देश की अवाम कब तक देती रहेगी अग्नि परीक्षाएं

देश में न्यायपालिका का बुनियाद सिद्धान्त है कि बेशक सौ अपराधी छूट जाएं पर एक भी निरपराध को सजा नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस प्राकृतिक न्याय के तकाजे के विपरीत काले धन के खात्मे की प्रक्रिया में देश के अरबों निरपराधों को सजा देने का काम किया है। बड़े नोटों को बंद करके देश में काला धन मिटाने के प्रयासों में गेंहू के साथ घुन भी पिस गया। यह ऐसा ही है कि करे कोई भरे कोई। जिनकी कानून में पूरी आस्था है उनको चुनिंदा लोगों की वजह से बगैर गलती के सजा मिल रही है। आम लोगों की दिनचर्या ही पटरी से उतर गई। हर किसी के चेहरे पर चिंता और तनाव है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वीकारा भी है कि देश में लाख, दो लाख या पांच लाख होंगे, जिनके पास काला धन है। सवाल यही है कि इन लोगों के खिलाफ सीधे कार्रवाई करने के बजाए आम लोगों को सजा क्यों दी जा रही है। काले धन के लिए देश का आम नागरिक कसूरवार नहीं है। क्या यह माना जाए कि तमाम तरह के खुफिया तंत्रों, आयकर और राजस्व निदेशालय के लाखों कर्मचारी−अधिकारियों के लवाजमे के बाद भी कुछ लाख लोगों को गिरफ्त में लेना बूते से बाहर का काम है। क्या यह काम इतना मुश्किल था कि इनका काला धन निकालने के लिए आम लोगों को तकलीफों के जलजले में धकेला गया।
यदि यह मान भी लिया जाए कि सरकारी मशीनरी के बाद भी इन चुनिंदा टैक्स चोरों को पकड़ना मुश्किल है तो इससे पहले पनामा पेपर लीक और विदेशों में जमा कालाधन रखने वालों की सूची में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करके यह भरोसा दिलाया जा सकता था कि सरकार ने पहले प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है। पनामा पेपर लीक और विदेशों में काला धन रखने वालों की सूची सरकार के पास है। सरकार को पमाना पेपर लीक की जांच की अवधि तय करके यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि चाहे कोई कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, बच नहीं सकेगा। गौरतलब है कि पनामा पेपर लीक में देश की कई फिल्मी हस्तियों सहित ख्यातनाम लोग शरीक हैं। सरकार के पास विदेशों में काला धन जमा कराने वालों की सूची भी है। सरकार विदेशी प्रक्रिया से धन लाने के प्रयासों के बजाए कठोर कानून बनाकर सूची में शामिल लोगों को ही धन वापस लाने के लिए विवश कर सकती थी। इन्हें सीधे जेल का रास्ता दिखाया जाता। इससे तकलीफ भोग रही जनता को कम से कम अब की जा रही र्कारवाई पर इतना भरोसा तो हो जाता कि सरकार ने पहले बड़ों के खिलाफ कार्रवाई की है। कुछ ऐसा ही हाल बैंकों के एनपीए का है। सरकारी बैंकों के करीब तीन लाख करोड़ डूबत खाते में दर्ज हैं। पनामा पेपर और विदेशों में जमा धन की तरह एनपीए की सूची भी सरकार के पास मौजूद है। इन पर र्कारवाई करना भी आसान है। इनकी संपत्ति और परिसंपत्तियां देश में मौजूद हैं। कानून बनाकर इनको जब्त किया जा सकता था।
ऐसा ही निर्धारित समय सीमा के बाद पनामा पेपर और काले धन की सूची के मामले में भी किया जा सकता था। ऐसी कठोर कार्रवाई से आम अवाम का सरकार पर भरोसा बढ़ जाता। इससे काले धन को मिटाने के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों से होने वाली मुसीबतों को अवाम आसानी से झेल जाती। ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि देश की खातिर आम लोगों ने कष्ट उठाएं हों। इससे पहले पड़ौसी देश चीन और पाकिस्तान के साथ युद्धों में देश के लोगों ने एकता−अखंडता का परिचय देते हुए हर तरह की तकलीफें न सिर्फ बर्दाश्त की हैं बल्कि तन−मन−धन से सरकार की मदद की है। बेशक केंद्र में चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो। परमाणु परीक्षण के दौरान विश्व के ज्यादातर देशों के आर्थिक प्रतिबंध लगाने पर लोगों ने उफ किए बगैर हर तरह की दुश्वारियां उठाईं। आम लोगों को तकलीफ तब महसूस नहीं होती जब कानून का समान रूप से पालन कराया जाए। हो इसका उल्टा रहा है। लिकर किंग विजय माल्या और ललित मोदी जैसे ताकतवर लोग सरकार की नजरों के सामने हजारों करोड़ लेकर चंपत हो गए और सरकार ताकती रह गई। सरकार ने जहां कानून की पालना की जरूरत थी, वहां कुछ नहीं किया, अब जबरन लोगों को समस्याओं के गर्त में धकेल कर उनकी देशभक्ति की परीक्षा ली जा रही है। सरकार का कहना है कि काले धन के खात्मे की कार्रवाई देशवासियों के भले के लिए की जा रही है। इससे लोकहित योजनाओं के लिए ज्यादा धन मिलेगा। सरकारी खजाने में राजस्व की बढ़ोतरी होगी। काले धन की समाप्ति और राजस्व बढ़ोतरी से योजनाओं का आकार−प्रकार बढ़ जाएगा।
सवाल यही है कि क्या जरूरतमंदों तक इनका फायदा पहुंचेगा। क्या बढ़ी हुई योजना राशि का उन्हें पूरा लाभ मिल सकेगा। सरकारी विभागों में अभी भ्रष्टाचार का अजगर पसरा हुआ है, योजनाओं का पूरा फायदा आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है। क्या सरकार यह दावा कर सकती है कि कोई भी एक विभाग चाहे वह राज्य का हो या केंद्र का, पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त है। काला धन समाप्ति के प्रयासों से पहले सरकार को कम से कम दो−चार विभागों को भ्रष्टाचार मुक्त करके आम लोगों का विश्वास अर्जित करना चाहिए था। होगा यही कि इन योजनाओं के लिए मिले अतिरिक्त धन का हिस्सा भी भ्रष्टाचारियों की भेंट चढ़ जाएगा, क्योंकि इसे रोकने के कोई पुख्ता उपाय पहले से नहीं किए गए। इससे काला धन फिर से प्रचलन में आ जाएगा।
सरकारी तंत्र की लापरवाही और निकम्मेपन का आलम यह है कि देश को हर साल हजारों करोड़ का अतिरिक्ति भार इसलिए उठाना पड़ता है कि योजनाएं समय से पूरी नहीं हो पातीं। लेटलतीफी और भ्रष्टाचार के चलते इनकी लागत में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है। इसका बोझ भी सरकार अधिकारी और नेता नहीं आम लोग ही उठाते हैं। सरकार ने कभी भी इनकी जिम्मेदारी तय करने का कानून नहीं बनाया। रहा सवाल देश के लोगों के भरोसे का तो अवाम को यदि भाजपा और नरेन्द्र मोदी पर भरोसा नहीं होता वह तो केंद्र में सत्ता में नहीं होती। फिर निकम्मे और भ्रष्ट लोगों की बजाए आम लोगों के इस भरोसे की अग्नि परीक्षा लेने का औचित्य समझ से परे है। आखिर आम लोग कब तक ऐसी परीक्षाएं देते रहेंगे।
- योगेन्द्र योगी
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