संवाद और संचार की शक्ति को समझ लेंगे तो सफलताओं के द्वार स्वतः खुल जाएँगे

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हम चार तरह से कम्युनिकेट करते हैं। लिखकर, बोलकर, इशारों-संकेतों और देहभाषा (बॉडी लैंग्वेज) से। यह चारों चीजें हमारी संचार (कम्युनिकेशन) की दुनिया को खास बनाती हैं। इसके लिए सबसे जरूरी है खुद पर भरोसा होना।

वह बोलता है तो लगता है कि सुनते ही जाएं। ऐसा लगता है कि दिल से बोलता है। उसकी आवाज में असर है। कहते हैं, “गालिब का है अंदाजें बयां और”। ऐसी तमाम बातें हमने अच्छी बातचीत करने वालों, बेहतर भाषण देने वालों के बारे में सुनी हैं। ऐसा क्या है कि आपका अंदाजे बयां खास हो जाता है और यही शैली आपको लोकप्रिय बना देती है। यही कम्युनिकेशन आपको आम से खास बना देता है। शायद इसीलिए हमारे लोकजीवन में यह कहावत बहुत प्रचलित है,- ‘बातहिं हाथी पाइए बातहिं हाथी पाँव’। जिसका मतलब है कि आप राजदरबार में हैं और अपनी बातचीत से राजा को खुश कर देते हैं तो हाथी भी पा सकते हैं, इसके विपरीत आपके संवाद से नाराज राजा आपको हाथी के पैरों से कुचलवा भी सकता है।

संवाद और संचार की शक्ति को अगर हम समझ जाते हैं, तो हमारी सफलताओं के महामार्ग खुद खुलते चले जाते हैं। दुनिया में हर क्षेत्र में ज्यादातर वही लोग सफल होते हैं जो अपनी बातों को लोगों को समझा पाते हैं। बातचीत में, वक्तव्यों में असर लाकर ही हम उन ऊंचाइयों पर जा सकते हैं जिनका हमने सपना देखा है। सफलता व्यक्ति के जीवन में एक उत्सव की तरह है और हर व्यक्ति इसकी प्रतीक्षा करता है। कई लोग जल्दी सफल हो जाते हैं तो कुछ को प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस इंतजार की घड़ी को कम किया जा सकता है अगर हमें खुद को व्यक्त करना आता है।

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कीजिए खुद पर भरोसा

हम चार तरह से कम्युनिकेट करते हैं। लिखकर, बोलकर, इशारों-संकेतों और देहभाषा (बॉडी लैंग्वेज) से। यह चारों चीजें हमारी संचार (कम्युनिकेशन) की दुनिया को खास बनाती हैं। इसके लिए सबसे जरूरी है खुद पर भरोसा होना। अगर हम खुद पर विश्वास करते हैं तो इससे बड़ी कोई चीज नहीं है। कहा जाता है हमारे विचार ही हमें बनाते हैं। हमारा खुद पर भरोसा ही हमें विजेता बनाता है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम जो सोचते हैं, उसे पूरे आत्मविश्वास से कहें। कम्युनिकेशन स्किल एक विधा है जो साधी जा सकती है, सीखी जा सकती है। ऐसा छात्र जिसके पहली बार वाद-विवाद प्रतियोगिता में पैर कांप रहे थे, जो अपना भाषण भूल गया था। वही आगे चलकर श्रेष्ठ वक्ता बन जाता है। यानी वह वक्ता नहीं था, उसने उस विधा को साध लिया। अभ्यास से, आत्मविश्वास से उसे वह हासिल हुआ, जो उसके पास नहीं था। हमें भी किसी विधा को सीखने के लिए सबसे पहले खुद पर भरोसा पैदा करना होगा।

अभ्यास से मिलेगी सफलता

किसी भी प्रकार की प्रदर्शन कला संगीत, नृत्य, लेखन, भाषण, कलाएं सिर्फ सतत अभ्यास और रियाज से हासिल हो सकती हैं। अभ्यास से हर कला आपकी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है। सिर्फ आत्मविश्वास हो किंतु रियाज या अभ्यास न हो तो हम अपनी कला को बेहतर नहीं बना सकते। कम्युनिकेशन की कला भी एक परफार्मिंग आर्ट की तरह है, जिसके लिए सतत अभ्यास जरूरी है। कई बार लोग कहते हैं कि कम्युनिकेशन स्किल जन्म से ही आती है। ऐसा नहीं होता। हम जब पैदा हुए तो हमें सिर्फ रोना आता था। किंतु हमने भाषाएं सीखीं, शब्द सीखे, वाक्य सीखे और उनके प्रयोग सीखे, यानी इसके लिए अभ्यास किया। कम्युनिकेशन स्किल की प्रैक्टिस या अभ्यास बहुत जरूरी है। हमें इसे सरल प्रयासों से सीखना होगा। बातचीत करते हुए हम प्रयास करें कि आंखों से कांटेक्ट कर बात करें। कई बार हम बात करते हुए सामने वाले से आँखें नहीं मिलाते, इधर-उधर या मोबाइल पर आँखें गड़ाए हुए बातें करते हैं, स्वाभाविक है, आपकी बात का असर कम होगा क्योंकि सामने वाले को लगेगा कि आपकी उसमें रुचि नहीं है या आप बहुत कैजुअल हैं। चेहरे पर भावनाओं का लाना जरूरी है। समय-स्थान और परिस्थिति के अनुसार सिर्फ संवाद और शैली ही नहीं चेहरे के भाव भी होने चाहिए। किसी शोक समाचार के अवसर पर आपका मुस्कुराता और खिला हुआ चेहरा आपके समूचे संवाद को विफल कर देगा। फेस पर भावनाएं और जेस्चर्स के इस्तेमाल से कम्युनिकेशन सफल और प्रभावी हो जाता है।

