तुर्किये और सीरिया में भूकंप से हुए नुकसान से भारत को भी सबक लेना चाहिए

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एनसीएस के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है।

6 फरवरी को 7.8 की तीव्रता के शक्तिशाली भूकम्प से तुर्किये और सीरिया में हुए महाविनाश में 20 हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तुर्किये की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां अक्सर भूकम्प आते रहते हैं। 1999 में तो यहां भूकम्प से 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। तुर्किये और सीरिया में भूकम्प से हुई भयानक तबाही को देखने के बाद कुछ समय से भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार लग रहे भूकम्प के झटकों को लेकर भी चिंता गहराने लगी है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भारत में भी तुर्किये तैसे ही तेज भूकम्प की आशंका जता रहे हैं। उनके मुताबिक आगामी एक-दो वर्षों में या एक-दो दशक में कभी भी भारत के कुछ हिस्सों में 7.5 से भी ज्यादा तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश का करीब 59 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न तीव्रताओं वाले भूकम्प के जोखिम पर है। खासकर दिल्ली-एनसीआर तथा निकटवर्ती राज्यों में तो बार-बार भूकम्प के झटके लग रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में 3 फरवरी की रात 3.2 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। 24 जनवरी की दोपहर को तो दिल्ली-एनसीआर सहित कुछ राज्यों में रिक्टर स्केल पर 5.8 तीव्रता के भूकम्प के तेज झटके लगे थे। 5 जनवरी की रात दिल्ली-एनसीआर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में 5.9 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। उससे पहले दिल्ली एनसीआर में नए साल की शुरुआत भी 3.8 तीव्रता के भूकम्प के झटकों के साथ ही हुई थी। नवम्बर माह में तो दिल्ली-एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकम्प भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिक्टर स्केल पर 6.3 तीव्रता का था, जिसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था।

2020 के बाद से भी दिल्ली-एनसीआर का इलाका लगातार भूकम्प से झटकों से थर्रा रहा है। हालांकि राहत की बात यही है कि बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों से अब तक जान-माल का कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है लेकिन दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत में कई हल्के और मध्यम भूकम्प के झटके हिमालय क्षेत्र में किसी बड़े भूकम्प की आशंका को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो वह दिन दूर नहीं, जब दिल्ली-एनसीआर का हाल भी तुर्किये और सीरिया जैसा ही होगा। भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि कई छोटे भूकम्प बड़ी तबाही का संकेत होते हैं और बार-बार लग रहे भूकम्प के झटकों के मद्देनजर दिल्ली-एनसीआर इलाके में आने वाले दिनों में किसी बड़े भूकम्प का अनुमान लगाया जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में दिल्ली-एनसीआर की आबादी काफी बढ़ी है और ऐसे में 6 से अधिक तीव्रता का भूकम्प यहां तबाही मचा सकता है। भूकम्प आने के खतरे को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों को कुल पांच जोन में बांटा गया है, जिनमें सर्वाधिक खतरनाक सिस्मिक जोन 5 है और उसके बाद सिस्मिक जोन 4 है। दिल्ली सिस्मिक जोन 4 में आती है और दिल्ली में कुछ क्षेत्र सिस्मिक जोन 4 से भी ज्यादा खतरे वाली स्थिति में हैं। ऐसे में दिल्ली में भूकम्प का खतरा हमेशा बना रहता है।

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एनसीएस के वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली को हिमालयी बेल्ट से काफी खतरा है, जहां 8 की तीव्रता वाले भूकम्प आने की भी क्षमता है। दिल्ली से करीब दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय क्षेत्र में अगर 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकम्प आता है तो दिल्ली के लिए बड़ा खतरा है। हालांकि ऐसा भीषण भूकम्प कब आएगा, इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कोई सटीक अनुमान लगाना संभव नहीं है। दरअसल भूकम्प के पूर्वानुमान का न तो कोई उपकरण है और न ही कोई मैकेनिज्म। विशेषज्ञों के अनुसार दिल्ली में बार-बार आ रहे भूकम्प के झटकों से पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट इस समय सक्रिय हैं और इन फॉल्ट में बड़े भूकम्प की तीव्रता 6.5 तक रह सकती है। इसीलिए विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बार-बार लग रहे भूकम्प के इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मानते हुए दिल्ली को नुकसान से बचने की तैयारियां कर लेनी चाहिएं। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में निरन्तर लग रहे झटकों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट भी कई बार कड़ा रुख अपना चुका है। हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले भी दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, दिल्ली छावनी परिषद, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद को नोटिस जारी करते हुए पूछा था कि तेज भूकम्प आने पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं? अदालत द्वारा चिंता जताते हुए कहा गया था कि सरकार और अन्य निकाय हमेशा की भांति भूकम्प के झटकों को हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इस दिशा में गंभीरता दिखाने की जरूरत है। अदालत का कहना था कि भूकम्प जैसी विपदा से निपटने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि भूकम्प से लाखों लोगों की जान जा सकती है। दिल्ली सरकार तथा एमसीडी द्वारा दाखिल किए गए जवाब पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत यहां तक कह चुकी है कि भूकम्प से शहर को सुरक्षित रखने को लेकर उठाए गए कदम या प्रस्ताव केवल कागजी शेर हैं और ऐसा नहीं दिख रहा कि एजेंसियों ने भूकम्प के संबंध में अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश का अनुपालन किया हो। दिल्ली-एनसीआर भूकम्प के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं, जो दूसरे नंबर के सबसे खतरनाक सिस्मिक जोन-4 में आता है।

पिछले कुछ महीनों में दिल्ली-एनसीआर में आए भूकम्प के ज्यादातर झटके भले ही रिक्टर पैमाने पर कम तीव्रता वाले रहे हों किन्तु भूकम्प पर शोध करने वाले इन झटकों को बड़े खतरे की आहट मान रहे हैं। इसीलिए अधिकांश भूकम्प विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर की इमारतों को भूकम्प के लिए तैयारी करना शुरू कर देना चाहिए ताकि बड़े भूकम्प के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में करीब 90 फीसदी मकान क्रंकीट और सरिये से बने हैं, जिनमें से 90 फीसदी इमारतें रिक्टर स्केल पर छह तीव्रता से तेज भूकम्प को झेलने में समर्थ नहीं हैं। एनसीएस के अध्ययन के अनुसार दिल्ली का करीब 30 फीसदी हिस्सा जोन-5 में आता है, जो भूकम्प की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दिल्ली में बनी नई इमारतें 6 से 6.6 तीव्रता के भूकम्प को झेल सकती हैं जबकि पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकम्प ही सह सकती हैं। विशेषज्ञ बड़ा भूकम्प आने पर दिल्ली में जान-माल का ज्यादा नुकसान होने का अनुमान इसलिए भी लगा रहे हैं क्योंकि करीब 2.25 करोड़ आबादी वाली दिल्ली में प्रतिवर्ग किलोमीटर दस हजार लोग रहते हैं और कोई बड़ा भूकम्प 300-400 किलोमीटर की रेंज तक असर दिखाता है। बहरहाल, यहां सवाल यह है कि निरन्तर आ रहे भूकम्पों के मद्देनजर ऐसे क्या कदम उठाए जाएं, जिससे विकास की गति भी प्रभावित न हो और प्रकृति को भी नुकसान न हो ताकि आने वाले समय में दिल्ली जैसे शहर तुर्किये और सीरिया जैसी भयावह त्रासदी झेलने को विवश न हों।

-योगेश कुमार गोयल

(लेखक 33 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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