इथेनॉल मिश्रण नीति के जरिये किसानों और पर्यावरण को बड़ा लाभ पहुँचा रही मोदी सरकार

ethanol blending policy

इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने से न केवल अधिशेष चीनी के इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल करने की सुविधा होगी, बल्कि यह किसानों को भी अपनी फसलों में विविधता लाने, विशेष रूप से मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित करेगा जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इथेनॉल उत्पादन और पूरे देश में इसके वितरण के लिए ई-100 परियोजना के शुभारंभ के अवसर पर कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति के तहत पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समय सीमा को पांच वर्ष और कम कर दिया है। इससे पहले यह लक्ष्य साल 2030 तक पूरा किया जाना था वहीं अब इसे वर्ष 2025 तक पूरा किया जाएगा। प्रधानमंत्री की यह घोषणा निश्चित रूप से सरकार की गंभीरता व महत्वकांक्षा को दर्शाती है।

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गौरतलब है कि देश में इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल कार्यक्रम (ईबीपी) को वर्ष 2003 में आरंभ किया गया था परंतु इस दिशा में प्रगति विगत सात वर्षों में जाकर ही हो सकी है। वर्ष 2014 तक पेट्रोल में औसत रूप में केवल 1.5 प्रतिशत इथेनॉल मिलाया जाता था जो अब बढ़कर 8.5 प्रतिशत हो गया है। जाहिर है कि इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के प्रति गंभीरता मोदी शासन के दौरान हुयी है।

इथेनॉल है पर्यावरणानुकूल

दरअसल इथेनॉल आर्गेनिक यौगिक इथाइल अल्कोहल है जो बायोमास से उत्पादित होता है। यह अल्कोहल बेवरीज में भी इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री है। चूंकि इसका ऑक्टेन संख्या गैसोलिन से भी अधिक है जिसका मतलब यह है कि यह पेट्रोल की ऑक्टेन संख्या को बढ़ाता है। इथेलॉन में ऑक्सीजन होता है और यह ईंधन के पूर्ण दहन में दहन मदद करता है। इससे कम उत्सर्जन होता है जो भारत को पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता के लक्ष्य की प्राप्ति में भी मदद करेगा। यही नहीं अधिक ऑक्टेन संख्या होने का मतलब है ईंधन की ऑक्टेन रेटिंग में भी बढ़ोतरी।

नीतियों में कौन-से हुए बदलाव?

केंद्र सरकार ने ईबीपी कार्यक्रम को गति देने के लिए वर्ष 2018 में जैव ईंधन नीति की घोषणा की। पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण (ब्लेंडिंग) के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बी-हैवी मोलास (शीरा), गन्ने के रस, शुगर सिरप और चीनी से इथेनॉल उत्पादन की अनुमति दी है और चीनी मिलों को अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा भारत सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास उपलब्ध अधिशेष मक्के और चावल को इथेनॉल के उत्पादन में इस्तेमाल करने की अनुमति भी दी है। सरकार ने यह भी घोषणा की है कि एफसीआई के पास उपलब्ध चावल को आने वाले वर्षों में डिस्टिलरीज को दिया जाएगा।

किसानों की आय में होगी वृद्धि

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं जिसके कारण उपर्युक्त परिणाम प्राप्त हुये हैं जो न केवल अधिशेष खाद्यान्न उत्पादन की दशा में भी खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले किसानों को लाभ हो रहा है और उनकी आय में वृद्धि हो रही है वरन् गन्ना किसानों को गन्ना का बकाया भुगतान भी ससमय हो सकेगा।

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साथ ही संकट का सामना कर रहे चीनी के उच्च भंडार वाली मिलों की नकदी समस्या भी दूर होगी। वर्ष 2013-14 में देश में लगभग 38 करोड़ लीटर इथेनॉल की खरीद हुई थी जो अब बढ़कर 320 करोड़ लीटर हो गई है। जाहिर है इसका लाभ देश के गन्ना किसानों को हुआ है।

फसल विविधता को बढ़ाव एवं पानी की होगी कम खपत

इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने से न केवल अधिशेष चीनी के इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल करने की सुविधा होगी, बल्कि यह किसानों को भी अपनी फसलों में विविधता लाने, विशेष रूप से मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित करेगा जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है।

आयात बिल में होगी कमी

उल्लेखनीय है कि भारत अपनी पेट्रोलियम खपत का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है। नीति आयोग के एक डेटा के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 भारत 185 एमटी पेट्रोलियम का विशुद्ध आयात किया जिसके लिए 55 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ा। बीस प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम से भारत प्रतिवर्ष 4 अरब डॉलर यानी 30,000 करोड़ रुपये का बचत कर सकता है। यह आयात पर निर्भरता कम करके ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य प्राप्ति में भी मदद करेगा। इस तरह देखा जाये तो इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम बहुद्देश्यीय लाभ वाला है। सरकार इसके द्वारा एक तीर से दो नहीं बल्कि कई निशाने साधने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

-रतीश कुमार झा

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