोरोना महामारी के कारण इंसान की जीवन प्रणाली में परिवर्तन आ रहे हैं। अब तक जिस विचारधारा पर जीवन चल रहा था, उसे किनारे रखकर नया रास्ता खोजना होगा। जीवन चिन्तन के उस मोड़ पर खड़ा है जहां एक समस्या खत्म नहीं होती, उससे पहले अनेक समस्याएं एक साथ फन उठा लेती हैं। ऐसे समय में इंसानी जीवन की सुरक्षा, रक्षा एवं अंधेरों को चीर कर रोशनी प्रकट करने वाली अध्यात्म एवं संयमप्रधान जीवनशैली को जीने की। हमारे जीवन की विडम्बना है कि हम ज्यादातर लोग स्वास्थ्य पर नहीं, समृद्धि पर ध्यान देते हैं। शरीर की जरूरत को अनदेखा कर अपनी मनमर्जी चलाते रहते हैं। जब शरीर पर रोगों का कहर टूटने लगता है तो किसी भी कीमत पर ठीक होने को बेचैन हो उठते हैं। जो भी हो, अच्छी सेहत का कोई एक तरीका नहीं है। हमेशा दवा से आराम मिले, यह जरूरी भी नहीं है। कई बार तो सेहत हमारे पास दिल, दिमाग और आत्मा के सुकून के रास्ते आती है। जिन्दगी प्यार और हंसी से ही खिलती है, धन, साधन-सुविधाएं एवं वैभवता व्यर्थ हो जाती है।

-ललित गर्ग

(लेखक, पत्रकार, स्तंभकार)

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