सुनना भी सीखिए जनाब

हमें अपनी जिंदगी में लोगों का साथ चाहिए। जीवन में सफलता के लिए, टीम वर्क के लिए, लोकप्रियता के लिए, नेटवर्किंग के लिए। इसके लिए हमें लोगों को आदर देना होगा। भावनाओं का ख्याल रखना होगा। सटीक बोलना होगा और भावनाओं को काबू में रखना होगा। अच्छा बोलने के साथ अच्छा श्रोता होना भी जरूरी है। कई बार किसी को सुन लेने से उसका जी हल्का हो जाता है। उसे लगता है कि आप उसके प्रति अच्छे भाव रखते हैं। इफेक्टिव लिसिनिंग (सुनने) की आदतें विकसित करनी पड़ती हैं। एक अधिकारी, धर्मगुरु और राजनेता कैसे हजारों लोगों से संवाद करते हैं। मिलने आने वाले हर व्यक्ति के लिए उनके पास समाधान होते हैं। कहा जाता है कि एक अच्छा बोलने वाला एक अच्छा श्रोता भी होता है। आप जब सुन रहे होते हैं तो आपको बहुत सारे तथ्य मिलते हैं और समाज की धड़कनों का अहसास भी होता है। ठीक समय पर सटीक बात बोलना महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ ही अपनी बातचीत की सेंटिंग के हिसाब से वाल्यूम इस्तेमाल करें। आत्मविश्वास के साथ बोलें, यह मत सोचिए कि लोग क्या सोचेंगे। अच्छी भाषा का एक मतलब ठीक व्याकरण का इस्तेमाल भी है। भाषा का सौंदर्य आपकी वाणी में दिखना चाहिए। आजकल फिल्म संगीत में रिमिक्स के चलन की तरह भाषा में भी मिलावट का दौर चल रहा है। किंतु आप जिस भाषा में बोलें उसे उसके पूरे सौंदर्य और उसकी शक्ति के साथ बोलें। आमतौर हम अपनी प्रशंसा सुनने और करने के अभ्यासी होते हैं। किंतु अगर आप श्रोताओं के मध्य हैं तो स्वयं अपनी बहुत ज्यादा प्रशंसा न करें। इससे आपकी छवि एक आत्ममुग्ध व्यक्ति की बनती है जो अपनी ही अदा पर फिदा है। विनम्रता एक आवश्यक गुण है, इसे कभी न छोंड़ें।

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जीत सकते हैं आप

कई बार लगता है कि आखिर मैं ऐसा कैसे कर पाऊंगा। मूल बात है कि हम सोच लें तो हम कर सकते हैं। आप तय करें कि मुझे अपनी कम्युनिकेशन स्किल पर काम करना है। आप कर पाएंगे भरोसा कीजिए। पहला काम आप खुद पर भरोसा रखें। आत्मविश्वास हर ताले की चाबी है। ज्यादा लोगों से मुलाकात कीजिए, बातचीत कीजिए। इससे आपकी हिचक टूटेगी। आपको अनुभव आएगा कि विभिन्न प्रकार के लोगों से बात कैसे कर सकते हैं। अभ्यास से कम्युनिकेशन बेहतर होगा। बॉडी लैंग्वेज सुधारने के लिए, आप जो कहने जा रहे हैं उसका एक आईने के सामने अभ्यास कीजिए। अनेक बड़े लोगों ने ऐसा किया है। कुछ ने आईने के सामने तो कुछ ने पेड़ के सामने खड़े होकर अभ्यास किया है। एकलव्य ने तो अपने गुरु की मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धनुष विद्या सीख ली। कम्युनिकेशन की कला तो आपके भीतर है उसे निकालना भर है। भरोसा कीजिए और जीतने का मन बनाइए। ये दुनिया बांहें फैलाए आपके स्वागत में खड़ी है। आप बोल रहे होंगे और वह तालियां बजा रही होगी। तालियों की आवाज अभी से आपके कानों में गूंज रही है न ? सफलता आपकी प्रतीक्षा में है। आप मंजिल की ओर बढ़ चले हैं।

-प्रो. संजय द्विवेदी

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में मास कम्युनिकेशन के प्रोफेसर हैं।)

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