मौत की बुखार और सो रही बेपरवाह सरकार

current-situation-of-chamki-fever-in-muzaffarpur
अंकित सिंह । Jun 17 2019 1:21PM

नीतीश कुमार ने भी मुजफ्फरपुर जाने की बजाए पटना से ही बच्चों की मौत पर दुख जताना बेहतर समझा और सरकार की तरफ से हर संभव कदम उठाने की बात कहीं। पर मौत के आंकड़े और अस्पताल की लापरवाही में कोई कमी नहीं आ रही है। अस्पताल में भर्ती बच्चों के परिजन लगातार न पर्याप्त डॉक्टर, न पर्याप्त दवाई होने की शिकायत करते रहे पर सरकार बेपरवाह रहीं।

बिहार में मस्तिष्क ज्वर जिसे चमकी बुखार भी कहा जा रहा है उसका कहर जारी है। चमकी बुखार की वजह से लगभग 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है और 414 से ज्यादा बच्चे अभी भी अपना इलाज करा रहे हैं। मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण सिंह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मंत्रियों का आना-जाना भी लगा हुआ है और हर तरह की मदद का आश्वासन भी दिया जा रहा है पर बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। चमकी बुखार के बढ़ते कहर को देखकर 15 दिन बाद बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय पहुंचे। उन्होंने अस्पताल का मुआयना करने के बाद कई निर्देश देते है पर बदलता कुछ नहीं है। हां, एक जगह बदवाल देखने को मिला और जिन बच्चों का फर्श पर लेटा कर इलाज हो रहा था उन्हें बेड तो दे दिया गया पर एक बेड पर दो या फिर तीन बच्चों का इलाज हो रहा है। 

इसे भी पढ़ें: बिहार में नहीं थम रहा मौत का सिलसिला, स्वास्थ्य मंत्री के सामने बच्ची ने दम तोड़ा

नीतीश कुमार ने भी मुजफ्फरपुर जाने की बजाए पटना से ही बच्चों की मौत पर दुख जताना बेहतर समझा और सरकार की तरफ से हर संभव कदम उठाने की बात कहीं। पर मौत के आंकड़े और अस्पताल की लापरवाही में कोई कमी नहीं आ रही है। अस्पताल में भर्ती बच्चों के परिजन लगातार न पर्याप्त डॉक्टर, न पर्याप्त दवाई होने की शिकायत करते रहे पर सरकार बेपरवाह रहीं। हद तो तब हो गई जब केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे मुजफ्फरपुर जाने और लोगों की दिक्कतों को सुनने की बजाए अपने गृह शहर भागलपुर जाकर चुनाव में हुए जीत का जश्न मनाना बेहतर समझा। बात दिल्ली तक पहुंची और बढ़ता हो-हल्ला देख केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन रविवार को मुजफ्फरपुर पहुंचे और सबकुछ जानने और तथा समझने के बाद कहा कि मैं इस क्षेत्र के लोगों, विशेष रूप से प्रभावित परिवारों को विश्वास दिलाता हूं कि समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकार को सभी संभव आर्थिक और तकनीकी सहयोग देगी। एक बात जो हर्षवर्धन ने कबूल की वह थी अस्पताल में बीमार बच्चों के लिए अपर्याप्त व्यवस्था। शायद वह ऐसा एक डॉक्टर होने के नाते कर पाए।

इसे भी पढ़ें: बिहार में चमकी बुखार से अबतक 93 बच्चों की मौत, हर्षवर्धन ने मदद का दिया आश्वासन

पर अब सवाल यह उठता है कि पहले से इसको लेकर इंतजाम क्यों नहीं हुए क्योंकि मामला पहली बार नहीं हुआ है। 2014 में भी यह मामला गंभीर रूप से देखने को मिला था और तब भी स्वास्थ्य मंत्री के रूप में डॉ. हर्षवर्धन मुजफ्फरपुर पहुंचे थे। फिर इतने सालों में क्यों कुछ नहीं बदला? क्यों आज भी व्यवस्था को अपर्याप्त बताया जा रहा है। शायद यह सवालों से बचने की कोशिश का एक हिस्सा है। खैर हर्षवर्धन ने आगे कहा कि बिहार में चार-पांच जगहों पर स्टेट ऑफ दी आर्ट वाईरोलोजी प्रयोगशाला का काम कुछ ही महीनों में पूरा कर लिया जाएगा। इस रोग के इलाज के लिए शिशु रोग विशेषज्ञों के अलावा न्यूरोलोजिस्ट का होना आवश्यक है। इस अस्पताल में निर्माणाधीन सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक का काम अगले छह महीने के भीतर पूरा करने के लिए कहा गया है। मुजफ्फरपुर स्थित भारतीय मौसम विभाग के वेधशाला को उन्नत किया जाएगा ताकि इस रोग का आर्द्रता और तापमान के बढ़ने के साथ संभावित संबंध की जानकारी लोगों को मिल सके। एक बात जो हर्षवर्धन के जवाब और चेहरे से साफ झलक रही थी वह यह थी कि वह बच्चों की मौत पर अपनी बेबसी छुपा नहीं पाए। पर यह बेबसी क्यों? देश में एक मजबूत सरकार है। बिहार में भी जो सरकार है उसमें बीजेपी भागीदार है। इससे भी बड़ी बात यह है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री, प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ये सभी भाजपा के है। इन सबके बाद भी मजबूत सरकार मजबूर क्यों है। बंगाल में बवाल के नाम पर चीखने वाले बिहार के सवाल पर मौन क्यों हैं। कब शासन जागेगा, कब अस्पतालों में बुनियादी सुविधाएं होंगी। 

अब थोड़ा हर्षवर्धन के जूनियर अश्विनी चौबे की बात करते हैं। चौबे जी से जब इस मामले में सवाल पूछा गया तो पहले तो इसे टालते रहे और जब जवाब दिया तो कहा कि यह लीची खाने से हो रहा है। मंत्री जी यह भी कहते हैं कि चुनाव में व्यस्तता के कारण इस बार जागरूकता नहीं हो पाया। इस बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेताओं के लिए चुनाव ज्यादा जरूरी है ना कि कोई काम। मुजफ्फरपुर नहीं जाने की बात पर कहा कि वह अपनी तरफ से प्रोटोकॉल नहीं तोड़ सकते। फिर सवाल यही होगा कि यह कैसा प्रोटोकॉल है जो बच्चों की मौत का जिम्मेदार बन रहा है। प्रोटोकॉल से ज्यादा जरूरी जान है और मंत्री जी शायद यहीं भूल रहे है। हद तो तब हो गई जब हर्षवर्धन इस मामले को लेकर वार्ता कर रहे थे और चौबे जी उनके बगल में बैठकर ऊंघ रहे थे। आखिर कोई इंसान इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है। सवाल नीतीश पर भी उठ रहे हैं। नीतीश फिलहाल राजनीति को महत्व दे रहे हैं ना कि इस मुद्दे को। अब तो लोगों का इन नेताओं से भरोसा उठ गया है और सबको अब भगवान का ही सहारा है। फिर भी हम सत्ता के शूरवीरों से यह उम्मीद करते है कि वह नींद से जगेंगे और उस चीख-पुकार को सुनेंगे जिससे अभी तक बेखबर हैं।

- अंकित सिंह

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़