पानी नहीं जीवन है ये, इसे यूं ही बर्बाद होने से रोके सरकारी तंत्र
जलबोर्ड के मुताबिक मुख्य जल वितरण की लाइन करीब 1400 किमी की है जिसका अधिकांश हिस्सा 40 से 50 साल पुराना है जिसकी वजह से रिसाव की समस्या देखने को मिल रही है।
जल है तो जीवन है। इस पंक्ति को हम सबने बचपन से पढ़ा और सुना है और आजकल तो आस-पास के माहौल में देखने को भी मिल जाता है। किसी भी जीव, जन्तु एवं प्राणियों के जीवन का निर्वहन बिना जल के मुमकिन नहीं है और इसके बिना संसार का कोई अस्तित्व भी नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से जल संकट हिन्दुस्तान के लिए एक बड़ी समस्या के तौर पर उभरा है। इतना ही नहीं हमारे मुल्क में 40 फीसदी पानी का स्त्रोत भूजल है। हालांकि सरकार और सामाजिक संस्थाएं लगातार जल संरक्षण के लिए एहतियातन कदम उठा रहे हैं और लोगों को पानी की फिजूलखर्ची से रोक भी रहे हैं। इसके बावजूद महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और दिल्ली पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
कई स्थानों पर ऐसा देखा गया है कि पानी के लिए लोग घंटों पैदल चलते हैं और फिर वहां पर भी उन्हें मुश्किल से पीने लायक ही पानी मिल पाता है। महाराष्ट्र की बात की जाए तो भूगर्भ विभाग के सर्वे के मुताबिक अप्रैल माह में स्थिति बिगड़ चुकी थी और 10 हजार 366 गांवों में पानी का स्तर बेहद कम हो गया है। इन गांवों में से 2100 गांव तो ऐसे हैं जहां पीने लायक पानी न के बराबर है। मौसम की मार से पनपे ये हालात मानसून की देरी के चलते दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं।
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हालांकि प्रदेश सरकार जल के अभाव वाले स्थानों में पानी पहुंचाने के लिए बांधों का रास्ता भी बदल रही हैं। जबकि प्रदेश सरकार ने बारामती इलाके में जाने वाले नीरा देवघर बांध के पानी का बहाव रोककर इसकी आपूर्ति राज्य के कुछ ऐसे इलाकों में करने का फैसला किया है, जहां जल का अभाव है। प्रदेश का हाल इतना बेहाल है कि 72 फीसदी जिलों में सूखा पड़ा है और करीब प्रदेश के 4,920 गांवों और 10,506 हैमलेट में 6,000 से अधिक टैंकर रोजान पानी की आपूर्ति करते हैं।
कर्नाटक की बात की जाए तो वहां के 80 फीसदी जिले पानी की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। तो वहीं कई जिलों के स्कूलों को एक सप्ताह के लिए बंद कर दिया गया है। जबकि तमिलनाडु सरकार ने कई आपातकालीन जल परियोजनाओं के लिए 233 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। क्योंकि चेन्नई में पानी की कमी को पूरा करने वालों जलाशयों में पानी उनकी क्षमता से 1 फीसदी और कम हो गया है। जिसके बाद पनपे हुए जल संकट को देखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है। वहीं प्रदेश सरकार ने चेन्नई मेट्रो के काम को भी फिलहाल रोक दिया है।
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हाल ही में डीईडब्लूएस द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 30 मई, 2019 तक देश का 43.4 फीसदी से अधिक हिस्सा सूखे की चपेट में आ गया था। न तो गर्मी कम होने का नाम ले रही है और न ही राजस्थान में मौसम बदला है। राजस्थान का चुरू गांव सबसे ज्यादा तप रहा है और इस तपिश में तप रही है वहां की जनता। प्रदेश की स्थिति ऐसी हो गई है कि दिन-प्रतिदिन हैंडपंप और कुएं सूखते जा रहे हैं और सरकार भी जल की आपूर्ति नहीं कर पा रही है। आलम कुछ ऐसा है कि 10-10 दिन बीत जाते हैं तब ग्रामीण इलाकों में पानी के टैंकर उपलब्ध हो पाते हैं। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि प्रदेश में जल का स्त्रोत कहे जाने वाले 284 में 215 बांध तो पूरी तरह से सूख गए हैं।
राजधानी दिल्ली का हाल भी कुछ ऐसा ही है। बीते दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से शीला दीक्षित ने मुलाकात की और पानी की समस्याओं से निपटने के लिए योजना बनाई। लेकिन क्या इन योजनाओं का असर लीकेज पाइपलाइनों पर पड़ेगा। क्योंकि जहां एक तरफ दिल्लीवासियों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ टूटी-फूटी पाइपलाइनों की वजह से पानी बर्बाद हो रहा है। जलबोर्ड के मुताबिक मुख्य जल वितरण की लाइन करीब 1400 किमी की है जिसका अधिकांश हिस्सा 40 से 50 साल पुराना है जिसकी वजह से रिसाव की समस्या देखने को मिल रही है।
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टूटी-फूटी पाइपलाइनों से होकर जिन लोगों के घरों तक पानी पहुंच रहा है तो वह पीने लायक नहीं है। क्योंकि पानी से सीवेज की बदबू आती है। जलबोर्ड के एक अनुमान के मुताबिक जलापूर्ति करने वाली लाइनों से 40 फीसदी पानी बर्बाद हो रहा है। हालांकि इस तरह की समस्याओं से निपटारा भी मुमकिन है लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपराज्यपाल अनिल बैजल को थोड़ी फुर्ती दिखानी पड़ेगी। गुरुवार की सुबह पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी ने एक ट्वीट शेयर किया। जिसमें पानी की बर्बादी वाले स्थान पर वह खुद निरक्षण करते हुए देखी गईं। अगर इसी तरह केजरीवाल और उपराज्यपाल अचानक से जल संकट वालों स्थानों का निरीक्षण करें तो सरकारी तंत्र इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द कर सकता है।
- अनुराग गुप्ता
No substitute to field visits.
— Kiran Bedi (@thekiranbedi) June 13, 2019
Which is why officers need to be visiting, seeing & pointing out deficiencies. Or else things will remain as they are. Or even deteriorate.
Water is precious. Supervisors need to be out in the field to check its wastage. @gssjodhpur @ANI @PTI_News pic.twitter.com/I65CmQiTs6
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