उज्बेकिस्तान को करीब लाकर मोदी ने सारा खेल पलट दिया, Uzbekistan वह भू-राजनीतिक चौराहा है जहां से भारत दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और यूरोप को साधेगा

Modi Shavkat Mirziyoyev
ANI

उज्बेकिस्तान मध्य एशिया के केंद्र में स्थित है और चारों ओर से भूमि से घिरा है। इसकी सीमाएँ अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाखिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से मिलती हैं। उज्बेकिस्तान, भारत को मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण ‘कनेक्टिविटी नोड’ के रूप में देखा जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उज्बेकिस्तान के साथ संबंध प्रगाढ़ करना केवल औपचारिक कूटनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि एक गहरी रणनीतिक चाल है। मध्य एशिया के इस प्रमुख देश के साथ निकटता बढ़ाकर भारत ने एक साथ कई मोर्चों पर लाभ उठाने की स्थिति बना ली है। सबसे पहले, उज्बेकिस्तान भारत के "मध्य एशिया संपर्क" का केंद्रीय स्तंभ बन सकता है। अफगानिस्तान की अस्थिरता और पाकिस्तान के अवरोध के कारण भारत के लिए मध्य एशिया तक सीधा व्यापारिक और ऊर्जा मार्ग पाना मुश्किल रहा है। उज्बेकिस्तान के साथ मजबूत रिश्ते भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के जरिये नए रास्ते खोलने का मौका देते हैं।

दूसरा, यह कदम चीन की "Belt and Road Initiative" के दबदबे को संतुलित करने की कोशिश भी है। उज्बेकिस्तान, जो अब तक चीन और रूस के प्रभाव में रहा है, भारत के साथ साझेदारी से एक वैकल्पिक कूटनीतिक और आर्थिक सहारा पाएगा। तीसरा, आतंकवाद-रोधी सहयोग में भी यह रिश्ते अहम हैं। अफगानिस्तान के नजदीकी होने के कारण उज्बेकिस्तान क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण में महत्वपूर्ण है। भारत के साथ मिलकर यह देश चरमपंथी नेटवर्क को कमजोर करने और स्थिरता लाने में योगदान दे सकता है। चौथा, यह पहल भारत को SCO (शंघाई सहयोग संगठन) जैसे बहुपक्षीय मंचों पर और प्रभावशाली बनाती है। उज्बेकिस्तान की मेजबानी और समर्थन के साथ भारत मध्य एशिया में राजनीतिक-सुरक्षा विमर्श को अपनी प्राथमिकताओं के अनुरूप ढाल सकता है।

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हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव के बीच हुई टेलीफोन वार्ता ने भारत-उज्बेकिस्तान संबंधों में नई ऊर्जा भर दी है। इस वार्ता को प्रधानमंत्री मोदी ने “फलदायी” बताते हुए कहा कि द्विपक्षीय सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में हुई प्रगति की समीक्षा की गई और रणनीतिक साझेदारी को और आगे बढ़ाने के संकल्प को दोहराया गया। यह घटनाक्रम केवल एक औपचारिक बातचीत भर नहीं है, बल्कि इसके दूरगामी सामरिक और आर्थिक निहितार्थ हैं, जो भारत, मध्य एशिया और वैश्विक भू-राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

हम आपको बता दें कि उज्बेकिस्तान मध्य एशिया के केंद्र में स्थित है और चारों ओर से भूमि से घिरा है। इसकी सीमाएँ अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाखिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से मिलती हैं। उज्बेकिस्तान, भारत को मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण ‘कनेक्टिविटी नोड’ के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, उज्बेकिस्तान की अफगानिस्तान से सीमा होने के कारण भारत के लिए आतंकवाद-निरोधी सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा नीति में यह अहम भूमिका निभा सकता है। साथ ही उज्बेकिस्तान, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सदस्य है। यहां भारत की मजबूत उपस्थिति चीन और रूस के साथ संतुलन साधने में मदद कर सकती है।

इसके अलावा, उज्बेकिस्तान प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध है— विशेषकर सोना, यूरेनियम, गैस और कपास। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए विविधीकरण चाहता है। उज्बेकिस्तान के साथ गैस और यूरेनियम आपूर्ति के समझौते भारत की ऊर्जा सुरक्षा में सहायक हो सकते हैं। इसके अलावा, औषधि, आईटी, कपड़ा और ऑटोमोबाइल सेक्टर में उज्बेकिस्तान एक उभरता हुआ बाजार है, जहाँ भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़ सकती है। साथ ही चाबहार पोर्ट और अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) के जरिए उज्बेकिस्तान को जोड़ना भारत के व्यापारिक हितों को तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत और उज्बेकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग कई स्तरों पर हो रहा है— संयुक्त सैन्य अभ्यास, आतंकवाद-रोधी प्रशिक्षण, और खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान। इसके अलावा, अफगानिस्तान में अस्थिरता और उग्रवादी नेटवर्क के चलते दोनों देशों का सहयोग क्षेत्रीय शांति के लिए अहम है। साथ ही उज्बेकिस्तान भारतीय रक्षा तकनीक और प्रशिक्षण का लाभ उठा सकता है, जबकि भारत को मध्य एशिया में रणनीतिक पहुँच मिलती है।

देखा जाये तो भारत-उज्बेकिस्तान के रिश्ते गहरे होने से अंतरराष्ट्रीय समीकरणों में कई बदलाव संभव हैं। जैसे- मध्य एशिया में भारत की पकड़ मजबूत होगी। हम आपको बता दें कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से ‘ग्रेट गेम’ का केंद्र रहा है, जहां रूस, चीन, अमेरिका और अब तुर्की प्रभाव जमाने की कोशिश करते रहे हैं। इसके अलावा, उज्बेकिस्तान पर चीन का निवेश और आर्थिक प्रभाव बढ़ रहा है। भारत के साथ मजबूत साझेदारी इस प्रभाव को संतुलित कर सकती है। साथ ही उज्बेकिस्तान जैसे मुस्लिम-बहुल, लेकिन धर्मनिरपेक्ष झुकाव वाले देश के साथ करीबी रिश्ते भारत की वैश्विक छवि को मजबूती देते हैं।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत और उज्बेकिस्तान का सांस्कृतिक रिश्ता बहुत पुराना है। समरकंद और बुखारा जैसे ऐतिहासिक शहर भारत के इतिहास में गहरे जुड़े हैं, चाहे वह बाबर का आगमन हो या सूफी परंपरा। साथ ही उज्बेक छात्रों के लिए भारतीय विश्वविद्यालय, विशेषकर मेडिकल और तकनीकी शिक्षा, एक आकर्षण हैं। इसके अलावा, बॉलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता मध्य एशिया में भारत की सॉफ्ट पावर को और बढ़ाती है।

बहरहाल, भारत और उज्बेकिस्तान के संबंध केवल दो देशों के बीच व्यापार या रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं हैं। यह साझेदारी मध्य एशिया की स्थिरता, भारत की ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी रणनीति और वैश्विक शक्ति संतुलन पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। सामरिक दृष्टि से, उज्बेकिस्तान भारत के लिए वह ‘भू-राजनीतिक चौराहा’ है, जहां से दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने वाले कई रास्ते निकलते हैं। यदि भारत इन रिश्तों को गहराई से विकसित करता है, तो यह न केवल द्विपक्षीय लाभ देगा, बल्कि एक नए क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन की नींव भी रख सकता है, जिसमें भारत एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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